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एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार की क्या विशेषताएँ हैं ?
एक फर्म की संप्राप्ति, बाजार कीमत तथा उसके द्वारा बेची गई मात्रा में क्या संबंध है?
एक फर्म की संप्राप्ति, बाज़ार कीमत तथा उसके द्वारा बेचीं गई मात्रा का गुणनफल है अर्थात्
फर्म की कुल संप्राप्ति = बिक्री की मात्रा x बाज़ार कीमत
अथवा
TR = q x p
यहाँ, TR = कुल संप्राप्ति, q = बिक्री की मात्रा तथा p = कीमत।
कीमत रेखा क्या है ?
कीमत रेखा, बाजार कीमत तथा फर्म के उत्पाद स्तर के मध्य संबंध को दर्शाती है। बाजार कीमत को Y अक्ष पर तथा उत्पाद को X अक्ष पर दर्शाया जाता है, क्योंकि बाजार कीमत P पर स्थिर है। एक आड़ी-सीधी रेखा होती है, जो अक्ष को P के बराबर ऊँचाई पर काटती है। इस आड़ी-सीधी रेखा को कीमत रेखा कहते हैं। कीमत रेखा एक फर्म के माँग वक्र को भी दर्शाती है।
चिन्न दर्शाता है कि कीमत रेखा P फर्म के उत्पाद से स्वतंत्र हैं। इसका अर्थ है कि फर्म कीमत P पर जितनी चाहे उतनी इकाइयाँ बेच सकती है।
एक कीमत-स्वीकारक फर्म का कुल संप्राप्ति वक्र, ऊपर की ओर प्रवणता वाली सीधी रेखा क्यों होती है ? यह वक्र उद् गम से होकर क्यों गुजरती है ?
कुल आगम चक्र मूल बिन्दु से गुजरता है, क्योंकि जब उत्पादन शून्य होगा, फर्म का कुल आगम भी शून्य होगा। जैसे-जैसे उत्पादन बेचा जाता है, कुल आगम बढ़ता है। वक्र पर सरल रेखीय समीकरण है:
TR = P X Q
इस प्रकार, पूर्ण प्रतियोगिता में कुल आगम ऊपर उठती हुई सीधी रेखा होती। है।
इसका अर्थ है कि कुल आगम बेचे गए उत्पादन के समान अनुपात में बढ़ता हैं (क्योंकि कीमत स्थिर होती है)।
एक कीमत-स्वीकारक फर्म का बाज़ार कीमत तथा औसत संप्राप्ति में क्या संबंध है ?
एक कीमत-स्वीकारक फर्म का बाज़ार कीमत तथा औसत संप्राप्ति सदैव बराबर होती है क्योंकि बेचीं गई प्रत्येक इकाई के मूल्य में कोई परिवर्तन नहीं होता। अर्थात्
एक कीमत-स्वीकारक फर्म की बाज़ार कीमत तथा सीमांत संप्राप्ति में क्या संबंध है?
एक कीमत-स्वीकारक फर्म की बाज़ार कीमत तथा सीमांत संप्राप्ति एक-दूसरे के बराबर होते है क्योंकि बेचीं गई हर अतिरिक्त इकाई की कीमत एक-समान होती है। अर्थात्
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म की सकारात्मक उत्पादन करने की क्या शर्तें हैं ?
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म की सकारात्मक उत्पादन करने की शर्तें निम्नलिखित हैं:
क्या प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म जिसकी बाज़ार कीमत सीमांत लागत के बराबर नहीं है, उसका निर्गत का स्तर सकारात्मक हो सकता है। व्याख्या कीजिए।
प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म जिसकी बाज़ार कीमत सीमांत लागत के बराबर नहीं है, उसके निर्गत का स्तर सकारात्मक नहीं हो सकता है, यदि बाज़ार कीमत सीमांत लागत और औसत परिवर्ती लागत से कम है।
यदि बाज़ार कीमत सीमांत लागत से कम है, लेकिन औसत परिवर्ती लागत से अधिक है तो उसके निर्गत का स्तर सकारात्मक हो सकता है। ऐसा इसलिए होता है की फर्म का उद्देश्य हानि को कम करना भी होता है। यदि बाज़ार कीमत सीमांत लागत और औसत परिवर्ती लागत से कम है तो उत्पादन व बिक्री से हानि अधिक होगी। इसलिए उत्पादन बंद करना अधिक लाभदायक होगा।
यदि बाज़ार कीमत सीमांत लागत से कम, लेकिन औसत परिवर्ती लागत से अधिक है तो उत्पादन जारी रखने पर फर्म को हानि कम होगी। एक फर्म का अधिकतम लाभ तभी होगा जब बाज़ार कीमत सीमांत लागत के बराबर होगी।
प्रौद्योगिकीय प्रगति एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है ?
