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यहाँ दो सूचियाँ दी गई हैं। पहले में नेताओं के नाम दर्ज़ हैं और दूसरे में दलों के। दोनों सूचियों में मेल बैठाएँ:
A. एस० ए० डांगे | (i) भारतीय जनसंघ |
B. श्यामा प्रसाद मुखर्जी | (ii) स्वतंत्र पार्टी |
C. मीनू मसानी | (iii) प्रजा सोशलिस्ट पार्टी |
D. अशोक मेहता | (iv) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी |
A. एस० ए० डांगे | (i) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी |
B. श्यामा प्रसाद मुखर्जी | (ii) भारतीय जनसंघ |
C. मीनू मसानी | (iii) स्वतंत्र पार्टी |
D. अशोक मेहता | (iv) प्रजा सोशलिस्ट पार्टी |
अगर पहले आम चुनाव के बाद भारतीय जनसंघ अथवा भारतीय कमुनिस्ट पार्टी की सरकार बनी होती तो किन मामलों में इस सरकार ने अलग नीति अपनाई होती? इन दोनों दलों द्वारा अपनाई गई नीतियों के बीच तीन अंतरों का उल्लेख करें।
यदि पहले आम चुनाव के बाद भारतीय जनसंघ अथवा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार बनी होती तो उनकी सरकारें अपनी अलग नीतियाँ अपनातीं। ये नीतियाँ इस प्रकार होतीं:
यदि भारतीय जनसंघ की सरकार बनी होती तो सरकार:
यदि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार बनी होती तो सरकार:
कांग्रेस किन अर्थों में एक विचारधारात्मक गठबंधन थी? कांग्रेस में मौजूद विभिन्न विचारधारात्मक उपस्थितियों का उल्लेख करें।
कांग्रेस पार्टी की स्थापना सन् 1885 में हुई। उस समय पार्टी में अंग्रेजी पढ़े-लिखे, उच्च जातीय वर्ग, उच्च मध्यवर्ग तथा शहरी बुद्धिजीवियों का बोलबाला था जिसका उद्देश्य सरकार और जनता के बीच एक कड़ी के रूप में काम करना था परंतु धीरे-धीरे पार्टी ने अपना सामाजिक आधार बढ़ाना शुरू किया और स्वतंत्रता-प्राप्ति के समय तक यह एक ऐसा सामाजिक और राजनीतिक संगठन बन गया, जिसमें सभी वर्गों, जातियों, धर्मों, ग्रामीणों, शहरवासियों, किसानों, उद्योगपतियों, मजदूरों तथा भूमिपतियों के प्रतिनिधि शामिल थे। इसके अतिरिक्त पार्टी में नरमपंथी, गरमपंथी, दक्षिणपंथी तथा वामपंथी, क्रांतिकारी और शांतिवादी जैसे विचारधारात्मक गठबंधन पाए जाते थे। इनमें से कुछ समूहों ने अपने को कांग्रेस के साथ कर लिया और यदि उन्होंने अपनी पहचान को कांग्रेस के साथ नहीं भी किया तो भी वे अपने-अपने विश्वासों को मानते हुए कांग्रेस के भीतर ही बने रहे। इन अर्थों में कांग्रेस एक विचारधारात्मक गठबंधन थी।
क्या एकल पार्टी प्रभुत्व की प्रणाली का भारतीय राजनीति के लोकतांत्रिक चरित्र पर खराब असर हुआ?
हाँ, यह बात सच है कि एकल पार्टी प्रभुत्व का भारतीय राजनीति के लोकतांत्रिक चरित्र पर खराब असर हुआ। पहले तीन आम चुनावों (1952, 1957, 1962) में कांग्रेस को संसद तथा राज्य विधानसभाओं में भारी बहुमत प्राप्त हुआ। यद्यपि चुनावों में अनेक अन्य दलों-भारतीय जनसंघ, समाजवादी पार्टी, स्वतंत्र पार्टी, कमुनिस्ट पार्टी तथा प्रजा समाजवादी पार्टी आदि ने भी भाग लिया, परंतु इन चुनावों में उन्हें केवल नाममात्र प्रतिनिधित्व ही मिला। इसमें संदेह नहीं है कि इन विरोधी दलों के सिद्धांतों के आधार पर कांग्रेस की आलोचना भी हुई परंतु संसद तथा राज्य विधानसभाओं में कांग्रेस के भारी बहुमत के कारण इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा और कांग्रेस अपनी मनमानी करती रही। इसने निश्चित रूप से भारतीय राजनीति की लोकतांत्रिक प्रणाली को प्रभावित किया।
समाजवादी दलों और कमुनिस्ट पार्टी के बीच के तीन अंतर बताएँ। इसी तरह भारतीय जनसंघ और स्वतंत्र पार्टी के बीच के तीन अंतरों का उल्लेख करें।
(क) समाजवादी दलों और कम्युनिस्ट पार्टी के बीच निम्नलिखित अंतर हैं:
समाजवादी दल | कम्युनिस्ट पार्टी |
(i) समाजवादी दल लोकतांत्रिक विचारधारा में विश्वास करता है। | (i) कम्युनिस्ट पार्टी सर्वहारा वर्ग के अधिनायकवाद में करता है। विश्वास करती है। |
(ii) समाजवादी दल पूँजीपतियों और पूँजी का विरोध नहीं करते। | (ii) कमुनिस्ट पार्टी पूँजीपतियों और पूँजी का विरोध करते हैं। |
(iii) समाजवादी दल अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए राज्य रूपी संस्था को रखना चाहते हैं। | (iii) कम्युनिस्ट पार्टी राज्य को समाप्त करने के पक्ष में है। |
(ख) भारतीय जनसंघ और स्वतंत्र पार्टी के बीच निम्नलिखित अंतर हैं:
स्वतंत्र पार्टी | भारतीय जनसंघ |
(i) स्वतंत्र पार्टी का मानना था कि समृद्धि केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता के जरिए आ सकती हैं। | (i) भारतीय जनसंघ राज्य की सकारात्मक भूमिका का समर्थन करता हैं। स्वतंत्र पार्टी अर्थव्यवस्था में राज्य के कम-से-कम हस्तक्षेप को समर्थन करती है। |
(ii) स्वतंत्र पार्टी धर्म-निरपेक्षता का समर्थन करती है। | (ii) भारतीय जनसंघ हिंदुत्व के प्रचार-प्रसार का समर्थन करती है। |
(iii) स्वतंत्र पार्टी गुट-निरपेक्षता की नीति और सोवियत संघ से दोस्ताना रिश्ते कायम रखने को भी गलत मानती थी। | (iii) भारतीय जनसंघ गुट-निरपेक्षता की नीति का समर्थन करता हैं। उसने भारत और पाकिस्तान को एक करके अखंड भारत बनाने की बात कही। |
भारत और मैक्सिको दोनों ही देशों में एक खास समय तक एक पार्टी का प्रभुत्व रहा। बताएँ कि मैक्सिको में स्थापित एक पार्टी का प्रभुत्व कैसे भारत के एक पार्टी के प्रभुत्व से अलग था?
