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महादेवी वर्मा

Question
CBSEENHN12026459

महादेवी वर्मा के जीवन का परिचय देते हुए उनकी रचनाओं के नाम एवं साहित्यिक वैशिष्टय पर प्रकाश डालिए तथा भागा-शैली की विशेषताएँ लिखिए।

Solution

जीवन-परिचय: महादेवी वर्मा आधुनिक हिन्दी काव्यधारा की अन्यतम कवयित्री हैं। उनका जन्म 1907 ई में फर्रूखाबाद (उ .प्र.) में हुआ। आधुनिक हिन्दी साहित्य के तीन युग उनकी रचनाधर्मिता से विभूषित रहे हैं। छायावाद युग से लेकर आज तक उन्होंने हिन्दी साहित्य को अनेकविध रूपों में समृद्ध एवं समुन्नत किया है। वे उच्च कोटि की विदुषी एवं धार्मिक तथा संस्कारनिष्ठ महिला हैं। एक लम्बे समय तक वे आचार्य के सम्मानजनक पद पर कार्यरत रहीं। प्रयाग उनका कर्मक्षेत्र रहा। हिंदी साहित्य जगत् में उनकी अपूर्व सेवाओं के लिए उन्हें ‘यामा’ पर भारतीय ज्ञानपीठ साहित्य पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। यह महादेवी का ही नही हिन्दी साहित्य का गौरव है कि उक्त पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने आपको ‘परभू-गुण’ से सम्मानित किया। 1987 ई में इनका निधन हुआ।

साहित्य सर्जना (रचनाएँ): महादेवी एक उच्च कोटि की रहस्यवादी-छायावादी कवयित्री हैं। उनकी काव्य रचनाएँ हैं-नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, दीपशिखा, यामा। आधुनिक कविता भाग-1, संधिनी और परिक्रमा उनके अन्य काव्य संकलन हैं जिनमें संकलित कविताएँ नीहार, रश्मि, नीरजा आदि से ली गई हैं। इनके अतिरिक्त महादेवी ने गद्य में भी उत्कृष्ट साहित्यिक रचनाएँ की हैं।

महादेवी के निबंध संग्रह हैं-श्रृंखला की कड़ियाँ, क्षणदा, संकल्पिता तथा ‘भारतीय संस्कृति के स्वर’। उनके संस्मरणात्मक रेखाचित्रों के संकलन हैं-’अतीत के चलचित्र’, ‘स्मृति की रेखाएँ, ‘पथ के साथी और ‘मेरा परिवार’।

साहित्यिक वैशिष्य: महादेवी मूलत: अपनी छायावादी रचनाओं के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने छायावाद को नई चेतना और नये मूल्यों में मंडित किया। उनकी भाषा, उनकी अभिव्यक्ति अप्रस्तुत विधान के अत्यंत मनभावने सौंदर्य से समन्वित है। महादेवी ने लोक-धुनो को शास्त्रीय संगीत की राग-रागनियों में ढाला है। महादेवी के गीतों को आँसू से भीगे हुए गीतों की संज्ञा दी गई है। उनकी रचनाओ में माधुर्य, मार्दव प्रांजलता, एक अबूझ ऊष्मा, करुणा, रोमांस प्रेम की गहन पीड़ा और एक अनिवर्चनीय आनंद की महत् अनुभूति का स्वर बोलता है। उनके गीतों को पढ़ते समय पाठक का मन भीग उठता है और एक अजीब-सी तरलता उसकी चेतना पर छा जाती है। उन्हें आधुनिक युग की मीरा कहा जाता है। कोमल कल्पना और सूक्ष्म अनुभूति के साथ आपकी कविता में संगीतमयी और रंगीन भाषा भी मिलती है। उनकी कविता में रहस्य और दार्शनिकता का विशेष पुट रहता है। कवयित्री के रूप में तो महादेवी प्रसिद्ध हैं ही आधुनिक हिंदी गद्य को भी आपने अनुपम दान दिया है। आपके गद्य में काव्य की-सी ही संवेदना और चित्रात्मकता मिलती है। समाज-सेवा के अपने कार्य के दौरान महादेवी को अपने जनों को निकट से देखने का जो अवसर मिला उसी ने उन्हें पहले-पहल गद्य लिखने की ओर आकर्षित किया। निकट संपर्क में आने वाले इन साधारण जनों के जीवन को महादेवी ने अपने संस्मरणात्मक रेखाचित्रों में इतनी बारीकी और सहानुभूति से अंकित किया है कि वे हिन्दी में अपने ढंग की बेजोड़ रचनाएँ मानी जाती है। उन्हें पढ़कर हमें उन रेखाचित्रों के पात्रों की अनुभूति तो होती है, साथ ही हम लेखिका की सूक्ष्मदर्शिता गहरी भावना और कुशल शैली से भी प्रभावित होते हैं।