प्रौद्योगिकीय प्रगति एक फर्म के पूर्ति वक्र को प्रभावित करती है। यदि प्रौद्योगिकी में सुधार होता है तो उन्हीं पूर्ववत संसाधनों से अधिक इकाइयों का उत्पादन संभव हो जाता है। फलस्वरूप उत्पादन लागत में कमी आती है और पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाता है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दिखाया गया है। आरम्भ में OP कीमत पर पूर्ति PE है, प्रौद्योगिकी प्रगति के पश्चात समान कीमत पर पूर्ति बढ़कर PE1 हो जाती है।
इकाई कर लगाने से एक फर्म का पूर्ति वक्र किस प्रकार प्रभावित करता है ?
जब किसी वस्तु पर इकाई कर लगता है, तो उस वस्तु की इकाई (औसत) व सीमांत लागत में वृद्धि होती हैं। परिणाम-स्वरूप वस्तु की पूर्ति कम हो जाती है और पूर्ति वक्र बाई ओर खिसक जाता है। जैसा की संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है। आरम्भ में OP कीमत पर उत्पादक PE मात्रा की पूर्ति करने को तैयार था। इकाई कर के लगने से वह प्रचलित कीमत पर केवल PE1 मात्रा की पूर्ति ही करता है। पूर्ति वक्र अब SS से पीछे को खिसककर S1S1 बन जाता है।
किसी आगत की कीमत में वृद्धि एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है ?
सामान्यतया वस्तु की पूर्ति और लागत में ऋणात्मक संबंध होता है। आगतों की कीमत में वृद्धि (जैसे कच्चे माल की कीमत में वृद्धि, श्रमिकों की मज़दूरी में वृद्धि) से वस्तु की लागत में वृद्धि होने के फलस्वरूप वस्तु की पूर्ति कम हो जाएगी और पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाता है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है। रेखाचित्र में SS प्रारम्भिक पूर्ति वक्र है। आगत में वृद्धि होने पर यह बाईं ओर खिसकर S1S1 हो जाता है।
निम्न तालिका में कुल संप्राप्ति, सीमांत संप्राप्ति तथा औसत संप्राप्ति का परिकलन कीजिए। वस्तु की प्रति इकाई बाज़ार कीमत 10 रूपए है।
बेचीं गई मात्रा | कुल संप्राप्ति | सीमांत संप्राप्ति | औसत संप्राप्ति |
0 | |||
1 | |||
2 | |||
3 | |||
4 | |||
5 | |||
6 |
(i) कुल संप्राप्ति = बेचीं गई मात्रा x प्रति इकाई कीमत
(ii)
(iii)
बेचीं गई मात्रा | प्रति इकाई कीमत (रु) | कुल संप्राप्ति | सीमांत संप्राप्ति | औसत संप्राप्ति |
0 | 10 | - | - | - |
1 | 10 | 10 | 10 | 10 |
2 | 10 | 20 | 10 | 10 |
3 | 10 | 30 | 10 | 10 |
4 | 10 | 40 | 10 | 10 |
5 | 10 | 50 | 10 | 10 |
6 | 10 | 60 | 10 | 10 |
