व्यष्टिअर्थशास्त्र एक परिचय Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्तिथि में फर्म का सिद्धांत
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    NCERT Solution For Class 12 ������������������ व्यष्टिअर्थशास्त्र एक परिचय

    पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्तिथि में फर्म का सिद्धांत Here is the CBSE ������������������ Chapter 4 for Class 12 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 12 ������������������ पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्तिथि में फर्म का सिद्धांत Chapter 4 NCERT Solutions for Class 12 ������������������ पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्तिथि में फर्म का सिद्धांत Chapter 4 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 12 ������������������.

    Question 1
    CBSEHHIECH12013809

    एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार की क्या विशेषताएँ हैं ?

    Solution
    1. क्रेताओं और विक्रेताओं की बहुत बड़ी संख्या: पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाज़ार में क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या बहुत बड़ी होती है। इस तरह प्रत्येक क्रेता-विक्रेता कुल बिक्री का बहुत ही छोटा भाग खरीदता अथवा बेच-पाता है।
    2. एक समान या समरूप वस्तु: पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में प्रत्येक फॉर्म समरूप वस्तु बेचती है। वस्तु इतनी समरूप होती है कि कोई क्रेता दो भिन्न विक्रेताओं की वस्तु में भेद नहीं कर सकता। सभी विक्रेताओं द्वारा बेची गई वस्तुएँ गुण, आकार अथवा रंग- रूप में एक समान होती हैं।
    3. पूर्ण ज्ञान: पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार के अंतर्गत क्रेता और विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है। उन्हें बाजार में प्रचलित कीमत की पूर्ण जानकारी होती है। वे यह भी जानते हैं कि समरूप वस्तु बेची जा रही है। ऐसे में क्रेता बाजार कीमत से अधिक कीमत देने को तैयार नहीं होंगे तथा विक्रेता को बिक्री लागतें खर्च करने की आवश्यकता नहीं है।
    4. पूर्ण स्वतंत्रता: पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार के अंतर्गत किसी भी फॉर्म को उद्योग में प्रवेश करने अथवा उसे छोड़कर बाहर जाने की पूर्ण स्वतंत्र होती है। जब उद्योग में लाभ हो रहे हों, तो नई फर्में उद्योग में प्रवेश कर सकती हैं और जब हानि की अवस्था हो,तो कुछ फर्में उद्योग छोड़कर जा सकती है।
    5. विक्रय लागत का अभाव: पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में वस्तुएँ समरूप होती हैं, इसलिए एक फर्म को वस्तु के प्रचार, विज्ञापन आदि पर व्यय करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। अतः पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाज़ार में बिक्री और परिवहन लागत शून्य होती है।
    Question 2
    CBSEHHIECH12013810

    एक फर्म की संप्राप्ति, बाजार कीमत तथा उसके द्वारा बेची गई मात्रा में क्या संबंध है?

    Solution

    एक फर्म की संप्राप्ति, बाज़ार कीमत तथा उसके द्वारा बेचीं गई मात्रा का गुणनफल है अर्थात् 
    फर्म की कुल संप्राप्ति = बिक्री की मात्रा x बाज़ार कीमत
    अथवा
                    TR = q x p
    यहाँ,  TR = कुल संप्राप्ति,  q = बिक्री की मात्रा तथा p = कीमत।

    Question 3
    CBSEHHIECH12013811

    कीमत रेखा क्या है ?

    Solution

    कीमत रेखा, बाजार कीमत तथा फर्म के उत्पाद स्तर के मध्य संबंध को दर्शाती है। बाजार कीमत को Y अक्ष पर तथा उत्पाद को X अक्ष पर दर्शाया जाता है, क्योंकि बाजार कीमत P पर स्थिर है। एक आड़ी-सीधी रेखा होती है, जो अक्ष को P के बराबर ऊँचाई पर काटती है। इस आड़ी-सीधी रेखा को कीमत रेखा कहते हैं। कीमत रेखा एक फर्म के माँग वक्र को भी दर्शाती है।
    चिन्न दर्शाता है कि कीमत रेखा P फर्म के उत्पाद से स्वतंत्र हैं। इसका अर्थ है कि फर्म कीमत P पर जितनी चाहे उतनी इकाइयाँ बेच सकती है।

     

    Question 4
    CBSEHHIECH12013812

    एक कीमत-स्वीकारक फर्म का कुल संप्राप्ति वक्र, ऊपर की ओर प्रवणता वाली सीधी रेखा क्यों होती है ? यह वक्र उद् गम से होकर क्यों गुजरती है ?

