भारतीय इतिहास के कुछ विषय Ii Chapter 6 भक्ति - सूफी परंपराएँ
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    NCERT Solution For Class 12 ������������������ भारतीय इतिहास के कुछ विषय Ii

    भक्ति - सूफी परंपराएँ Here is the CBSE ������������������ Chapter 6 for Class 12 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 12 ������������������ भक्ति - सूफी परंपराएँ Chapter 6 NCERT Solutions for Class 12 ������������������ भक्ति - सूफी परंपराएँ Chapter 6 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 12 ������������������.

    Question 1
    CBSEHHIHSH12028293

    उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए कि संप्रदाय के समन्वय से इतिहासकार क्या अर्थ निकालते हैं?

    Solution

    संप्रदाय के समन्वय से इतिहासकारों का अभिप्राय पूजा प्रणालियों के समन्वय से हैं। एक प्रक्रिया ब्राह्मणीय विचारधारा के प्रचार की थी। इतिहासकारों के अनुसार यहाँ कम से कम दो प्रक्रियाएँ चल रही थी। इसका प्रसार पौराणिक ग्रंथों की रचना, संकलन और परिरक्षण द्वारा हुआ। ये ग्रंथ सरल संस्कृत छंदों में थे जो वैदिक विद्या से विहीन स्त्रियों और शूद्रों द्वारा भी ग्राह्य थे।
    दूसरी परंपरा शूद्र, स्त्रियों व अन्य सामाजिक वर्गों के बीच स्थानीय स्तर पर विकसित हुई विश्वास प्रणालियों पर आधारित थी। इन दोनों अर्थात् ब्राह्मणीय व स्थानीय परम्पराओं के संपर्क में आने से एक-दूसरे में मेल-मिलाप हुआ। इसी मेल-मिलाप को इतिहासकार समाज की गंगा-जमुनी संस्कृति या सम्प्रदायों के समन्वय के रूप में देखते हैं। इसमें ब्राह्मणीय ग्रंथों में शूद्र व अन्य सामाजिक वर्गों के आचरणों व आस्थाओं को स्वीकृति मिली। दूसरी ओर सामान्य लोगों ने कुछ सीमा तक ब्राह्मणीय परम्परा को स्थानीय विश्वास परंपरा में शामिल कर लिया। इस प्रक्रिया का सबसे विशिष्ट उदाहरण पुरी, उड़ीसा में मिलता है जहाँ मुख्य देवता को बारहवीं शताब्दी तक आते-आते जगन्नाथ (शाब्दिक अर्थ में संपूर्ण विश्व का स्वामी), विष्णु के एक स्वरूप के रूप में प्रस्तुत किया गया।   

    Question 2
    CBSEHHIHSH12028294

    किस हद तक उपमहाद्वीप में पाई जाने वाली मस्जिदों का स्थापत्य स्थानीय परिपाटी और सार्वभौमिक आदर्शों का सम्मिश्रण है?

    Solution

    उप-महाद्वीपीय में विभिन्न मुस्लिम शासकों ने अनेकों मस्जिदों का निर्माण करवाया। इस्लाम का लोक प्रचलन जहाँ भाषा और साहित्य में देखने को मिलता हैं, वही इसकी यह छवि स्थापत्य कला (विशेषकर मस्जिद) के निर्माण में भी स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं। मस्जिदों के कुछ स्थापत्य संबंधित तत्व जैसे: मस्जिद के लिए यह अनिवार्य हैं की इमारत का मक्का की ओर संकेत करना जो मेहराब (प्रार्थना) तथा मिनबार (व्यासपीठ) की स्थापना से लक्षित होता था। परन्तु बहुत-से ऐसे तत्व होते थे जिनमें भिन्नता पाई जाती थी जैसे: छत की स्थिति, निर्माण का समान, सज्जा के तरीके व स्तम्भों के बनाने की विधि। 
    उदाहरण के लिए 13वीं शताब्दी में केरल में बनी एक मस्जिद की छत्त मंदिर के शिखर से मिलती- जुलती है। इसके विपरीत बांग्लादेश की ईंटों से बनी अतिया मस्जिद की छत गुंबददार हैं।