निम्न तालिका में एक प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल संप्राप्ति तथा कुल लागत सारणियों को दर्शाया गया है। प्रत्येक उत्पादन स्तर के लाभ की गणना कीजिए। वस्तु की बाज़ार कीमत भी निर्धारित कीजिए।
बेचीं गई मात्रा | कुल संप्राप्ति (रु) | कुल लागत (रु) | लाभ (रु) |
0 | 0 | 5 | - |
1 | 5 | 7 | - |
2 | 10 | 10 | - |
3 | 15 | 12 | - |
4 | 20 | 15 | - |
5 | 25 | 23 | - |
6 | 30 | 33 | - |
7 | 35 | 40 | - |
बेचीं गई मात्रा | कुल संप्राप्ति (रु) | कुल लागत (रु) | लाभ (रु) (TR - TC) | कीमत (रु) |
0 | 0 | 5 | -5 | 0 |
1 | 5 | 7 | -2 | 5 |
2 | 10 | 10 | 0 | 5 |
3 | 15 | 12 | 3 | 5 |
4 | 20 | 15 | 5 | 5 |
5 | 25 | 23 | 2 | 5 |
6 | 30 | 33 | -3 | 5 |
7 | 35 | 40 | -5 | 5 |
निम्न तालिका में एक प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल लागत सारणी को दर्शाया गया है। वस्तु की कीमत 10 रु० दी हुई है। प्रत्येक उत्पादन स्तर पर लाभ की गणना कीजिए। लाभ-अधिकतमीकरण निर्गत स्तर ज्ञात कीजिए।
कीमत (इकाई) रु | कुल लागत (इकाई) |
0 | 5 |
1 | 15 |
2 | 22 |
3 | 27 |
4 | 31 |
5 | 38 |
6 | 49 |
7 | 63 |
8 | 81 |
9 | 101 |
10 | 123 |
उत्पादन | कीमत (रु) | कुल संप्राप्ति (रु) | कुल लागत (रु) | लाभ |
0 | 10 | 0 | 5 | -5 |
1 | 10 | 10 | 15 | -5 |
2 | 10 | 20 | 22 | -2 |
3 | 10 | 30 | 27 | 3 |
4 | 10 | 40 | 31 | 9 |
5 | 10 | 50 | 38 | 12 |
6 | 10 | 60 | 49 | 11 |
7 | 10 | 70 | 63 | 7 |
8 | 10 | 80 | 81 | -1 |
9 | 10 | 90 | 101 | -11 |
10 | 10 | 100 | 123 | -23 |
दो फर्मों वाले एक बाज़ार को लीजिए। निम्न तालिका दोनों फर्मों के पूर्ति सारणियों को दर्शाती है। SS1 कालम में फर्म-1 की पूर्ति सारणी, कालम SS2 में फर्म-2 की पूर्ति सारणी है। बाज़ार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।
कीमत | SS1 इकाइयाँ | SS2 इकाइयाँ |
0 | 0 | 0 |
1 | 0 | 0 |
2 | 0 | 0 |
3 | 1 | 1 |
4 | 2 | 2 |
5 | 3 | 3 |
6 | 4 | 4 |
कीमत | SS1 (इकाइयाँ) | SS2 (इकाइयाँ) | MSS (बाज़ार पूर्ति) |
0 | 0 | 0 | 0 (0+0) |
1 | 0 | 0 | 0 (0+0) |
2 | 0 | 0 | 0 (0+0) |
3 | 1 | 1 | 2 (1+1) |
4 | 2 | 2 | 4 (2+2) |
5 | 3 | 3 | 6 (3+3) |
6 | 4 | 4 | 8 (4+4) |
एक दो फर्मों वाले बाज़ार को लीजिए। निम्न तालिका में कालम SS1 तथा कालम SS2, क्रमश: फर्म-1 तथा फर्म-2 के पूर्ति सारणियों को दर्शाते हैं। बाज़ार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।
कीमत (रु) | SS1 (किलो) | SS2 (किलो) |
0 | 0 | 0 |
1 | 0 | 0 |
2 | 0 | 0 |
3 | 1 | 0 |
4 | 2 | 0.5 |
