निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
पिता का उस पर अगाध प्रेम होने के कारण स्वभावत: ईर्ष्यालु और संपत्ति की रक्षा में सतर्क विमाता ने उनके मरणांतक रोग का समाचार तब भेजा, जब वह मृत्यु की सूचना भी बन चुका था। रोने-पीटने के अपशकुन से बचने के लिए सास ने भी उसे कुछ न बताया। बहुत बिन से नैहर नहीं गई, सो जाकर देख आवे, यही कहकर और पहना-उड़ाकर सास ने उसे विदा कर दिया। इस अप्रत्याशित अनुग्रह ने उसके पैरों में जो पंख लगा दिये थे, वे गाँव की सीमा में पहुँचते ही झड़ गये। ‘हाय लछमिन अब आई’ की अस्पष्ट पुनरावृत्तियाँ और स्पष्ट सहानुभूतिपूर्ण दृष्टियाँ उसे घर तक ठेल ले गई। पर वहाँ न पिता का चिन्ह शेष था, न विमाता के व्यवहार में शिष्टाचार का लेश था। दुःख से शिथिल और अपमान से जलती हुई वह उस घर में पानी भी बिना पिये उलटे पैरों ससुराल लौट पड़ी। सास को खरी-खोटी सुनाकर उसने विमाता पर आया हुआ क्रोध शांत किया और पति के ऊपर गहने फेंक-फेंककर उसने पिता के चिर विछोह की मर्मव्यथा व्यक्त की।
1. विमाता ने किस कारण पिता के बारे में सूचना भेजने में विलम्ब किया? सास ने भी क्या सोचकर उसे नहीं बताया?
2. वह किस रूप में कहाँ क्यों गई?
3. भक्तिन ने अपने नैहर जाकर क्या सुना और क्या देखा?
4. विमाता के व्यवहार पर लछमिन ने ससुराल में क्या प्रतिक्रिया प्रकट की?
1. विमाता जानती थी कि लछमिन पर पिता का बहुत प्रेम था अत: वह ईर्ष्यालु हो गई थी। वह संपत्ति में भी उसका हिस्सा नहीं देना चाहती थी। अत: उसने पिता-पुत्री के मेल में बाधक की भूमिका का निर्वाह किया। जब पिता (विमाता का पति) मृत्यु शैया पर था तभी समाचार दिया गया। सास ने भी रोने-पीटने के अपशकुन से बचने के लिए बहू को यह बात नहीं बताई।
2. लछमिन (भक्तिन) बहुत दिनों से नैहर (पिता के घर) नहीं गई थी (वह पिता की मृत्यु से अनभिज्ञन थी) अत: उसने वहाँ जाकर देख आने की इच्छा से जाने का निश्चय किया। वहाँ जाने के लिए वह बहुत उत्साहित थी। सास ने भी उसे अच्छा पहना-उड़ाकर भेजा था।
3. भक्तिन ने अपने नैहर में जाकर लोगों (विशेषकर स्त्रियों) की शिकायती आवाजें (अस्फुट स्वर में) सुनी-हाय लछमिन अब आई अर्थात् पिता की मृत्यु पर तो आई नहीं, अब आई है। ये बातें बार-बार दोहराई जा रही थीं। वैसे लोग स्पष्ट रूप से सहानुभूति प्रकट कर रहे थे अर्थात् उनका चरित्र दोहरा था।
4. घर पहुँचकर उसने पिता को न देखा और ऊपर से विमाता ने अशिष्ट व्यवहार किया। इससे वह दु:खी और अपमानित हुई। पानी भी पिए बिना-वह उल्टे पाँव ससुराल लौट आई। क्रोध की प्रतिक्रियास्वरूप उसने सास को खूब खरी-खोटी बातें सुनाई और पति के ऊपर गहने फेंक-फेंककर पिता के वियोग की व्यथा को अभिव्यक्त किया।