Sponsor Area

एक दल के प्रभुत्व का दौर

Question
CBSEHHIPOH12041317

क्या एकल पार्टी प्रभुत्व की प्रणाली का भारतीय राजनीति के लोकतांत्रिक चरित्र पर खराब असर हुआ?

Solution

हाँ, यह बात सच है कि एकल पार्टी प्रभुत्व का भारतीय राजनीति के लोकतांत्रिक चरित्र पर खराब असर हुआ। पहले तीन आम चुनावों (1952, 1957, 1962) में कांग्रेस को संसद तथा राज्य विधानसभाओं में भारी बहुमत प्राप्त हुआ। यद्यपि चुनावों में अनेक अन्य दलों-भारतीय जनसंघ, समाजवादी पार्टी, स्वतंत्र पार्टी, कमुनिस्ट पार्टी तथा प्रजा समाजवादी पार्टी आदि ने भी भाग लिया, परंतु इन चुनावों में उन्हें केवल नाममात्र प्रतिनिधित्व ही मिला। इसमें संदेह नहीं है कि इन विरोधी दलों के सिद्धांतों के आधार पर कांग्रेस की आलोचना भी हुई परंतु संसद तथा राज्य विधानसभाओं में कांग्रेस के भारी बहुमत के कारण इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा और कांग्रेस अपनी मनमानी करती रही। इसने निश्चित रूप से भारतीय राजनीति की लोकतांत्रिक प्रणाली को प्रभावित किया।

Sponsor Area

Some More Questions From एक दल के प्रभुत्व का दौर Chapter

क्या एकल पार्टी प्रभुत्व की प्रणाली का भारतीय राजनीति के लोकतांत्रिक चरित्र पर खराब असर हुआ?

समाजवादी दलों और कमुनिस्ट पार्टी के बीच के तीन अंतर बताएँ। इसी तरह भारतीय जनसंघ और स्वतंत्र पार्टी के बीच के तीन अंतरों का उल्लेख करें।

भारत और मैक्सिको दोनों ही देशों में एक खास समय तक एक पार्टी का प्रभुत्व रहा। बताएँ कि मैक्सिको में स्थापित एक पार्टी का प्रभुत्व कैसे भारत के एक पार्टी के प्रभुत्व से अलग था?

भारत का एक राजनीतिक नक्शा लीजिए (जिसमें राज्यों की सीमाएँ दिखाई गई हों) और उसमें निम्नलिखित को चिह्नित कीजिए:

(क) ऐसे दो राज्य जहाँ 1952-67 के दौरान कांग्रेस सत्ता में नहीं थी।
(ख) दो ऐसे राज्य जहाँ इस पूरी अवधि में कांग्रेस सत्ता में रही।

निम्नलिखित अवतरण को पढ़कर इसकेआधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

कांग्रेस के संगठनकर्ता पटेल कांग्रेस को दूसरे राजनीतिक समूह से निसंग रखकर उसे एक सर्वांगसम तथा अनुशासित राजनीतिक पार्टी बनाना चाहते थे। वे चाहते थे कि कांग्रेस सबको समेटकर चलने वाला स्वभाव छोड़े और अनुशासित कॉडर से युक्त एक सगुंफित पार्टी के रूप में उभरे। 'यथार्थवादी' होने के कारण पटेल व्यापकता की जगह अनुशासन को ज्यादा तरजीह देते थे। अगर ''आंदोलन को चलाते चले जाने'' के बारे में गाँधी के ख्याल हद से ज़्यादा रोमानी थे तो कांग्रेस को किसी एक विचारधारा पर चलने वाली अनुशासित तथा धुरंधर राजनीतिक पार्टी के रूप में बदलने की पटेल की धारणा भी उसी तरह कांग्रेस की उस समन्वयवादी भूमिका को पकड़ पाने में चूक गई जिसे कांग्रेस को आने वाले दशकों में निभाना था। -रजनी कोठारी

(क) लेखक क्यों सोच रहा है कि कांग्रेस को एक सर्वांगसम तथा अनुशासित पार्टी नहीं होना चाहिए?
(ग) शुरूआती सालों में कांग्रेस द्वारा निभाई गई समन्वयवादी भूमिका के कुछ उदाहरण दीजिए।