5 | 3 | 1 |
6 | 4 | 1.5 |
7 | 5 | 2 |
8 | 6 | 2.5 |
कीमत (रु) | SS1 (किलो) | SS2 (किलो) | बाज़ार पूर्ति (किलो) |
0 | 0 | 0 | 0 |
1 | 0 | 0 | 0 |
2 | 0 | 0 | 0 |
3 | 1 | 0 | 1 |
4 | 2 | 0.5 | 2.5 |
5 | 3 | 1 | 4 |
6 | 4 | 1.5 | 5.5 |
7 | 5 | 2 | 7 |
8 | 6 | 2.5 | 8.5 |
एक बाज़ार में 3 समरूपी फर्म हैं। निम्न तालिका फर्म- 1 की पूर्ति सारणी दर्शाती है। बाज़ार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।
कीमत (रु) | SS1 (इकाई) |
0 | 0 |
1 | 0 |
2 | 2 |
3 | 4 |
4 | 6 |
5 | 8 |
6 | 10 |
7 | 12 |
8 | 14 |
क्योंकि तीनों फर्में समरूप हैं, हम बाज़ार पूर्ति अनुसूची को फर्म-1 की अनुसूची को 3 से गुणा करके प्राप्त कर सकते हैं।
कीमत (रु) | SS1 (इकाई) | MSS (इकाई) |
0 | 0 | 0 |
1 | 0 | 0 |
2 | 2 | 6 |
3 | 4 | 12 |
4 | 6 | 18 |
5 | 8 | 24 |
6 | 10 | 30 |
7 | 12 | 36 |
8 | 14 | 42 |
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10 रु प्रति इकाई बाज़ार कीमत पर एक फर्म की संप्राप्ति 50 रू है। बाज़ार कीमत बढ़कर 15 रु हो जाती है और अब फर्म को 150 रु की संप्राप्ति होती है। पूर्ति वक्र की कीमत लोच क्या है ?
कुल संप्राप्ति = 50 रु
वस्तु की पुरानी कीमत = 10 रु
वस्तु की बेचीं गई पुरानी इकाइयाँ = 50/10 = 5 इकाइयाँ
वस्तु की नई कीमत = 15 रु
वस्तु की कुल संप्राप्ति = 150 रु
वस्तु की बेची गई नई इकाइयाँ = 150/15 = 10 इकाइयाँ
पूर्ति की कीमत लोच (es)
एक वस्तु की बाजार कीमत 5 रु० से बदलकर 20 रु० हो जाती है। फलस्वरूप फर्म पूर्ति की मात्रा 15 इकाई बढ़ जाती है। फर्म के पूर्ति वक्र की कीमत लोच 0.5 हैं। फर्म का आरंभिक तथा अंतिम निर्गत स्तर ज्ञात करें।
पूर्ति की कीमत लोच (Es) = 0.5
पूर्व कीमत (p) = रु 5
कीमत में परिवर्तन (Δ p) = रु (20- 5) = 15 रु
पूर्ति में परिवर्तन (Δ q) = 15 इकाइयाँ
अब,
आरंभिक निर्गत स्तर (q) = 10
अंतिम निर्गत स्तर = (q + Δ q) = 15 + 10 = 25 इकाइयाँ
10 रु बाज़ार कीमत पर एक फर्म निर्गत की 4 इकाइयों की पूर्ति करती है। बाज़ार कीमत बढ़कर 30 रु हो जाती हैं। फर्म की पूर्ति की कीमत लोच 1.25 है। नई कीमत पर फर्म कितनी मात्रा की पूर्ति करेगी ?
P = 10 रु
Q = 4 इकाइयाँ
(Δ P) = (30 रु - 10 रु) = 20 रु
पूर्ति की कीमत लोच (Es) = 1.25
चूँकि,
पूर्ति की नई मात्रा = पूर्ति की पुरानी मात्रा + पूर्ति में परिवर्तन i.e. (Q + ΔQ)
= 4 + 10 = 14 इकाइयाँ
बाज़ार में फर्मों की संख्या में वृद्धि, बाज़ार पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है ?
