मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया
गांधीजी ने 1922 में असहयोग आंदोलन के माध्यम से देश की आज़ादी की लड़ाई लड़ते हुए ये शब्द कहे थे। उनका मानना था कि विचार अभिव्यक्ति की सवतंत्रता, प्रेस की आज़ादी और सामूहिकता की आज़ादी ही वे माध्यम है जिनके रास्ते पर चलकर देश की आज़ादी के सपने को हासिल किया जा सकता है। उनका मानना था कि औपनिवेशिक भारत सरकार इन तीन ताकतवर औज़ारों को दबाने का प्रयतन कर रही है। अत: स्वराज की लड़ाई, सबसे पहले तो इन संकटग्रस्त आज़ादियों की लड़ाई है।
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छोटी टिप्पणी में इनके बारे में बताएँ-
गुटेनबर्ग प्रेस
छपी किताब को लेकर इरैस्मस के विचार
छोटी टिप्पणी में इनके बारे में बताएँ:
वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट
उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण-संस्कृति के प्रसार का इनके लिए क्या मतलब था-
महिलाएँ
अठारहवीं सदी के यूरोप में कुछ लोगों को क्यों ऐसा लगता था कि मुद्रण संस्कृति से निरंकुशवाद का अंत, और ज्ञानोदय होगा?
कुछ लोग किताबों की सुलभता को लेकर चिंतित क्यों थे? यूरोप और भारत से एक-एक उदाहरण लेकर समझाएँ।
उन्नीसवीं सदी में भारत में गरीब जनता पर मुद्रण संस्कृति का क्या असर हुआ?
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