निम्नलिखित अवतरण को पढ़कर इसकेआधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
कांग्रेस के संगठनकर्ता पटेल कांग्रेस को दूसरे राजनीतिक समूह से निसंग रखकर उसे एक सर्वांगसम तथा अनुशासित राजनीतिक पार्टी बनाना चाहते थे। वे चाहते थे कि कांग्रेस सबको समेटकर चलने वाला स्वभाव छोड़े और अनुशासित कॉडर से युक्त एक सगुंफित पार्टी के रूप में उभरे। 'यथार्थवादी' होने के कारण पटेल व्यापकता की जगह अनुशासन को ज्यादा तरजीह देते थे। अगर ''आंदोलन को चलाते चले जाने'' के बारे में गाँधी के ख्याल हद से ज़्यादा रोमानी थे तो कांग्रेस को किसी एक विचारधारा पर चलने वाली अनुशासित तथा धुरंधर राजनीतिक पार्टी के रूप में बदलने की पटेल की धारणा भी उसी तरह कांग्रेस की उस समन्वयवादी भूमिका को पकड़ पाने में चूक गई जिसे कांग्रेस को आने वाले दशकों में निभाना था। -रजनी कोठारी
(क) लेखक क्यों सोच रहा है कि कांग्रेस को एक सर्वांगसम तथा अनुशासित पार्टी नहीं होना चाहिए?
(ग) शुरूआती सालों में कांग्रेस द्वारा निभाई गई समन्वयवादी भूमिका के कुछ उदाहरण दीजिए।
(क) लेखक (रजनी कोठारी) का यह विचार है कि कांग्रेस को एक सर्वांगसम तथा अनुशासित पार्टी नहीं होना चाहिए क्योंकि एक अनुशासित पार्टी में किसी विवादित विषय पर स्वस्थ तथा खुलकर विचार-विमर्श नहीं हो पाता, जो कि देश तथा लोकतंत्र के लिए अच्छा होता है। लेखक का यह विचार है कि चूँकि कांग्रेस पार्टी में सभी जातियों, धर्मों, भाषाओं एवं विचारधाराओं के नेता शामिल हैं, जिन्हें अपनी बात कहने का पूरा हक है, जिससे देश में वास्तविक लोकतंत्र उभरकर सामने आएगा। इसलिए कांग्रेस को एक सर्वांगसम तथा अनुशासित पार्टी नहीं होना चाहिए।
(ख) कांग्रेस पार्टी की स्थापना सन् 1885 में हुई। अपने आरंभिक वर्षों में पार्टी ने कई विषयों में महत्वपूर्ण समन्वयकारी भूमिका निभाई। इस पार्टी ने ब्रिटिश सरकार तथा देश के नागरिकों के बीच एक महत्त्वपूर्ण समन्वयवादी कड़ी के रूप में कार्य किया।