    Solution

    कुल आगम चक्र मूल बिन्दु से गुजरता है, क्योंकि जब उत्पादन शून्य होगा, फर्म का कुल आगम भी शून्य होगा। जैसे-जैसे उत्पादन बेचा जाता है, कुल आगम बढ़ता है। वक्र पर सरल रेखीय समीकरण है:
    TR = P X Q
    इस प्रकार, पूर्ण प्रतियोगिता में कुल आगम ऊपर उठती हुई सीधी रेखा होती। है।
    इसका अर्थ है कि कुल आगम बेचे गए उत्पादन के समान अनुपात में बढ़ता हैं (क्योंकि कीमत स्थिर होती है)।

    Question 5
    CBSEHHIECH12013813

    एक कीमत-स्वीकारक फर्म का बाज़ार कीमत तथा औसत संप्राप्ति में क्या संबंध है ?

    Solution

    एक कीमत-स्वीकारक फर्म का बाज़ार कीमत तथा औसत संप्राप्ति सदैव बराबर होती है क्योंकि बेचीं गई प्रत्येक इकाई के मूल्य में कोई परिवर्तन नहीं होता। अर्थात् 

     

    Question 6
    CBSEHHIECH12013814

    एक कीमत-स्वीकारक फर्म की बाज़ार कीमत तथा सीमांत संप्राप्ति में क्या संबंध है?

    Solution

    एक कीमत-स्वीकारक फर्म की बाज़ार कीमत तथा सीमांत संप्राप्ति एक-दूसरे के बराबर होते है क्योंकि बेचीं गई हर अतिरिक्त इकाई की कीमत एक-समान होती है। अर्थात्  
               

    Question 7
    CBSEHHIECH12013815

    एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म की सकारात्मक उत्पादन करने की क्या शर्तें हैं ?

    Solution

    एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म की सकारात्मक उत्पादन करने की शर्तें निम्नलिखित हैं:

    1. बाज़ार कीमत (P) तथा सीमांत लागत (MC) X उत्पादन पर बराबर होते हैं।
    2. सीमांत लागत (MC) X पर अह्र-असमान (non-decreasing) होती है।
    3. अल्पकाल में X उत्पादन पर बाज़ार कीमत (P), औसत परिवर्तनशील लागत (AVC) के बराबर अथवा अधिक होनी चाहिए।

    Question 8
    CBSEHHIECH12013816

    क्या प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म जिसकी बाज़ार कीमत सीमांत लागत के बराबर नहीं है, उसका निर्गत का स्तर सकारात्मक हो सकता है। व्याख्या कीजिए।

    Solution

    प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म जिसकी बाज़ार कीमत सीमांत लागत के बराबर नहीं है, उसके निर्गत का स्तर सकारात्मक नहीं हो सकता है, यदि बाज़ार कीमत सीमांत लागत और औसत परिवर्ती लागत से कम है।

    यदि बाज़ार कीमत सीमांत लागत से कम है, लेकिन औसत परिवर्ती लागत से अधिक है तो उसके निर्गत का स्तर सकारात्मक हो सकता है। ऐसा इसलिए होता है की फर्म का उद्देश्य हानि को कम करना भी होता है। यदि बाज़ार कीमत सीमांत लागत और औसत परिवर्ती लागत से कम है तो उत्पादन व बिक्री से हानि अधिक होगी। इसलिए उत्पादन बंद करना अधिक लाभदायक होगा।
    यदि बाज़ार कीमत सीमांत लागत से कम, लेकिन औसत परिवर्ती लागत से अधिक है तो उत्पादन जारी रखने पर फर्म को हानि कम होगी। एक फर्म का अधिकतम लाभ तभी होगा जब बाज़ार कीमत सीमांत लागत के बराबर होगी।

    Question 9
    CBSEHHIECH12013817

    प्रौद्योगिकीय प्रगति एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है ?