    Question 3
    CBSEHHIHSH12028295

    बे शरिया और बा शरिया सूफी परंपरा के बीच एकरूपता और अंतर दोनों को स्पष्ट कीजिए।

    Solution

    शरिया मुसलमानों को निर्देशित करने वाला कानून हैं। यह कुरान शरीफ और हदीस पर आधारित हैं। शरिया का पालन करने वाले को बा-शरिया और शरिया की अवेहलना करने वालों को बे-शरिया कहा जाता था।

    एकरूपता:

    1. बे शरिया और बा शरिया दोनों ही इस्लाम धर्म से संबंध रखते थे। 
    2. दोनों ही एक ईश्वर में विश्वास रखते थे। उनके अनुसार अल्लाह एक मात्र ईश्वर हैं जो सर्वोच्च, शक्तिशाली अथवा सर्वव्यापक हैं।
    3. दोनों ही अल्लाह के समुख पूर्ण आत्मसमर्पण पर बल देते थे।
    4. इनकी एक-रूपता इस बात में भी थी ये दोनों सूफी आंदोलनों से थे।

    अंतर:

    1. बा-शरीआ सूफी सन्त ख़ानक़ाहो में रहते थे। खानकाह एक फ़ारसी शब्द है, जिसका अर्थ है-आश्रम। जबकि बे-शरीआ सूफी संत ख़ानक़ाह का तिरस्कार करके रहस्यवादी एवं फ़कीर की जिन्दगी व्यतीत करते थे।
    2. बा-शरीआ सिलसिले शरीआ का पालन करते थे, किन्तु बे-शरीआ शरीआ में बँधे हुए नहीं थे।

    Question 4
    CBSEHHIHSH12028296

    चर्चा कीजिए कि अलवार,  नयनार और वीरशैवों ने किस प्रकार जाति प्रथा की आलोचना प्रस्तुत की?

    Solution

    अलवार, नयनार और वीरशैव दक्षिण भारत में उत्पन्न विचारधाराएँ थी। इनमें अलवार, नयनार व तमिलनाडु से सम्बन्ध रखते थे, वही वीरशैव कर्नाटक से सम्बन्ध रखते थे। इन्होंने जाती प्रथा के बंधनों का अपने-अपने ढंग से विरोध  किया

    1. अलवार और नयनार संतों ने जाति प्रथा व ब्राह्मणों की प्रभुता के विरोध में आवाज़ उठाई। यह बात सत्य प्रतीत होती है क्योंकि भक्ति संत विविध समुदायों से थे जैसे ब्राह्मण, शिल्पकार, किसान और कुछ तो उन जातियों से आए थे जिन्हें ''अस्पृश्य'' माना जाता था।
    2. अलवार और नयनारे संतों की रचनाओं को वेद जितना महत्त्वपूर्ण बताया गया। जैसे अलवार संतों के मुख्य काव्य संकलन नलयिरादिव्यप्रबन्धम् का वर्णन तमिल वेद के रूप में किया जाता था। इस प्रकार इस ग्रंथ का महत्त्व संस्कृत के चारों वेदों जितना बताया गया जो ब्राह्मणों द्वारा पोषित थे।
    3. वीरशैवों ने भी जाति की अवधारणा का विरोध किया। उन्होंने पुनर्जन्म के सिद्धान्त को मानने से इंकार कर दिया। ब्राह्मण धर्मशास्त्रों में जिन आचारों को अस्वीकार किया गया था; जैसे-वयस्क विवाह और विधवा पुनर्विवाह, वीरशैवों ने उन्हें मान्यता प्रदान की। इन सब कारणों से ब्राह्मणों ने जिन समुदायों के साथ भेदभाव किया, वे वीरशैवों के अनुयायी हो गए। वीरशैवों ने संस्कृत भाषा को त्यागकर कन्नड़ भाषा का प्रयोग शुरू किया।

    Question 5
    CBSEHHIHSH12028297

    कबीर अथवा बाबा गुरु नानक के मुख्य उपदेशों का वर्णन कीजिए। इन उपदेशों का किस तरह संप्रेषण हुआ?

