भारतीय इतिहास के कुछ विषय Iii Chapter 13 महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन
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    NCERT Solution For Class 12 ������������������ भारतीय इतिहास के कुछ विषय Iii

    महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन Here is the CBSE ������������������ Chapter 13 for Class 12 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 12 ������������������ महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन Chapter 13 NCERT Solutions for Class 12 ������������������ महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन Chapter 13 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 12 ������������������.

    Question 1
    CBSEHHIHSH12028353

    महात्मा गाँधी ने खुद को आम लोगों जैसा दिखाने के लिए क्या किया?

    Solution

    इस में कोई दोराहे नहीं कि महात्मा गाँधी के जीवन व्यापन में आम लोगों कि छवि दिखती थी:

    1. गांधी जी ने स्वयं को आम लोगों जैसा दिखाने के लिए अनेक बातें अपने जीवन में अपनाई-सर्वप्रथम सामान्य जन्म की दशा को जानने के लिए 1915 में (अफ्रीका से आगे के बाद) सारे देश का भ्रमण किया। उन्होंने भारत में अपना सार्वजनिक भाषण फरवरी, 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह में दिया। इस भाषण से स्पष्ट होता है कि वे आम जनता से जुड़ना चाहते थे।
    2. गाँधी जी सामान्य लोगों की ही भाषा बोलते थे और उनकी ही तरह के वस्त्र पहनते थे। सामान्यजनों के साथ गाँधी जी की पहचान उनके वस्त्रों से विशेष रूप से झलकती थी।
    3. गाँधीजी आम लोगों के बीच घुल-मिलकर रहते थे। उनके मन में उनके कष्टों के प्रति हमदर्दी थी। इसलिए वे उनके प्रति सहानुभूति जताते थे।
    4. गाँधी जी की वेशभूषा अत्यधिक सीधी-सादी थी। वे जनसामान्य के मध्य में एक साधारण-सी धोती में जाते थे। 1921 ई० में दक्षिण भारत की यात्रा के दौरान गाँधी जी ने अपना सिर मॅडवा लिया था और गरीबों के साथ तादात्म्य स्थापित करने के लिए वे सूती वस्त्र पहनने लगे थे।
    5. वे प्रतिदिन कुछ समय के लिए चरखा कातते थे। इस प्रकार उसने आम जनता के श्रम को गौरव प्रदान किया।

    Question 2
    CBSEHHIHSH12028354

    किसान महात्मा गाँधी को किस तरह देखते थे?

    Solution

    किसान महात्मा गाँधी का अत्यधिक व्यक्तित्व सम्मान करते थे। 'गाँधी बाबा', 'गाँधी महाराज ' अथवा सामान्य 'महात्मा' जैसे अलग-अलग नामों से ज्ञात गाँधी जी भारतीय किसान के लिए एक उद्वारक के समान थे जो उनकी ऊँची करों और दमनात्मक अधिकारियों से सुरक्षा करने वाले और उनके जीवन में मान-मर्यादा और स्वायत्तता वापस लाने वाले थे। भारत कि गरीब जनता विशेष तौर पर किसान गाँधी जी कि सात्विक जीवन-शैली ओर उनके द्वारा अपनाई गई धोती तथा चरखा जैसी चीज़ों से अत्यधिक प्रभावित थे।  
    जाति से महात्मा गाँधी एक व्यापारी व पेशे से वकील थे, लेकिन उनकी सादी जीवन-शैली तथा हाथों से काम करने के प्रति उनके लगाव की वजह से वे गरीब श्रमिकों के प्रति बहुत अधिक समानुभूति रखते थे तथा बदले में वे लोग गाँधी जी से समानुभूति रखते थे। इतना ही नहीं, गरीब किसान उनकी 'महात्मा' के समान पूजा भी करते थे। 

    Question 3
    CBSEHHIHSH12028355

    नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का महत्वपूर्ण मुद्दा क्यों बन गया था?

