भक्तिन द्वारा शास्त्र के प्रश्न को सुविधा से सुलझा लेने का क्या उदाहरण लेखिका ने दिया है?
शास्त्र का प्रश्न भक्तिन अपनी सुविधा से सुलझा लेती है। इस बात के लिए लेखिका ने एक उदाहरण दिया है। भक्तिन ने जब सिर घुटवाना चाहा तब लेखिका ने उसे रोकना चाहा क्योंकि उसे स्त्रियों का सिर घुटाना अच्छा नहीं लगता। इस प्रश्न को भक्तिन ने अपने ढंग से सुलझाते हुए और अपने कदम को शास्त्रसम्मत बताते हुए कहा कि यह शास्त्र में लिखा है। जब लेखिका ने उस लिखे के बारे में जानना चाहा तो उसे तुरंत उत्तर मिला-”तीरथ गए मुँडाए सिद्ध।” लेखिका को यह पता न चल सका कि यह रहस्यमय सूत्र किस शास्त्र का है। बस भक्तिन ने कह दिया कि वह शास्त्र का है तो यह शास्त्र का हो गया।
एक अन्य उदाहरण: एक बार लेखिका के घर पैसे चोरी हो गए तो उसने भक्तिन से पूछा। जब भक्तिन ने लेखिका को बताया कि पैसे उसने सँभालकर रख लिए हैं। उसका तर्क है-क्या अपने ही घर में पैसे सँभालकर रखना चोरी है? वह उदाहरण देती है कि थोड़ी-बहुत चोरी और झूठ के गुण युधिष्ठिर में भी थे अन्यथा वे श्रीकृष्ण को कैसे खुश रख सकते थे। वे राज्य भी झूठ के सहारे चलाते थे। इस प्रकार भक्तिन शास्त्रों का हवाला देकर अपने तर्को से चोरी जैसे दुर्गुण को भी गुण में बदल देती है।