    Solution

    कबीर: इस में कोई दोराहे नहीं कि संत कबीर कवियों में विशेष स्थान रखते हैं: उनके मुख्य उपदेश निम्नलिखित हैं:

    1. कबीर के अनुसार परम सत्य अथवा परमात्मा एक हैं, भले ही विभिन्न सम्प्रदायों के लोग उसे अलग-अलग नामों से पुकारते हैं।
    2. उन्होंने परमात्मा को निराकार बताया।
    3. उनके अनुसार भक्ति के माध्यम से मोक्ष अर्थात् मुक्ति प्राप्त हो सकती हैं।
    4. उन्होंने बहुदेववाद तथा मूर्ति-पूजा का खंडन किया।
    5. उन्होंने परमात्मा को निराकार बताया।
    6. उन्होंने ज़िक्र और इश्क के सूफ़ी सिद्धांतों के प्रयोग द्वारा 'नाम सिमरन' पर बल दिया।
    7. उन्होंने हिन्दुओं तथा मुसलमानों दोनों के धार्मिक आडंबरो का विरोध किया।

    विचारों का संप्रेषण: कबीर ने अपने विचारों को काव्य की आम-बोलचाल की भाषा में व्यक्त किया जिसे आसानी से समझा जा सकता था। कभी-कभी उन्होंने बीज लेखन की भाषा का प्रयोग भी किया जो कठिन थी। उनके देहांत के बाद उनके अनुयायिओं ने अपने प्रचार-प्रसार द्वारा उनके विचारों का संप्रेषण किया।  

    बाबा गुरु नानक: गुरु नानक देव जी सिख धर्म के प्रणेता थे। उन्होंने अपने जीवन का अधिकतर समय सूफी और भक्त संतों के बीच बिताया। उनके मुख्य उपदेश निम्नलिखित है:

    1. उन्होंने निर्गुण भक्ति का प्रचार किया।
    2. धर्म के सभी बाहरी आडंबरों को उन्होंने अस्वीकार किया जैसे यज्ञ, आनुष्ठानिक स्नान, मूर्ति पूजा व कठोर तप।
    3. उन्होंने हिन्दू और मुसलमानों के धर्मग्रंथों को भी उन्होंने नकारा।
    4. उन्होंने रब की उपासना के लिए एक सरल उपाय बताया और वह था उनका निरंतर स्मरण व नाम का जाप।

    विचारों का संप्रेषण: उन्होंने अपने विचार पंजाबी भाषा में शबद के माध्यम से सामने रखे। बाबा गुरु नानक यह शबद अलग-अलग रागों में गाते थे और उनका सेवक मरदाना रबाब बजाकर उनका साथ देता था।

    Question 6
    CBSEHHIHSH12028298

    सूफी मत के मुख्य धार्मिक विश्वासों और आचारों की व्याख्या कीजिए।

    Solution

    इस्लाम की आरंभिक शताब्दियों में कुछ आध्यात्मिक लोगो का झुकाव रहस्यवाद तथा वैराग्य की ओर बढ़ने लगा। इन लोगों को सूफ़ी कहा जाने लगा। सूफी मत के मुख्य धार्मिक विश्वासों और आचारों का वर्णन इस प्रकार हैं:

    1.  सूफ़ियों ने रूढ़िवादी परिभाषाओं तथा धर्माचार्यों द्वारा की गई कुरान और सुन्ना (पैगम्बर के व्यवहार) की बौद्धिक व्याख्या की आलोचना की। उन्होंने कुरान की व्याख्या अपने निजी अनुभवों के आधार पर की।
    2. उन्होंने मुक्ति प्राप्ति के लिए ईश्वर की भक्ति और उनके आदेशों के पालन पर बल दिया।  
    3. उन्होंने पैगम्बर मोहम्मद को इंसान-ए-कामिल बताते हुए उनका अनुसरण करने की सीख दी।
    4. परमात्मा के सम्बन्ध में सूफ़ी साधकों का विचार था कि परमात्मा एक हैं। उनका मानना था कि वह अद्वितीय पदार्थ हैं जो निरपेक्ष हैं, अगोचर हैं, अपरिमित हैं और नानात्व से परे हैं, वही परम सत्य हैं।
    5. मनुष्य के सम्बन्ध में सूफ़ी साधकों का विचार था कि मनुष्य परमात्मा के सभी गुणों को अभिव्यक्त करता हैं।
    6. वे किसी औलिया या पीर कि देख-रेखा में ज़िक्र (नाम का जाप) चिंतन, समा (गाना), रक्स (नृत्य), नीति-चर्चा, साँस पर नियंत्रण आदि क्रियाओं द्वारा मन को परिशिक्षित करने के पक्ष में थे।
    7. सूफियों के अनुसार ईश्वर सर्वशक्तिमान हैं। उसका निवास सृष्टि के कण-कण में हैं। सभी जीव उसी से उत्त्पन्न होते हैं, इसलिए सभी जीव एक समान हैं।
    8.  सूफ़ी मत के अनुसार मानव सेवा तथा ज़रूरतमंद लोगों की सहायता करना प्रभु-भक्ति करने के समान हैं। इसी उद्देश्य से शेख निज़ामुद्दीन औलिया के ख़ानक़ाह में एक सामुदायिक रसोई (लंगर) चलाई जाती थी जो फुतूह (बिना मांगी खैर) पर चलती थी। सुबह से देर रात तक चलने वाली इस रसोई में सभी वर्गों के लोग भोजन करते थे। 
    9. सूफ़ी मत के अनुसार मनुष्य को संसारिक पदार्थों के साथ मोह नहीं करना चाहिए।
    10. सूफ़ी मत में मुर्शिद (गुरु) को बहुत ऊँचा स्थान दिया गया है। मुर्शिद ही मनुष्य को सच्चा मार्ग दिखाता है।

