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मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया

Question
CBSEHHISSH10018561

कुछ लोग किताबों की सुलभता को लेकर चिंतित क्यों थे? यूरोप और भारत से एक-एक उदाहरण लेकर समझाएँ।  

Solution

मुद्रित किताबों का अधिकतर लोगों से स्वागत किया, लेकिन कुछ लोगों के मन में भय था कि अगर छपे हुए और पढ़े जा रहे पर कोई नियंत्रण न होगा तो लोगों में बाग़ी और अधार्मिक विचार पनपने लगेंगे। अगर ऐसा हुआ तो 'मूल्यवान' साहित्य की सत्ता ही नष्ट हो जाएगी। धर्मगुरुओं और सम्राटों तथा कई लेखकों एवं कलाकारों द्वारा व्यक्त की गई यह चिंता नव-मुद्रित और नव-प्रसारित साहित्य की व्यापक आलोचना का आधार बनी।  
यूरोप में उदाहरण: रोमन चर्च की कुरीतियों को जनता के सामने रखने से यूरोप के शासक वर्ग के लोग बौखला गए। इसी प्रक्रम में उन्होंने इटली के एक किसान मनोकियो को बाइबिल के नए अर्थ निकालने का अपराधी घोषित करके मौत के घाट उतार दिया था। रोमन चर्च ने प्रकाशकों तथा पुस्तक विक्रेताओं पर कई तरह की पाबंदियाँ लगा दी थीं और 1558 ई से प्रतिबंधित किताबों की सूची रखने लगे थे।
भारत में उदहारण: अंग्रेज़ी सरकार भारत के राष्ट्रवादी साहित्य के प्रकाशन से बहुत घबराई हुई थी। उन्होंने राष्ट्रवादी साहित्य पर नकेल डालने के लिए 1878 में वर्नाकुलर प्रेस एक्ट लागू कर दिया था। जब पंजाब के क्रांतिकारियों को 1907 ई. में कालापानी भेजा गया तो बालगंगाधर तिलक ने अपनी केसरी में उनके प्रति गहरी हमदर्दी जताई। परिणामस्वरुप 1980 में उन्हें कैद कर लिया गया, जिसके कारण सारे भारत में व्यापक विरोध हुए।

Some More Questions From मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया Chapter

निम्नलिखित के कारण दे:

मार्टिन लूथर मुद्रण के पक्ष में था और इसने इसकी खुलेआम प्रशंसा की।


निम्नलिखित के कारण दे:

रोमन कैथोलिक चर्च ने सोलहवीं सदी के मध्य से प्रतिबंधित किताबों की सूची रखनी शुरू कर दी। 

निम्नलिखित के कारण दे:-

महात्मा गांधी ने कहा कि स्वराज की लड़ाई दरअसल अभिव्यक्ति, प्रेस और सामूहिकता के लिए लड़ाई है।     

छोटी टिप्पणी में  इनके बारे में बताएँ- 

गुटेनबर्ग प्रेस 

छोटी टिप्पणी में  इनके बारे में बताएँ-

छपी किताब को लेकर इरैस्मस के विचार



छोटी टिप्पणी में इनके बारे में बताएँ:

वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट
   

उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण-संस्कृति के प्रसार का इनके लिए क्या मतलब था-

महिलाएँ

उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण-संस्कृति के प्रसार का इनके लिए क्या मतलब था-

गरीब जनता


उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण-संस्कृति के प्रसार का इनके लिए क्या मतलब था-

सुधारक

अठारहवीं सदी के यूरोप में कुछ लोगों को क्यों ऐसा लगता था कि मुद्रण संस्कृति से निरंकुशवाद का अंत, और ज्ञानोदय होगा?