बाज़ार में फर्मों की संख्या में वृद्धि के कारण बाज़ार पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाएगा। क्योंकि बाज़ार पूर्ति बाज़ार में उपलब्ध फर्मों द्वारा ही की जाती हैं। अत: दोनों का सीधा सम्बन्ध हैं। इसे हम संग्लन रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।
संग्लन रेखाचित्र में प्रारम्भिक पूर्ति वक्र SS है, जिस पर OP कीमत पर OQ1 पूर्ति है। फर्मों की संख्या में वृद्धि से पूर्ति वक्र S1S1 हो जाता है जिससे उसी कीमत OP पर पूर्ति बढ़कर OQ1 हो जाती है।
पूर्ति की कीमत लोच का क्या अर्थ है ? हम इसे कैसे मापते हैं ?
वस्तु की कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप पूर्ति की मात्रा में होने वाला परिवर्तन पूर्ति की कीमत लोच कहलाता हैं। पूर्ति की कीमत लोच को es द्वारा दर्शाया जाता हैं:
अथवा
क्या दीर्घकाल में स्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर कर सकती है ? यदि बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत लागत से कम है, व्याख्या कीजिए।
अल्पकाल में एक फर्म का पूर्ति वक्र क्या होती है ?
अल्पकाल में, एक फर्म का अल्पकालीन पूर्ति वक्र न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से ऊपर अल्पकालीन कीमत वक्र का बढ़ता हुआ भाग होता है तथा न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत (AVC) से कम सभी कीमतों पर निर्गत शून्य होता है।
इससे संलग्न रेखाचित्र द्वारा भी दर्शा सकते हैं:
रेखाचित्र में फर्म के अल्पकालीन पूर्ति वक्र को मोटी रेखा से दर्शाया गया है।
दीर्घकाल में एक फर्म का पूर्ति वक्र क्या होता है?
दीर्घकाल में, एक फर्म का पूर्ति वक्र उसके दीर्घकालीन सीमांत लागत वक्र का न्यूनतम दीर्घकालीन औसत लागत से ऊपर को उठता हुआ भाग होता है तथा न्यूनतम दीर्घकालीन औसत लागत से कम सभी कीमतों पर निर्गत का स्तर शून्य होता हैं।
इसे संलग्न रेखा-चित्र द्वारा भी दर्शा सकते हैं:
क्या एक प्रतिस्पर्धी बाज़ार में कोई लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक निर्गत स्तर पर उत्पादन कर सकती है, जब सीमांत लागत घट रही हो? व्याख्या कीजिए।
नहीं एक प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक निर्गत स्तर पर उत्पादन नहीं कर सकती है यदि सीमांत लागत घट रही हो। क्योंकि अधिकतम लाभ की आवश्यक शर्त है:
(i) P(कीमत) = MC (सीमांत लागत)
(ii) P (कीमत) > MC (सीमांत लागत)
इस प्रकार बाज़ार कीमत(P) के MC से कम होने पर लाभ नहीं होगा।
यदि एक फर्म बाज़ार कीमत की तुलना में घटती हुई सीमांत लागत पर उत्पादन करती है तो फर्म को लाभ होगा, परन्तु अधिकतम लाभ नहीं होगा।
क्योंकि अधिकतम लाभ के लिए यह आवश्यक है कि बाज़ार कीमत (P) और सीमांत लागत (MC) बराबर हो।
इसे हम संलंग रेखाचित्र द्वारा भी दर्शा सकते हैं:
संलग्न रेखाचित्र में फर्म की सीमांत लागत E1 और E के बीच बाज़ार कीमत से कम है जो लाभ की स्थिति दर्शाता है, परन्तु फर्म को अधिकतम लाभ E बिंदु पर प्राप्त होगा।
क्या अल्पकाल में प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक उत्पादन कर सकती है, यदि बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम है, व्याख्या कीजिए।
अल्पकाल में प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन नहीं करेगी, क्योंकि बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम हैं। स्थिर लागत की प्राप्ति को दीर्घकाल पर स्थगित किया जा सकता हैं, किन्तु परिवर्ती लागत अल्पकाल में प्राप्त होना आवश्यक माना जाता है। इसलिए जिस बिंदु पर बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम है उस पर फर्म कोई उत्पादन नहीं करेगी। SMC वक्र का वह भाग जो न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत के ऊपर होता है उसे ही फर्म का पूर्ति वक्र कहा जाता है।
इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा भी दिखा सकते हैं:
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