    Question 7
    CBSEHHIHSH12028299

    उदाहरण सहित विश्लेषण कीजिए कि क्यों भक्ति और सूफ़ी चिंतकों ने अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए विभिन्न भाषाओं का प्रयोग किया?

    Solution
    1. यह सत्य है कि भक्ति और सूफ़ी चिंतकों ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति के लिए विभिन्न भाषाओं का प्रयोग किया। वास्तव में भक्ति और सूफ़ी चिंतक देश के विभिन्न भागों से सम्बन्धित थे। वे किसी भाषा-विशेष को पवित्र नहीं मानते थे। उनका प्रमुख उद्देश्य जनसामान्य को मानसिक शान्ति एवं सांत्वना प्रदान करना था। अतः वे अपने विचारों को जनसामान्य तक उनकी अपनी भाषाओं में पहुँचाना चाहते थे। यही कारण था कि उन्होंने अपने उपदेशों में स्थानीय भाषाओं का प्रयोग किया।
    2. उदाहरण के लिए तमिलनाडु के अलवार (विष्णु के भक्त) और नयनार (शिव के भक्त) सन्तों ने अपने विचार जनसामान्य तक पहुँचाने के लिए स्थानीय भाषा (तमिल) का प्रयोग किया। वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करते हुए तमिल में अपने इष्टदेव की स्तुति में भजन गाते थे।
    3. उत्तर भारत में भक्ति आन्दोलन के मुख्य प्रचारकों ने भी अपने विचारों की अभिव्यक्ति के लिए विभिन्न भाषाओं को प्रयोग किया। उन्होंने किसी भाषा विशेष को पवित्र नहीं माना और अपने विचार जनसामान्य की भाषा में प्रकट किए। उदाहरण के लिए कबीर ने अपने पदों में अनेक भाषाओं एवं बोलियों का प्रयोग किया है। उन्होंने अपने विचारों को प्रकट करने के लिए हिन्दी, पंजाबी, फारसी, ब्रज, अवधी एवं स्थानीय बोलियों के अनेक शब्दों का प्रयोग किया है। उनकी कुछ रचनाओं की भाषा सन्तभाषा है, जिसे निर्गुण कवियों की खास बोली समझा जाता है।
    4. कबीर के अनेक पदों का संकलन सिक्खों के आदि ग्रंथसाहिब में किया गया है। इसी प्रकार गुरु नानक ने अपने विचार पंजाबी भाषा में शब्द के माध्यम से जनसामान्य के सामने रखे। वे स्वयं इन शब्दों का भिन्न-भिन्न रागों में गायन करते थे। गुरु नानक के उत्तराधिकारी गुरु अंगद ने गुरु नानक के उपदेशों एवं शिक्षाओं को भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखने के उद्देश्य से गुरमुखी लिपि का विकास किया। सिखों के पवित्र धार्मिक ग्रन्थ गुरु ग्रन्थ साहिब में विभिन्न भाषाओं एवं बोलियों के शब्द मिलते हैं।
    5. कुछ अन्य सूफियों ने ईश्वर के प्रति प्रेम को मानवीय प्रेम के रूपक द्वारा अभिव्यक्त करने के लिए लम्बी-लम्बी कविताओं की रचना की, जिन्हें मसनवी के नाम से जाना जाता है। सूफी कविता फ़ारसी, हिंदवी अथवा उर्दू में होती थी। कभी-कभी उसमें इन तीनों भाषाओं के शब्द विद्यमान होते थे। बीजापुर (कर्नाटक) के आस-पास सूफ़ी कविता की एक भिन्न विधा अस्तित्व में आई। इसके अन्तर्गत दक्खनी (उर्दू का एक रूप) में लिखी गई छोटी-छोटी कविताएँ आती हैं।
    6. भक्ति संतों के उपदेश आज भी गीतो इत्यादि में इसलिए सुरक्षित है क्योंकि वे सामान्य भक्ति की भाषा में थे। इसी सरल भाषा के माध्यम से आम व्यक्ति धर्म व अध्यात्म जैसे जटिल बातों को समझ पाते थे। इसी तरह सामाजिक रूढ़ियों व अंधविश्वासों को कमजोर करने में सफलता तभी मिल सकते थी जब भाषा को समझा जा सके। इस तरह सूफी फकीरों व भक्ति संतों ने अपने विचार सामान्य व्यक्ति की भाषा में अभिव्यक्त किए।
    Question 8
    CBSEHHIHSH12028300

