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महात्मा गाँधी ने खुद को आम लोगों जैसा दिखाने के लिए क्या किया?
इस में कोई दोराहे नहीं कि महात्मा गाँधी के जीवन व्यापन में आम लोगों कि छवि दिखती थी:
किसान महात्मा गाँधी को किस तरह देखते थे?
किसान महात्मा गाँधी का अत्यधिक व्यक्तित्व सम्मान करते थे। 'गाँधी बाबा', 'गाँधी महाराज ' अथवा सामान्य 'महात्मा' जैसे अलग-अलग नामों से ज्ञात गाँधी जी भारतीय किसान के लिए एक उद्वारक के समान थे जो उनकी ऊँची करों और दमनात्मक अधिकारियों से सुरक्षा करने वाले और उनके जीवन में मान-मर्यादा और स्वायत्तता वापस लाने वाले थे। भारत कि गरीब जनता विशेष तौर पर किसान गाँधी जी कि सात्विक जीवन-शैली ओर उनके द्वारा अपनाई गई धोती तथा चरखा जैसी चीज़ों से अत्यधिक प्रभावित थे।
जाति से महात्मा गाँधी एक व्यापारी व पेशे से वकील थे, लेकिन उनकी सादी जीवन-शैली तथा हाथों से काम करने के प्रति उनके लगाव की वजह से वे गरीब श्रमिकों के प्रति बहुत अधिक समानुभूति रखते थे तथा बदले में वे लोग गाँधी जी से समानुभूति रखते थे। इतना ही नहीं, गरीब किसान उनकी 'महात्मा' के समान पूजा भी करते थे।
नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का महत्वपूर्ण मुद्दा क्यों बन गया था?
नमक एक बहुमूल्य राष्ट्रीय संपदा थी जिस पर औपनिवेशिक सरकार ने अपना एकाधिकार स्थापित कर लिया था। यह कानून द्वारा स्थापित एकाधिकार भारतीय जनता के लिए एक अभिशाप के समान था। इसलिए गाँधी जी ने औपनिवेशिक शासन के विरोध के लिए नमक का प्रतीक रूप में चुनाव किया और शीघ्र ही नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बन गया।
नमक कानून के चुनाव के निम्नलिखित कारण थे:
राष्ट्रीय आंदोलन के अध्ययन के लिए अखबार महत्त्वपूर्ण स्रोत क्यों हैं?
राष्ट्रीय आंदोलन के अध्ययन के स्रोतों में अख़बारों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनसे हमें राष्ट्रीय आंदोलन के अध्ययन में महत्त्वपूर्ण सहायता मिलती है। ये अख़बार राष्ट्रिय आंदोलन को समझने तथा इसका अध्ययन करने के लिए इतिहासकारों के लिए महत्वपूर्ण स्रोत हैं। इस संदर्भ में निम्नलिखित बातें उल्लेखनीय हैं:
चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक क्यों चुना गया?
चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक इसलिए चुना गया क्योंकि यह जन सामान्य से संबंधित था और स्वदेशी व आर्थिक प्रगति का प्रतीक था। गाँधीजी जी स्वयं प्रतिदिन अपना कुछ समय चरखा चलाने में व्यतीत किया करते थे। वे अन्य सहयोगियों को भी चरखा चलाने के लिए प्रोत्साहित करते थे। गाँधीजी का मानना था कि आधुनिक युग में मशीनों ने मानव को गुलाम बनाकर श्रम को हटा दिया हैं। इससे गरीबों का रोज़गार उनसे छिन्न गया हैं। गाँधीजी का विश्वास था कि चरखा मानव-श्रम के लिए गौरव को फिर से जीवित करेगा ओर जनता को स्वावलम्बी बनाएगा। वस्तुत: चरखा स्वदेशी तथा राष्ट्रवाद का प्रतीक बन गया। पारंपरिक भारतीय समाज में सूत कातने के काम को अच्छा नहीं समझा जाता था। गाँधीजी द्वारा सूत कातने के काम ने मानसिक श्रम एवं शारीरिक श्रम की खाई को कम करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
गोल मेज़ सम्मेलन में हुई वार्ता से कोई नतीजा क्यों नहीं निकल पाया?
