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मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया

Question
CBSEHHISSH10018557

उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण-संस्कृति के प्रसार का इनके लिए क्या मतलब था-

महिलाएँ

Solution

उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण संस्कृति के प्रसार के कारण महिलाओं की ज़िन्दगी और उनकी भावनाएँ बड़ी साफ़गोई और गहनता से लिखी जाने लगीं। इसलिए मध्यवर्गीय घरों में महिलाओं का पढ़ना भी पहले से बहुत अधिक हो गया। उदारवादी पिता और पति अपने यहाँ औरतों को घर पर पढ़ाने लगे और 19वीं सदी के मध्य में जब बड़े-छोटे शहरों में स्कूल बने तो उन्हें स्कूल भेजने लगे। कई पत्रिकाओं ने लेखिकाओं को जगह दी और उन्होंने नारी-शिक्षा की आवश्यकता को बार-बार रेखांकित किया। उनमें पाठ्यक्रम भी छपता था और आवश्यकतानुसार पाठ्य -सामग्री भी, इसका प्रयोग कर बैठी स्कूली शिक्षा के लिए किया जाता था। सामाजिक सुधारों और उपन्यासों ने पहले ही नारी जीवन और भावनाओं में दिलचस्पी पैदा कर दी थी, इसलिए महिलाओं द्वारा लिखी जा रही आपबीती के प्रति कुतूहल तो था ही।

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उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण-संस्कृति के प्रसार का इनके लिए क्या मतलब था-

महिलाएँ

उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण-संस्कृति के प्रसार का इनके लिए क्या मतलब था-

गरीब जनता


उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण-संस्कृति के प्रसार का इनके लिए क्या मतलब था-

सुधारक

अठारहवीं सदी के यूरोप में कुछ लोगों को क्यों ऐसा लगता था कि मुद्रण संस्कृति से निरंकुशवाद का अंत, और ज्ञानोदय होगा?

कुछ लोग किताबों की सुलभता को लेकर चिंतित क्यों थे? यूरोप और भारत से एक-एक उदाहरण लेकर समझाएँ।  

उन्नीसवीं सदी में भारत में गरीब जनता पर मुद्रण संस्कृति का क्या असर हुआ?

मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में क्या मदद की ?