मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया
धर्म सुधारक मार्टिन लूथर ने रोम कैथलिक चर्च की कुरीतियों की आलोचना करते हुए अपने पिच्चानवे स्थापनाएँ लिखीं। इसकी एक छपी प्रति विटेनबर्ग के गिरजाघर के दरवाजे पर टाँगी गई। इसमें लूथर ने चर्च को शास्त्रार्थ के लिए खुली चुनौती दी थी। शीघ्र ही लूथर के लेख बड़ी तादाद में छापे और पढ़े जाने लगे। इसके नतीज़े में चर्च में विभाजन हो गया। कुछ हफ़्तों में न्यू टेस्टामेंट के लूथर के तर्जुम या अनुवाद की 5000 प्रतियाँ बिक गई और 3 महीने के अंदर दूसरा संस्करण निकालना पड़ा। लूथर ने कहा कि मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन है। वह मुद्रण के पक्ष में थे। उनका विश्वास था कि मुद्रण नए विचारों को फैलाने में मदद करती है जिससे राष्ट्र का सुधार होता है।
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छोटी टिप्पणी में इनके बारे में बताएँ-
गुटेनबर्ग प्रेस
छपी किताब को लेकर इरैस्मस के विचार
छोटी टिप्पणी में इनके बारे में बताएँ:
वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट
उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण-संस्कृति के प्रसार का इनके लिए क्या मतलब था-
महिलाएँ
अठारहवीं सदी के यूरोप में कुछ लोगों को क्यों ऐसा लगता था कि मुद्रण संस्कृति से निरंकुशवाद का अंत, और ज्ञानोदय होगा?
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