क्यों और किस तरह शासकों ने नयनार और सूफ़ी संतों से अपने संबंध बनाने का प्रयास किया?
- शासकों की सदैव ही ये इच्छा बनी रहती थी की वे इन संत-फकीरों का विश्वास जीत लें। इससे जनता के साथ जुड़ने में आसानी होती हैं अथवा उनका समर्थन पाना भी सम्भव हो जाता हैं। तमिल-नाडु क्षेत्र में शासकों ने अलवर-नयनार संतों को हर प्रकार का सहयोग दिया। इन शासकों ने उन्हें अनुदान दिए तथा मंदिरों का निर्माण करवाया।
- चोल शासकों ने चिदम्बरम, तंजावुर और गंगैकोडाचोलपुरम के विशाल शिव मंदिरो का निर्माण करवाया। इसी काल में कांस्य में ढाली गई शिव की प्रतिमाओंका भी निर्माण हुआ। नयनार और अलवार संत वेल्लाल कृषकों द्वारा सम्मानित होते थे इसलिए भी शासकों ने उनका समर्थन पाने का प्रयास किया। उदाहरणत: चोल सम्राटों ने दैवीय समर्थन पाने का दावा किया और अपनी सत्ता के प्रदर्शन के लिए सुंदर मंदिरों का निर्माण कराया जिनमें पत्थर और धातु से बनी मूर्तियाँ सुसज्जित थीं।
- सूफ़ी संत सामान्यतः सत्ता से दूर रहने की कोशिश करते थे, किन्तु यदि कोई शासक बिना माँगे अनुदान या भेंट देता था तो वे उसे स्वीकार करते थे। इसी तरह से सूफ़ी संतों को भी शासकों ने विभिन्न तरह के अनुदान दिए। सूफी संत अनुदान में मिले धन और सामान का इस्तेमाल जरूरतमंदों के खाने, कपड़े एवं रहने की व्यवस्था तथा अनुष्ठानों के लिए करते थे। शासक वर्ग इन संतों की लोकप्रियता, धर्मनिष्ठा और विद्वत्ता के कारण उनका समर्थन हासिल करना चाहते थे।
- जब तुर्की ने दिल्ली सल्तनत की स्थापना की तो उलेमा द्वारा शरिया लागू किए जाने की माँग को ठुकरा दिया गया था। सुल्तान जानते थे कि उनकी अधिकांश प्रजा गैर-इस्माली है। ऐसे समय में सुल्तानों ने सूफ़ी संतों का सहारा लिया जो अपनी आध्यात्मिक सत्ता को अल्लाह से उद्भुत मानते थे। यह भी माना जाता था कि सूफ़ी संत मध्यस्थ के रूप में ईश्वर से लोगों की भौतिक और आध्यात्मिक दशा में सुधार लाने का कार्य करते हैं। शायद यही कारण है कि शासक अपनी कब्र सूफ़ी दरगाहों और ख़ानक़ाहों के नज़दीक बनाना चाहते थे।
- मुग़ल काल में अकबर ने अपने जीवन में अजमेर की 14 बार यात्रा की। उसने इस दरगाह को विभिन्न चीज़ें प्रदान की। इन दरगाह पर आने वाले तीर्थयात्रियों ने ही अकबर को यहाँ आने के लिए प्रेरित किया था। अत: स्पष्ट हैं कि शासक इन संत फकीरों के माध्यम से समाज से जुड़ना चाहते थे। इसी उद्देश्य से वे संतों के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते थे।