    Solution

    नमक एक बहुमूल्य राष्ट्रीय संपदा थी जिस पर औपनिवेशिक सरकार ने अपना एकाधिकार स्थापित कर लिया था। यह कानून द्वारा स्थापित एकाधिकार भारतीय जनता के लिए एक अभिशाप के समान था। इसलिए गाँधी जी ने औपनिवेशिक शासन के विरोध के लिए नमक का प्रतीक रूप में चुनाव किया और शीघ्र ही नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बन गया।

    नमक कानून के चुनाव के निम्नलिखित कारण थे:

    1. यह कानून ब्रिटिश भारत के सर्वाधिक घृणित कानूनों में से एक था। इसके अनुसार नमक के उत्पादन और विक्रय पर राज्य का एकाधिकार था।
    2. भारतीय विशेषत: जन-साधारण नमक कानून को घृणा की दृष्टि से देखता था। प्रत्येक घर में नमक भोजन का एक अपरिहार्य अंग था। किन्तु भारतीयों द्वारा घरेलू प्रयोग के लिए भी स्वयं नमक बनाए जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसी कारण सभी को ऊँचे मूल्यों पर दुकानों से नमक खरीदना पड़ता था।
    3. नमक पर राज्य का एकाधिकार अत्यधिक अलोकप्रिय था। जनसामान्य में इस कानून के प्रति असंतोष व्याप्त था।
    4. नमक उत्पादन पर सरकार के एकाधिकार ने लोगों को एक महत्त्वपूर्ण किन्तु सरलतापूर्वक उपलब्ध ग्राम-उद्योग से वंचित कर दिया था।

    Question 4
    CBSEHHIHSH12028356

    राष्ट्रीय आंदोलन के अध्ययन के लिए अखबार महत्त्वपूर्ण स्रोत क्यों हैं?

    Solution

    राष्ट्रीय आंदोलन के अध्ययन के स्रोतों में अख़बारों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनसे हमें राष्ट्रीय आंदोलन के अध्ययन में महत्त्वपूर्ण सहायता मिलती है। ये अख़बार राष्ट्रिय आंदोलन को समझने तथा इसका अध्ययन करने के लिए इतिहासकारों के लिए महत्वपूर्ण स्रोत हैं। इस संदर्भ में निम्नलिखित बातें उल्लेखनीय हैं:

    1. अंग्रेजी एवं विभिन्न भारतीय भाषाओं में छपने वाले समकालीन समाचार-पत्रों में राष्ट्रीय आंदोलन से संबंधित सभी घटनाओं का विवरण मिल जाता हैं।
    2. समाचार-पत्रों से राष्ट्रीय आंदोलन के नेताओं (राष्ट्रिय, प्रांतीय, स्थानीय स्तर पर) के विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
    3. समाचार-पत्रों से राष्ट्रीय आंदोलन के प्रति ब्रिटिश सरकार के दृष्टिकोण का भी पता लगता है।
    4. समाचार-पत्रों द्वारा महात्मा गाँधी की गतिविधियों पर नज़र रखी जाती थी क्योंकि गाँधी जी से संबंधित समाचारों को विस्तृत रूप से प्रकाशित किया जाता था। अतः समाचार-पत्रों से विशेष रूप से महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन के स्वरूप का पता चलता हैं।
    5. समाचार-पत्रों से राष्ट्रीय आंदोलन से संबंधित महत्त्वपूर्ण घटनाओं एवं नेताओं के विषय में पक्ष और विपक्ष दोनों के विचार मिलते हैं।

    Question 5
    CBSEHHIHSH12028357

    चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक क्यों चुना गया?

    Solution

    चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक इसलिए चुना गया क्योंकि यह जन सामान्य से संबंधित था और स्वदेशी व आर्थिक प्रगति का प्रतीक था। गाँधीजी जी स्वयं प्रतिदिन अपना कुछ समय चरखा चलाने में व्यतीत किया करते थे। वे अन्य सहयोगियों को भी चरखा चलाने के लिए प्रोत्साहित करते थे। गाँधीजी का मानना था कि आधुनिक युग में मशीनों ने मानव को गुलाम बनाकर श्रम को हटा दिया हैं। इससे गरीबों का रोज़गार उनसे छिन्न गया हैं। गाँधीजी का विश्वास था कि चरखा मानव-श्रम के लिए गौरव को फिर से जीवित करेगा ओर जनता को स्वावलम्बी बनाएगा। वस्तुत: चरखा स्वदेशी तथा राष्ट्रवाद का प्रतीक बन गया। पारंपरिक भारतीय समाज में सूत कातने के काम को अच्छा नहीं समझा जाता था। गाँधीजी द्वारा सूत कातने के काम ने मानसिक श्रम एवं शारीरिक श्रम की खाई को कम करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

    Question 6
    CBSEHHIHSH12028358

    गोल मेज़ सम्मेलन में हुई वार्ता से कोई नतीजा क्यों नहीं निकल पाया?