1930 से 1932 की अवधि में ब्रिटिश सरकार ने भारत की समस्या पर बातचीत करने तथा नया एक्ट पास करने के लिए तीन गोलमेज़ सम्मेलनों का आयोजन किया, परंतु इन सम्मेलनों में किसी मुद्दे पर आम सहमति नहीं बन पाई। परिणामस्वरूप, इन सम्मेलनों में कोई महत्वपूर्ण निर्णय निकल कर सामने नहीं आया। तीनों सम्मेलनों में की गई कार्रवाई का वर्णन कुछ इस प्रकार है:
निजी पत्रों और आत्मकथाओं से किसी व्यक्ति के बारे में क्या पता चलता है? ये स्रोत सरकारी ब्योरों से किस तरह भिन्न होते हैं?
निजी पत्र: निजी पत्र में किसी व्यक्ति के निजी विचारों की झलक मिलती है। इसमें प्राइवेट बातें मिलती है जिन्हें सार्वजनिक तौर पर अभिव्यक्त नहीं किया गया होता। इन पत्रों में हम लिखने वाले को अपना गुस्सा और पीड़ा, असंतोष और बेचैनी अपनी आशाएँ और हताशाएँ व्यक्त करते हुए देख सकते हैं। लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि बहुत सारे पत्र व्यक्तियों को लिखे जाते हैं इसलिए वे व्यक्तिगत पत्र होते हैं लेकिन कुछ हद तक वे जनता के लिए भी होते हैं। उन पत्रों की भाषा इस अहसास से भी तय होती है कि संभव है एक दिन उन्हें प्रकाशित कर दिया जाएगा।
आत्मकथा: आत्मकथाएँ हमें उस अतीत का ब्योरा देती हैं जो मानवीय विवरणों के हिसाब से काफी समृद्ध होता है। वस्तुतः यह व्यक्ति के संपूर्ण जीवनकाल, जन्मस्थान, परिवार की पृष्ठभूमि, शिक्षा, वैचारिक प्रभाव, जीवन में उतार-चढ़ाव, प्रमुख घटनाओं आदि से जुड़ी होती हैं। लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि ये आत्मकथाएँ प्राय: स्मृति के आधार पर लिखी गई होती हैं। उनसे हमें पता चलता है कि लिखने वाले को क्या याद रहा, उसे कौन सी चीजें महत्त्वपूर्ण दिखाई दीं या वह क्या याद रखना चाहता था, या वह औरों की नजर में अपनी जिंदगी को किस तरह दर्शाना चाहता है। आत्मकथा लिखना अपनी तसवीर गढ़ने का एक तरीक़ा है।
सरकारी ब्यौरे से भिन्नता: निजी पत्र और आत्मकथाएँ इतिहास के स्तोत्र के रूप में सरकारी ब्यूरो से पूरी तरह से भिन्न है। सरकार राष्ट्रीय आंदोलन और उसके नेताओं पर कड़ी नजर रखती थी। पुलिस और सी.आई.डी के द्वारा इन पर पाक्षिक रिपोर्ट तैयार की जाती थी। यह पूरा ब्योरा गुप्त रखा जाता था। इन रिपोर्टों को तैयार करने वाले सरकार, और स्वयं अपने पूर्वग्रहों, नीतियों दृष्टिकोण आदि से प्रभावित होते थे। इसके विपरीत निजी पत्रों में दो व्यक्तियों के मध्य आपसी विचारों का आदान-प्रदान और निजी स्तर पर जुड़ी बातों का विवरण होता था। अत: हम कह सकते हैं कि इन दोनों प्रकारों के स्रोतों के विवरण कि विशेषता तथा प्रकृति भिन्न होती हैं।
असहयोग आंदोलन एक तरह का प्रतिरोध कैसे था?
असहयोग आंदोलन 1920 में महात्मा गाँधी के नेतृत्व में चलाया गया। यह अंग्रेजी शासन तथा सरकार की गलत नीतियों के विरुद्ध एक व्यापक जन-प्रतिरोध था:
महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीय आंदोलन के स्वरूप को किस तरह बदल डाला?
महात्मा गांधी ने निम्नलिखित तरीकों से भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के आधार को व्यापक बनाया और 1922 तक इसके स्वरूप को एकदम परिवर्तित कर दिया था:
अत: यह स्पष्ट है कि गाँधी जी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रिय आंदोलन विश्व का सबसे बड़ा आंदोलन बन गया था। यह पूरा आंदोलन उन्होंने अहिंसात्मक ढंग से चलाया जिसके कारण यह विश्व में काफी विख्यात हुआ।
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