    इस अध्याय में प्रयुक्त किन्हीं पाँच स्रोतों का अध्ययन कीजिए और उनमें निहित सामाजिक व धार्मिक विचारों पर चर्चा कीजिए।

    Solution

    इस अध्याय में प्रयुक्त मुख्य पाँच स्त्रोत इस प्रकार हैं:  

    1. लोकधारा: भक्ति व सूफी संतो की जानकारी के लिए अध्याय में मूर्ति कला, स्थापत्य कला एवं धर्म गुरुओं के संदेशों का प्रयोग किया गया है। इसी तरह अनेक अनुयायियों द्वारा रचित गीत, काव्य रचनाएं, जीवन इत्यादि भी प्रयोग में लाई गई है। सामाजिक-धार्मिक दृष्टि से इन्हें इस तरह प्रस्तुत किया गया है कि जन-मानस उनमें विश्वास कर सके तथा जीवन के आदर्शों की प्रेरणा ले सके।
    2. कश्फ-उल-महजुब: सूफी विचारों और आचारों पर प्रबंध पुस्तिका कश्फ-उल- महजुब इस विधा का एक उदाहरण है। यह पुस्तक अली बिन उस्मान हुजविरी (मृत्यु 1071) द्वारा लिखी गई । साहित्य इतिहासकारों को यह जानने में मदद करता है कि उपमहाद्वीप के बाहर की परंपराओं ने भारत में सूफ़ी चिंतन को किस तरह प्रभावित किया।
    3. मुलफुज़ात (सूफ़ी संतों की बातचीत): यह फ़ारसी के कवि अमीर हसन सिजज़ी देहलवी द्वारा संकलित है। यह शेख निजामुद्दीन औलिया की बातचीत पर आधारित एक संग्रह है। मुलफुज़ात का संकलन विभिन्न सूफ़ी सिलसिलों के शेखों की अनुमति से हुआ। इनका उद्देश्य मुख्यत: उपदेशात्मक था ताकि नई पीढ़ी उनका अनुकरण कर सके । 
    4. मक्तुबात (लिखे हुए पत्रों का संकलन): ये वे पत्र थे जो सूफ़ी संतों द्वारा अपने अनुयायियों और सहयोगियों को लिखे गए। इन पत्रों से धार्मिक सत्य के बारे में शेख के अनुभवों का वर्णन मिलता है जिसे वह अन्य लोगों के साथ बाँटना चाहते थे। शेख अहमद सरहिंदी (मृत्यु 1624) के लिखे पत्र 'मक्तुबात- ए-इमाम रब्बानी' में संकलित हैं जिसमें अकबर की उदारवादी और असांप्रदायिक विचारधारा से करते हैं। 
    5. तज़किरा (सूफी संतों की जीवनियों का स्मरण): भारत में लिखा पहला सूफ़ी तज़किरा मीर खुर्द किरमानी का सियार-उल- औलिया है। यह तज़किरा मुख्यत: चिश्ती संतों के बारे में था। सबसे प्रसिद्ध तज़किरा अचूल हक मुहाद्दिस देहलवी (मृत्यु 1642) का अम्बार-उल-अखयार है। तज़किरा के लेखकों का मुख्य उद्देश्य अपने सिलसिले की प्रधानता स्थापित करना और साथ ही अपनी आध्यात्मिक वंशावली की महिमा का बखान करना था। तज़किरे के बहुत से वर्णन अद्भुत और अविश्वसनीय हैं किंतु फिर भी वे इतिहासकारों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं और सूफ़ी परंपरा के स्वरूप को समझने में सहायक सिद्ध होते हैं।