    Solution

    1930 से 1932 की अवधि में ब्रिटिश सरकार ने भारत की समस्या पर बातचीत करने तथा नया एक्ट पास करने के लिए तीन गोलमेज़ सम्मेलनों का आयोजन किया, परंतु इन सम्मेलनों में किसी मुद्दे पर आम सहमति नहीं बन पाई। परिणामस्वरूप, इन सम्मेलनों में कोई महत्वपूर्ण निर्णय निकल कर सामने नहीं आया। तीनों सम्मेलनों में की गई कार्रवाई का वर्णन कुछ इस प्रकार है:

    1. प्रथम गोलमेज़ सम्मेलन: पहला गोलमेज़ सम्मेलन नवम्बर, 1930 में आयोजित किया गया जिसमें देश के प्रमुख नेता शामिल नहीं हुए। इसी कारण अंतत: यह बैठक निरर्थक साबित हुई। जनवरी 1931 में गाँधी जी को जेल से रिहा किया गया। अगले ही महीने वायसराय के साथ उनकी कई लंबी बैठकें हुई। इन्हीं बैठकों के बाद ''गाँधी-इर्विन समझौते'' पर सहमति बनी जिसकी शर्तो में सविनय अवज्ञा आंदोलन को वापस लेना, सारे कैदियों की रिहाई और तटीय इलाकों में नमक उत्पादन की अनुमति देना शामिल था।
    2. दूसरा गोलमेज़ सम्मेलन: दूसरा गोलमेज़ सम्मेलन 1931 के आखिर में लंदन में आयोजित हुआ। इसमें गाँधी जी कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे थे। उनका कहना था कि उनकी पार्टी पूरे भारत का प्रतिनिधित्व करती है। परन्तु उनके इस दावे को तीन पार्टियों ने चुनौती दी। मुस्लिम लीग का कहना था कि वह मुस्लिम अल्पसंख्यकों के हित में काम
      करती है। राजे-रजवाड़ों का दावा था कि कांग्रेस का उनके नियंत्रण वाले भूभाग पर कोई अधिकार नहीं है। तीसरी चुनौती तेज़-तर्रार वकील और विचारक बी. आर. अंबेडकर की ओर से थी जिनका कहना था कि गाँधी जी और कांग्रेस पार्टी निचली जातियों का प्रतिनिधित्व नहीं करती। परिणामस्वरूप लंदन में हुए इस सम्मेलन में कोई भी परिणाम नहीं निकला। इसलिए गाँधीजी को खाली हाथ ही लौटना पड़ा।
    3. तीसरा गोलमेज़ सम्मेलन: 17 नवंबर, 1932 को तीसरा सम्मेलन आयोजित किया गया। इसका इंग्लैंड के ही मजदूर दल ने बहिष्कार किया। भारत में कांग्रेस ने पुनः आंदोलन कि शुरुवात कर दी थी। अतः कांग्रेस ने भी इसका बहिष्कार किया। इसमें केवल 46 प्रतिनिधि ने भाग लिया। इनमें से अधिकतर ब्रिटिश सरकार की हाँ में हाँ मिलाने वाले थे।
      इस प्रकार यह स्पष्ट है कि इन सम्मेलनों की वार्ताओं में कोई महत्वपूर्ण परिणाम नहीं सामने आया।

    Question 7
    CBSEHHIHSH12028359

    निजी पत्रों और आत्मकथाओं से किसी व्यक्ति के बारे में क्या पता चलता है? ये स्रोत सरकारी ब्योरों से किस तरह भिन्न होते हैं?

    Solution

    निजी पत्र: निजी पत्र में किसी व्यक्ति के निजी विचारों की झलक मिलती है। इसमें प्राइवेट बातें मिलती है जिन्हें सार्वजनिक तौर पर अभिव्यक्त नहीं किया गया होता। इन पत्रों में हम लिखने वाले को अपना गुस्सा और पीड़ा, असंतोष और बेचैनी अपनी आशाएँ और हताशाएँ व्यक्त करते हुए देख सकते हैं। लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि बहुत सारे पत्र व्यक्तियों को लिखे जाते हैं इसलिए वे व्यक्तिगत पत्र होते हैं लेकिन कुछ हद तक वे जनता के लिए भी होते हैं। उन पत्रों की भाषा इस अहसास से भी तय होती है कि संभव है एक दिन उन्हें प्रकाशित कर दिया जाएगा।