भारत और मैक्सिको दोनों ही देशों में एक खास समय में एक पार्टी का प्रभुत्व रहा परंतु दोनों देशों में एक दल के प्रभुत्व के स्वरूप में अंतर था। भारत में जहाँ लोकतंत्र के आधार पर एक दल का प्रभुत्व कायम था वहीं मैक्सिको में एक दल की तानाशाही थी। वहाँ पर लोगों को अपने विचार रखने तथा उन्हें प्रकट, करने का विचार नहीं थी।
भारत का एक राजनीतिक नक्शा लीजिए (जिसमें राज्यों की सीमाएँ दिखाई गई हों) और उसमें निम्नलिखित को चिह्नित कीजिए:
(क) ऐसे दो राज्य जहाँ 1952-67 के दौरान कांग्रेस सत्ता में नहीं थी।
(ख) दो ऐसे राज्य जहाँ इस पूरी अवधि में कांग्रेस सत्ता में रही।
(क) (i) जम्यू-कश्मीर, (ii) केरल;
(ख) (i) उत्तर-प्रदेश, (ii) पंजाब।
निम्नलिखित अवतरण को पढ़कर इसकेआधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
कांग्रेस के संगठनकर्ता पटेल कांग्रेस को दूसरे राजनीतिक समूह से निसंग रखकर उसे एक सर्वांगसम तथा अनुशासित राजनीतिक पार्टी बनाना चाहते थे। वे चाहते थे कि कांग्रेस सबको समेटकर चलने वाला स्वभाव छोड़े और अनुशासित कॉडर से युक्त एक सगुंफित पार्टी के रूप में उभरे। 'यथार्थवादी' होने के कारण पटेल व्यापकता की जगह अनुशासन को ज्यादा तरजीह देते थे। अगर ''आंदोलन को चलाते चले जाने'' के बारे में गाँधी के ख्याल हद से ज़्यादा रोमानी थे तो कांग्रेस को किसी एक विचारधारा पर चलने वाली अनुशासित तथा धुरंधर राजनीतिक पार्टी के रूप में बदलने की पटेल की धारणा भी उसी तरह कांग्रेस की उस समन्वयवादी भूमिका को पकड़ पाने में चूक गई जिसे कांग्रेस को आने वाले दशकों में निभाना था। -रजनी कोठारी
(क) लेखक क्यों सोच रहा है कि कांग्रेस को एक सर्वांगसम तथा अनुशासित पार्टी नहीं होना चाहिए?
(ग) शुरूआती सालों में कांग्रेस द्वारा निभाई गई समन्वयवादी भूमिका के कुछ उदाहरण दीजिए।
(क) लेखक (रजनी कोठारी) का यह विचार है कि कांग्रेस को एक सर्वांगसम तथा अनुशासित पार्टी नहीं होना चाहिए क्योंकि एक अनुशासित पार्टी में किसी विवादित विषय पर स्वस्थ तथा खुलकर विचार-विमर्श नहीं हो पाता, जो कि देश तथा लोकतंत्र के लिए अच्छा होता है। लेखक का यह विचार है कि चूँकि कांग्रेस पार्टी में सभी जातियों, धर्मों, भाषाओं एवं विचारधाराओं के नेता शामिल हैं, जिन्हें अपनी बात कहने का पूरा हक है, जिससे देश में वास्तविक लोकतंत्र उभरकर सामने आएगा। इसलिए कांग्रेस को एक सर्वांगसम तथा अनुशासित पार्टी नहीं होना चाहिए।
(ख) कांग्रेस पार्टी की स्थापना सन् 1885 में हुई। अपने आरंभिक वर्षों में पार्टी ने कई विषयों में महत्वपूर्ण समन्वयकारी भूमिका निभाई। इस पार्टी ने ब्रिटिश सरकार तथा देश के नागरिकों के बीच एक महत्त्वपूर्ण समन्वयवादी कड़ी के रूप में कार्य किया।
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