भाषा-शैली: महादेवी वर्मा की भाषा संस्कृतनिष्ठ है। इनकी काव्य भाषा में सिक्कों की-सी झनक और चमक है। इन्होंने छायावादी शैली के अनुरूप कोमलकांत पदावली का प्रयोग किया है। उन्होंने मानवीकरण एवं प्रतीकों को विशेष अर्थों में प्रयुक्त किया है। दीपक झंझा उनके प्रिय प्रतीक हैं।

महादेवी वर्मा ने वर्णनात्मक विचारात्मक एवं भावात्मक शैली को अपनाया है। उन्हें तत्सम शब्दों के प्रति गहरा लगाव है। उनकी गद्य-शैली सरस और प्रवाहपूर्ण है।

Some More Questions From महादेवी वर्मा Chapter

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
भक्तिन और मेरे बीच में सेवक स्वामी का संबंध है, यह काफी कठिन है, क्योंकि ऐसा कोई स्वामी नहीं हो सकता, जो अच्छा होने पर भी सेवक की अपनी सेवा से हटा न सके और ऐसा कोई सेवक भी नहीं सुना गया, जो स्वामी के चले जाने का आदेश पाकर अवज्ञा से हंस दे। भक्तिन को नौकर कहना उतना ही असंगत है, जितना अपने घर में बारी-बारी से आने-जाने वाले अंधेरे-उजाले और आंगन में फूलने वाले गुलाब और आम को सेवक मानना।

1. क्या कहना कठिन है?
2. भक्तिन और लेखिका के परस्पर संबंध को स्पष्ट कीजिए।
3. लेखिका द्वारा नौकरी से हटकर चले जाने का आदेश पाकर भक्तिन की क्या प्रतिक्रिया होती थी?
4. भक्तिन को नौकर कहना कितना असंगत है?



निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
भक्तिन के संस्कार ऐसे हैं कि वह कारागार से वैसे ही डरती है, जैसे यमलोक से। ऊँची दीवार देखते ही, वह खि मूँदकर बेहोश हो जाना चाहती है। उसकी यह कमजोरी इतनी प्रसिद्धि पा चुकी है कि लोग मेरे जेल जाने की संभावना बता-बताकर उसे चिढ़ाते रहते हैं। वह डरती नहीं, यह कहना असत्य होगा; पर डर से भी अधिक महत्व मेरे साथ का ठहरना है। चुपचाप मुझसे पूछने लगती है कि वह अपनी दै धोती साबुन से साफ कर ले, जिससे मुझे वहाँ उसके लिए लज्जित न होना पड़े। क्या-क्या सामान बाँध ले, जिससे मुझे वहाँ किसी प्रकार की असुविधा न हो सके। ऐसी यात्रा में किसी को किसी के साथ जाने का अधिकार नहीं, यह आश्वासन भक्तिन के लिए कोई मूल्य नहीं रखता। वह मेरे न जाने की कल्पना से इतनी प्रसन नहीं होती, जितनी अपने साथ न जा सकने की संभावना से अपमानित। भला ऐसा अँधेर हो सकता है। जहाँ मालिक वहाँ नौकर-मालिक को ले जाकर बंद कर देने में इतना अन्याय नहीं; पर नौकर को अकेले मुक्त छोड़ देने में पहाड़ के बराबर अन्याय है। ऐसा अन्याय होने पर भक्तिन को बड़े लाट तक लड़ना पड़ेगा। किसी की माई यदि बड़े लाट तक नहीं लड़ी, तो नहीं लड़ी; पर भक्तिन का तो बिना लड़े काम ही नहीं चल सकता।

1. भक्तिन किस बात से डरती है और क्यों?
2. डरकर वह क्या पूछने लगती है?
3. वह किस बात से स्वयं को अपमानित अनुभव करती है?
4. भक्तिन किस बात पर बड़े लाट तक लड़ना चाहती है?




निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
मेरे परिचितों और साहित्यिक बंधुओं से भी भक्तिन विशेष परिचित है, पर उनके प्रति भक्तिन के सम्मान की मात्रा, मेरे प्रति उनके सम्मान की मात्रा पर निर्भर है और सद्भाव उनके प्रति मेरे सद्भाव से निश्चित होता है। इस संबंध में भक्तिन की सहजबुद्धि विस्मित कर देने वाली है।

1. भक्तिन किन लोगों के प्रति सम्मान एवं सद्भाव रखती थीं?
2. भक्तिन में कौन-कौन से गुण थे?
3. भक्तिन का कौन-सा गुण विस्मित कर देने वाला था?
4. भक्तिन की सहज बुद्धि विस्मित कर देने वाल क्यों थीं? 


निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
जैसे मेरे नाम की विशालता मेरे लिए दुर्वह है, वैसे ही लक्ष्मी की समृद्धि भक्तिन के कपाल की कुंचित रेखाओं में नहीं बंध सकी। वैसे तो जीवन में प्राय: सभी को अपने-अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है, पर भक्तिन बहुत समझदार है, क्योंकि वह अपना समृद्धि-सूचक नाम किसी को बताती नहीं। केवल जब नौकरी की खोज मं आई थी, तब ईमानदारी का परिचय देने के लिए उसने शेष इतिवृत्त के साथ यह भी बता दिया. पर इस प्रार्थना के साथ कि मैं कभी नाम का उपयोग न करूँ। उपनाम रखने की प्रतिभा होती, तो मैं सबसे पहले उसका प्रयोग अपने ऊपर करती, इस तथ्य को वह देहातिन क्या जाने।

1. वह ‘देहातिन’ कौन थी? उसने अपने नाम का उपयोग न करने की प्रार्थना लेखिका से क्यों की?
2. ‘मेरे नाम की विशालता मेरे लिए दुर्वह है’-कैसे? स्पष्ट कीजिए।
3. आशय स्पष्ट कीजिए-लक्ष्मी की समृद्धि कपाल की कुंचित रेखाओं में नहीं बँध सकी।
4. लेखिका और उसके घर में काम करने वाली भक्तिन के वास्तविक नामों में ऐसा क्या विरोधाभास था जिसे लेकर दोनों को जीना पड़ रहा था?




भक्तिन अपना वास्तविक नाम लोगों से क्यों छुपाती थी? भक्तिन को यह नाम किसने और क्यों दिया?

दो कन्या-रत्न पैदा करने पर भक्तिन पुत्र-महिमा में अंधी अपनी जिठानियों द्वारा घृणा व उपेक्षा का शिकार बनी। ऐसी घटनाओं से ही अक्सर यह धारणा चलती है कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है । क्या इससे आप सहमत हैं?

भक्तिन की बेटी पर पंचायत द्वारा ज़बरन पति थोपा जाना एक दुर्घटना भर नहीं, बल्कि विवाह के संदर्भ मे स्त्री के मानवाधिकार (विवाह करे या न करे अथवा किससे करे) को कुचलते रहने की सदियों से चली आ रही सामाजिक परंपरा का प्रतीक है। कैसे?

भक्तिन अच्छी है, यह कहना कठिन होगा, क्योंकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं लेखिका ने ऐसा क्यों कहा होगा?

भक्तिन द्वारा शास्त्र के प्रश्न को सुविधा से सुलझा लेने का क्या उदाहरण लेखिका ने दिया है?

भक्तिन के आ जाने से महादेवी अधिक देहाती कैसे हो गई?