    Solution

    प्रौद्योगिकीय प्रगति एक फर्म के पूर्ति वक्र को प्रभावित करती है। यदि प्रौद्योगिकी में सुधार होता है तो उन्हीं पूर्ववत संसाधनों से अधिक इकाइयों का उत्पादन संभव हो जाता है। फलस्वरूप उत्पादन लागत में कमी आती है और पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाता है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दिखाया गया है। आरम्भ में OP कीमत पर पूर्ति PE है, प्रौद्योगिकी प्रगति के पश्चात समान कीमत पर पूर्ति बढ़कर PE1 हो जाती है।

    Question 10
    CBSEHHIECH12013818

    इकाई कर लगाने से एक फर्म का पूर्ति वक्र किस प्रकार प्रभावित करता है ?

    Solution

    जब किसी वस्तु पर इकाई कर लगता है, तो उस वस्तु की इकाई (औसत) व सीमांत लागत में वृद्धि होती हैं। परिणाम-स्वरूप वस्तु की पूर्ति कम हो जाती है और पूर्ति वक्र बाई ओर खिसक जाता है। जैसा की संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है। आरम्भ में OP कीमत पर उत्पादक PE मात्रा की पूर्ति करने को तैयार था। इकाई कर के लगने से वह प्रचलित कीमत पर केवल PE1 मात्रा की पूर्ति ही करता है। पूर्ति वक्र अब SS से पीछे को खिसककर S1S1 बन जाता है।  

    Question 11
    CBSEHHIECH12013819

    किसी आगत की कीमत में वृद्धि एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है ?

    Solution

    सामान्यतया वस्तु की पूर्ति और लागत में ऋणात्मक संबंध होता है। आगतों की कीमत में वृद्धि (जैसे कच्चे माल की कीमत में वृद्धि, श्रमिकों की मज़दूरी में वृद्धि) से वस्तु की लागत में वृद्धि होने के फलस्वरूप वस्तु की पूर्ति कम हो जाएगी और पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाता है। जैसाकि संलग्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है। रेखाचित्र में SS प्रारम्भिक पूर्ति वक्र है। आगत में वृद्धि होने पर यह बाईं ओर खिसकर S1S1 हो जाता है।

    Question 12
    CBSEHHIECH12013820

    निम्न तालिका में कुल संप्राप्ति, सीमांत संप्राप्ति तथा औसत संप्राप्ति का परिकलन कीजिए। वस्तु की प्रति इकाई बाज़ार कीमत 10 रूपए है।

    बेचीं गई मात्रा कुल संप्राप्ति सीमांत संप्राप्ति औसत संप्राप्ति
    0      
    1      
    2      
    3      
    4      
    5      
    6      

     

    Solution

    (i) कुल संप्राप्ति = बेचीं गई मात्रा x प्रति इकाई कीमत 
    (ii) 

    (iii)

    बेचीं गई मात्रा प्रति इकाई कीमत (रु)   कुल संप्राप्ति सीमांत संप्राप्ति औसत संप्राप्ति
    0 10 - - -
    1 10 10 10 10
    2 10 20 10 10
    3 10 30 10 10
    4 10 40 10 10
    5 10 50 10 10
    6 10 60 10 10

    Question 13
    CBSEHHIECH12013821

    निम्न तालिका में एक प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल संप्राप्ति तथा कुल लागत सारणियों को दर्शाया गया है। प्रत्येक उत्पादन स्तर के लाभ की गणना कीजिए। वस्तु की बाज़ार कीमत भी निर्धारित कीजिए।