    Question 9
    CBSEHHIHSH12028301

    क्यों और किस तरह शासकों ने नयनार और सूफ़ी संतों से अपने संबंध बनाने का प्रयास किया?

    Solution
    1. शासकों की सदैव ही ये इच्छा बनी रहती थी की वे इन संत-फकीरों का विश्वास जीत लें। इससे जनता के साथ जुड़ने में आसानी होती हैं अथवा उनका समर्थन पाना भी सम्भव हो जाता हैं। तमिल-नाडु क्षेत्र में शासकों ने अलवर-नयनार संतों को हर प्रकार का सहयोग दिया। इन शासकों ने उन्हें अनुदान दिए तथा मंदिरों का निर्माण करवाया। 
    2. चोल शासकों ने चिदम्बरम, तंजावुर और गंगैकोडाचोलपुरम के विशाल शिव मंदिरो का निर्माण करवाया। इसी काल में कांस्य में ढाली गई शिव की प्रतिमाओंका भी निर्माण हुआ। नयनार और अलवार संत वेल्लाल कृषकों द्वारा सम्मानित होते थे इसलिए भी शासकों ने उनका समर्थन पाने का प्रयास किया। उदाहरणत: चोल सम्राटों ने दैवीय समर्थन पाने का दावा किया और अपनी सत्ता के प्रदर्शन के लिए सुंदर मंदिरों का निर्माण कराया जिनमें पत्थर और धातु से बनी मूर्तियाँ सुसज्जित थीं।
    3. सूफ़ी संत सामान्यतः सत्ता से दूर रहने की कोशिश करते थे, किन्तु यदि कोई शासक बिना माँगे अनुदान या भेंट देता था तो वे उसे स्वीकार करते थे। इसी तरह से सूफ़ी संतों को भी शासकों ने विभिन्न तरह के अनुदान दिए। सूफी संत अनुदान में मिले धन और सामान का इस्तेमाल जरूरतमंदों के खाने, कपड़े एवं रहने की व्यवस्था तथा अनुष्ठानों के लिए करते थे। शासक वर्ग इन संतों की लोकप्रियता, धर्मनिष्ठा और विद्वत्ता के कारण उनका समर्थन हासिल करना चाहते थे। 
    4. जब तुर्की ने दिल्ली सल्तनत की स्थापना की तो उलेमा द्वारा शरिया लागू किए जाने की माँग को ठुकरा दिया गया था। सुल्तान जानते थे कि उनकी अधिकांश प्रजा गैर-इस्माली है। ऐसे समय में सुल्तानों ने सूफ़ी संतों का सहारा लिया जो अपनी आध्यात्मिक सत्ता को अल्लाह से उद्भुत मानते थे। यह भी माना जाता था कि सूफ़ी संत मध्यस्थ के रूप में ईश्वर से लोगों की भौतिक और आध्यात्मिक दशा में सुधार लाने का कार्य करते हैं। शायद यही कारण है कि शासक अपनी कब्र सूफ़ी दरगाहों और ख़ानक़ाहों के नज़दीक बनाना चाहते थे।
    5. मुग़ल काल में अकबर ने अपने जीवन में अजमेर की 14 बार यात्रा की। उसने इस दरगाह को विभिन्न चीज़ें प्रदान की। इन दरगाह पर आने वाले तीर्थयात्रियों ने ही अकबर को यहाँ आने के लिए प्रेरित किया था। अत: स्पष्ट हैं कि शासक इन संत फकीरों के माध्यम से समाज से जुड़ना चाहते थे। इसी उद्देश्य से वे संतों के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते थे। 

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