    आत्मकथा: आत्मकथाएँ हमें उस अतीत का ब्योरा देती हैं जो मानवीय विवरणों के हिसाब से काफी समृद्ध होता है। वस्तुतः यह व्यक्ति के संपूर्ण जीवनकाल, जन्मस्थान, परिवार की पृष्ठभूमि, शिक्षा, वैचारिक प्रभाव, जीवन में उतार-चढ़ाव, प्रमुख घटनाओं आदि से जुड़ी होती हैं। लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि ये आत्मकथाएँ प्राय: स्मृति के आधार पर लिखी गई होती हैं। उनसे हमें पता चलता है कि लिखने वाले को क्या याद रहा, उसे कौन सी चीजें महत्त्वपूर्ण दिखाई दीं या वह क्या याद रखना चाहता था, या वह औरों की नजर में अपनी जिंदगी को किस तरह दर्शाना चाहता है। आत्मकथा लिखना अपनी तसवीर गढ़ने का एक तरीक़ा है।

    सरकारी ब्यौरे से भिन्नता: निजी पत्र और आत्मकथाएँ इतिहास के स्तोत्र के रूप में सरकारी ब्यूरो से पूरी तरह से भिन्न है। सरकार राष्ट्रीय आंदोलन और उसके नेताओं पर कड़ी नजर रखती थी। पुलिस और सी.आई.डी के द्वारा इन पर पाक्षिक रिपोर्ट तैयार की जाती थी। यह पूरा ब्योरा गुप्त रखा जाता था। इन रिपोर्टों को तैयार करने वाले सरकार, और स्वयं अपने पूर्वग्रहों, नीतियों दृष्टिकोण आदि से प्रभावित होते थे। इसके विपरीत निजी पत्रों में दो व्यक्तियों के मध्य आपसी विचारों का आदान-प्रदान और निजी स्तर पर जुड़ी बातों का विवरण होता था। अत: हम कह सकते हैं कि इन दोनों प्रकारों के स्रोतों के विवरण कि विशेषता तथा प्रकृति भिन्न होती हैं।  

    Question 8
    CBSEHHIHSH12028360

    असहयोग आंदोलन एक तरह का प्रतिरोध कैसे था?

    Solution

    असहयोग आंदोलन 1920 में महात्मा गाँधी के नेतृत्व में चलाया गया। यह अंग्रेजी शासन तथा सरकार की गलत नीतियों के विरुद्ध एक व्यापक जन-प्रतिरोध था:

    1. असहयोग आंदोलन एक तरह का प्रतिरोध इसलिए था क्योंकि ब्रिटिश सरकार द्वारा थोपे गए रॉलेट एक्ट जैसे कानून के वापस लिए जाने के लिए जनआक्रोश या प्रतिरोध अभिव्यक्ति का लोकप्रिय माध्यम था।
    2. असहयोग आंदोलन इसलिए भी प्रतिरोध था, क्योंकि यह ख़िलाफत आंदोलन को सहयोग करके देश के दो प्रमुख धार्मिक समुदायों-हिंदू और मुसलमानों को मिलाकर औपनिवेशिक शासन के प्रति जनता के सहयोग को अभिव्यक्त करने का माध्यम था।
    3. असहयोग आंदोलन इसलिए भी प्रतिरोध था, क्योंकि इसके द्वारा सरकारी नौकरियों, उपाधियों अवैतनिक पदों, सरकारी अदालतों, सरकारी संस्थाओं आदि का बहिष्कार किया जाना था। विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करके, सरकार द्वारा आयोजित चुनावों में भाग न लेकर, सरकारी करों का भुगतान न करके तथा सरकारी कानूनों की शांतिपूर्ण ढंग से अवहेलना करके ब्रिटिश शासन के प्रति अपना प्रतिरोध प्रकट करना चाहते थे।
    4. असहयोग आंदोलन इसलिए भी प्रतिरोध आंदोलन था, क्योंकि राष्ट्रीय नेता उन अंग्रेज़ अधिकारियों को कठोर दंड दिलाना चाहते थे जो अमृतसर के जालियाँवाला बाग में शांतिपूर्ण प्रदर्शन में शामिल प्रदर्शनकारियों पर होने वाले अत्याचार के उत्तरदायी थे। उन्हें सरकार ने कई महीनों के बाद भी किसी प्रकार का दंड नहीं दिया था।
    5. असहयोग आंदोलन ने सरकारी अदालतों का बहिष्कार करने के लिए सर्व साधारण और वकीलों को आह्वान किया। गाँधी जी के इस आह्वान पर वकीलों ने अदालतों में जाने से मना कर दिया।
    6. इस व्यापक लोकप्रिय प्रतिरोध का प्रभाव अनेक कस्बों और नगरों में कार्यरत श्रमिक वर्ग पर भी पड़ा। वे हड़ताल पर चले गए। जानकारों के अनुसार सन् 1921 में 396 हड़ताले हुईं जिनमें 6 लाख श्रमिक शामिल थे और इससे 30 लाख कार्य-दिवसों की हानि हुई।
    7. असहयोग आंदोलन का प्रतिरोध देश के ग्रामीणों क्षेत्र में भी दिखाई दे रहा था। उदाहरण के लिए, उत्तरी आंध्र की पहाड़ी जन-जातियों ने वन्य कानूनों की अवहेलना कर दी। अवध के किसानों ने कर नहीं चुकाया। अवध के किसानों ने औपनिवेशिक अधिकारियों का सामान ढ़ोने से साफ मना कर दिया। इन आंदोलनों को कभी-कभी स्थानीय राष्ट्रवादी नेतृत्व की अवज्ञा करते हुए भी कार्यान्वित किया गया। इस प्रकार यह कहना उचित ही होगा कि असहयोग आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य औपनिवेशिक शासन का प्रतिरोध करना था।