    बेचीं गई मात्रा कुल संप्राप्ति (रु) कुल लागत (रु)   लाभ (रु)
    0 0 5 -
    1 5 7 -
    2 10 10 -
    3 15 12 -
    4 20 15 -
    5 25 23 -
    6 30 33 -
    7 35 40 -

     

    Solution

    प्रयोग किए गए सूत्र:

    (i) कुल संप्राप्ति = उत्पादन x कीमत 
    (ii) लाभ = कुल संप्राप्ति - कुल लागत।

    बेचीं गई मात्रा कुल संप्राप्ति (रु) कुल लागत (रु)   लाभ (रु) (TR - TC) कीमत (रु)
    0 0 5 -5 0
    1 5 7 -2 5
    2 10 10 0 5
    3 15 12 3 5
    4 20 15 5 5
    5 25 23 2 5
    6 30 33 -3 5
    7 35 40 -5 5
    Question 14
    CBSEHHIECH12013822

    निम्न तालिका में एक प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल लागत सारणी को दर्शाया गया है। वस्तु की कीमत 10 रु० दी हुई है। प्रत्येक उत्पादन स्तर पर लाभ की गणना कीजिए। लाभ-अधिकतमीकरण निर्गत स्तर ज्ञात कीजिए।

    कीमत (इकाई) रु कुल लागत (इकाई)
    0 5
    1 15
    2 22
    3 27
    4 31
    5 38
    6 49
    7 63
    8 81
    9 101
    10 123

     

    Solution

    प्रयोग किए गए सूत्र:
    (i) कुल संप्राप्ति = उत्पादन x कीमत
    (ii) लाभ = कुल संप्राप्ति - कुल लागत  

    उत्पादन कीमत (रु) कुल संप्राप्ति (रु) कुल लागत (रु) लाभ
    0 10 0 5 -5
    1 10 10 15 -5
    2 10 20 22 -2
    3 10 30 27 3
    4 10 40 31 9
    5 10 50 38 12
    6 10 60 49 11
    7 10 70 63 7
    8 10 80 81 -1
    9 10 90 101 -11
    10 10 100 123 -23
    Question 17
    CBSEHHIECH12013825

    एक बाज़ार में 3 समरूपी फर्म हैं। निम्न तालिका फर्म- 1 की पूर्ति सारणी दर्शाती है। बाज़ार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।
             

    कीमत (रु)  SS1 (इकाई) 
    0 0
    1 0
    2 2
    3 4
    4 6
    5 8
    6 10
    7 12
    8 14

     

    Solution

    क्योंकि तीनों फर्में समरूप हैं, हम बाज़ार पूर्ति अनुसूची को फर्म-1 की अनुसूची को 3 से गुणा करके प्राप्त कर सकते हैं। 

    कीमत (रु)  SS1 (इकाई)  MSS (इकाई)
    0 0 0
    1 0 0
    2 2 6
    3 4 12
    4 6 18
    5 8 24
    6 10 30
    7 12 36
    8 14 42

     

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    Question 18
    CBSEHHIECH12013826

    10 रु प्रति इकाई बाज़ार कीमत पर एक फर्म की संप्राप्ति 50 रू है। बाज़ार कीमत बढ़कर 15 रु हो जाती है और अब फर्म को 150 रु की संप्राप्ति होती है। पूर्ति वक्र की कीमत लोच क्या है ?

    Solution

    कुल संप्राप्ति = 50 रु 
    वस्तु की पुरानी कीमत = 10 रु
    वस्तु की बेचीं गई पुरानी इकाइयाँ  = 50/10 = 5 इकाइयाँ 
      वस्तु की नई कीमत  = 15 रु
    वस्तु की कुल संप्राप्ति  = 150 रु
     वस्तु की बेची गई नई इकाइयाँ = 150/15 = 10 इकाइयाँ 
    पूर्ति की कीमत लोच (es)
                           =  q p × p0q0
                         = p0 = 10,  p = 15 - 10 = 5, q0 = 5, q = 10-5 =5= 55 × 105= 5025 = 2

    Question 19
    CBSEHHIECH12013827

    एक वस्तु की बाजार कीमत 5 रु० से बदलकर 20 रु० हो जाती है। फलस्वरूप फर्म पूर्ति की मात्रा 15 इकाई बढ़ जाती है। फर्म के पूर्ति वक्र की कीमत लोच 0.5 हैं। फर्म का आरंभिक तथा अंतिम निर्गत स्तर ज्ञात करें।

    Solution

    पूर्ति की कीमत लोच (Es) = 0.5
    पूर्व कीमत (p) = रु 5
    कीमत में परिवर्तन  (Δ p) = रु (20- 5) = 15 रु
    पूर्ति में परिवर्तन (Δ q) = 15 इकाइयाँ 
    अब,
        Es = qp × pq0.5 = 1515 × 5qq = 10
    आरंभिक निर्गत स्तर (q) = 10
    अंतिम निर्गत स्तर = (q + Δ q) = 15 + 10 = 25 इकाइयाँ  

    Question 20
    CBSEHHIECH12013828

    10 रु बाज़ार कीमत पर एक फर्म निर्गत की 4 इकाइयों की पूर्ति करती है। बाज़ार कीमत बढ़कर 30 रु हो जाती हैं। फर्म की पूर्ति की कीमत लोच 1.25 है। नई कीमत पर फर्म कितनी मात्रा की पूर्ति करेगी ?

    Solution

    P = 10 रु  
    Q = 4 इकाइयाँ 
    (Δ P) = (30 रु - 10 रु) = 20 रु
    पूर्ति की कीमत लोच (Es) = 1.25
    चूँकि,
       Es = PQ × QP1.25 = 104 ×  Q20, Q = 10
    पूर्ति की नई मात्रा = पूर्ति की पुरानी मात्रा + पूर्ति में परिवर्तन i.e. (Q + ΔQ) 
                       = 4 + 10 = 14 इकाइयाँ 

    Question 21
    CBSEHHIECH12013829

    बाज़ार में फर्मों की संख्या में वृद्धि, बाज़ार पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है ?

    Solution

    बाज़ार में फर्मों की संख्या में वृद्धि के कारण बाज़ार पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाएगा। क्योंकि बाज़ार पूर्ति बाज़ार में उपलब्ध फर्मों द्वारा ही की जाती हैं। अत: दोनों का सीधा सम्बन्ध हैं। इसे हम संग्लन रेखाचित्र द्वारा दिखा सकते हैं।


    संग्लन रेखाचित्र में प्रारम्भिक पूर्ति वक्र SS है, जिस पर OP कीमत पर OQ1 पूर्ति है। फर्मों की संख्या में वृद्धि से पूर्ति वक्र S1S1 हो जाता है जिससे उसी कीमत OP पर पूर्ति बढ़कर OQ1 हो जाती है।

    Question 22
    CBSEHHIECH12013830

    पूर्ति की कीमत लोच का क्या अर्थ है ? हम इसे कैसे मापते हैं ?

    Solution

    वस्तु की कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप पूर्ति की मात्रा में होने वाला परिवर्तन पूर्ति की कीमत लोच कहलाता हैं। पूर्ति की कीमत लोच को eद्वारा दर्शाया जाता हैं:

    अथवा
    es = PQ × QP

    Question 23
    CBSEHHIECH12013831

    क्या दीर्घकाल में स्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर कर सकती है ? यदि बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत लागत से कम है, व्याख्या कीजिए।

    Solution
    1. यदि बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत लागत से कम है तो दीर्घकाल में स्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन नहीं करेगी।
    2. यदि एक फर्म इस स्तर पर उत्पादन करती है तो उसकी कुल लागत कुल संप्राप्ति से अधिक होगी, जिसके फलस्वरूप फर्म को हानि उठानी होगी। इसलिए दीर्घकाल में फर्म की कीमत औसत लागत के बराबर या अधिक होनी चाहिए।
    3. दीर्घकाल में सारी लागत परिवर्ती होती है। अत: यदि औसत लागत तक भी एक उत्पादक को प्राप्त नहीं हो पाती तो वह उत्पादन कदापि नहीं करेगा।
    Question 24
    CBSEHHIECH12013832

    अल्पकाल में एक फर्म का पूर्ति वक्र क्या होती है ?