    Question 9
    CBSEHHIHSH12028361

    महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीय आंदोलन के स्वरूप को किस तरह बदल डाला?

    Solution

    महात्मा गांधी ने निम्नलिखित तरीकों से भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के आधार को व्यापक बनाया और 1922 तक इसके स्वरूप को एकदम परिवर्तित कर दिया था:

    1. 1915 में भारत आने पर गांधीजी ने सारे भारत का दौरा शुरू किया। उन्होंने स्थानीय आन्दोलनों जैसे-चंपारन, अहमदाबाद व खेड़ा में सत्याग्रह का सफल परीक्षण किया। उन्होंने अपने नेतृत्व में अपनी नीतियों, विचारों, कार्यक्रमों और जन-आंदोलनों द्वारा राष्ट्रिय आंदोलन के स्वरूप को काफी हद तक बदल दिया। गांधीजी के तरीके और विचार के मुख्य सिद्धांत और स्तम्भ थे: सत्याग्रह, अहिंसा, लोक शक्ति में विश्वास, साधन और साध्य की श्रेष्ठता में विश्वास।
    2. महात्मा गाँधी द्वारा दक्षिण अफ्रीका में प्राप्त की गई सफलताओं ने जनशक्ति के महत्व को स्पष्ट कर दिया। अतः भारत लौटने पर गाँधी जी ने देश की बहुसंख्यक कृषक जनता को भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की ओर आकर्षित किया और उसे भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की मुख्य धारा से जोड़ा।
    3. गांधीजी ने राष्ट्रीय आंदोलन को व्यापक बनाने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को सच्चे मायनों में जनाधार वाला संगठन बनाया। उन्होंने इसके लिए सावधानीपूर्वक कांग्रेस का पुनर्गठन किया। भारत के विभिन्न भागों में कांग्रेस की नई शाखाएं खोली गई। ग्राम स्तर की कांग्रेस कमेटी भी बनाई गई।
    4. गाँधीजी ने 1920 से 1945 के मध्य 3 बड़े आंदोलन अंग्रेज सरकार के खिलाफ चलाए। इन आंदोलनों में भारतीय जनता के सभी वर्गों ने भाग लिया। जन आंदोलनों ने ही राष्ट्रीय आंदोलन को सही रूप में राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान किया। इन आंदोलनों में मुख्यत आंदोलन: असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन।
    5. महात्मा गाँधी महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्रदान करना चाहते थे और उन्हें राष्ट्रीय आंदोलन की मुख्य धारा में सम्मिलित करना चाहते थे। हिंदू-मुस्लिम एकता, छुआछूत विरोधी संघर्ष और देश की महिलाओं की सामाजिक स्थिति को सुधारना, गाँधी जी के तीन महत्त्वपूर्ण लक्ष्य थे।

    अत: यह स्पष्ट है कि गाँधी जी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रिय आंदोलन विश्व का सबसे बड़ा आंदोलन बन गया था। यह पूरा आंदोलन उन्होंने अहिंसात्मक ढंग से चलाया जिसके कारण यह विश्व में काफी विख्यात हुआ। 

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