    Solution

    अल्पकाल में, एक फर्म का अल्पकालीन पूर्ति वक्र न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से ऊपर अल्पकालीन कीमत वक्र का बढ़ता हुआ भाग होता है तथा न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत (AVC) से कम सभी कीमतों पर निर्गत शून्य होता है।
     इससे संलग्न रेखाचित्र द्वारा भी दर्शा सकते हैं:

    रेखाचित्र में फर्म के अल्पकालीन पूर्ति वक्र को मोटी रेखा से दर्शाया गया है। 

    Question 25
    CBSEHHIECH12013833

    दीर्घकाल में एक फर्म का पूर्ति वक्र क्या होता है? 

    Solution

    दीर्घकाल में, एक फर्म का पूर्ति वक्र उसके दीर्घकालीन सीमांत लागत वक्र का न्यूनतम दीर्घकालीन औसत लागत से ऊपर को उठता हुआ भाग होता है तथा न्यूनतम दीर्घकालीन औसत लागत से कम सभी कीमतों पर निर्गत का स्तर शून्य होता हैं।

    इसे संलग्न रेखा-चित्र द्वारा भी दर्शा सकते हैं:

     

    Question 26
    CBSEHHIECH12013834

    क्या एक प्रतिस्पर्धी बाज़ार में कोई लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक निर्गत स्तर पर उत्पादन कर सकती है, जब सीमांत लागत घट रही हो? व्याख्या कीजिए।

    Solution

    नहीं एक प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक निर्गत स्तर पर उत्पादन नहीं कर सकती है यदि सीमांत लागत घट रही हो। क्योंकि अधिकतम लाभ की आवश्यक शर्त है:
    (i)   P(कीमत)  = MC (सीमांत लागत) 
    (ii)  P (कीमत) > MC (सीमांत लागत)
    इस प्रकार बाज़ार कीमत(P) के MC से कम होने पर लाभ नहीं होगा।
    यदि एक फर्म बाज़ार कीमत की तुलना में घटती हुई सीमांत लागत पर उत्पादन करती है तो फर्म को लाभ होगा, परन्तु अधिकतम लाभ नहीं होगा। 
    क्योंकि अधिकतम लाभ के लिए यह आवश्यक है कि बाज़ार कीमत (P) और सीमांत लागत (MC) बराबर हो।

    इसे हम संलंग रेखाचित्र द्वारा भी दर्शा सकते हैं:

    Wired Faculty
    संलग्न रेखाचित्र में फर्म की सीमांत लागत E1 और E के बीच बाज़ार कीमत से कम है जो लाभ की स्थिति दर्शाता है, परन्तु फर्म को अधिकतम लाभ E बिंदु पर प्राप्त होगा।

    Question 27
    CBSEHHIECH12013835

    क्या अल्पकाल में प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक उत्पादन कर सकती है, यदि बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम है, व्याख्या कीजिए।

    Solution

    अल्पकाल में प्रतिस्पर्धी बाज़ार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन नहीं करेगी, क्योंकि बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम हैं। स्थिर लागत की प्राप्ति को दीर्घकाल पर स्थगित किया जा सकता हैं, किन्तु परिवर्ती लागत अल्पकाल में प्राप्त होना आवश्यक माना जाता है। इसलिए जिस बिंदु पर बाज़ार कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम है उस पर फर्म कोई उत्पादन नहीं करेगी। SMC वक्र का वह भाग जो न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत के ऊपर होता है उसे ही फर्म का पूर्ति वक्र कहा जाता है।  

    इसे हम संलग्न रेखाचित्र द्वारा भी दिखा सकते हैं:

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