मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया
छोटी टिप्पणी में इनके बारे में बताएँ-
गुटेनबर्ग प्रेस
गुटेनबर्ग प्रेस: गुटेनबर्ग जर्मनी का निवासी था।वह बचपन से ही तेल और जैतून पेरने की मशीनें देखता आया था। बाद में उसने पत्थर पर पॉलिश करने की कला की सीखी, फिर सुनारी और आखिर में उसने शीशों को इच्छा के अनुसार आकृतियों में गढ़ने में दक्षता प्रदान कर ली। अपने ज्ञान और अनुभव का प्रयोग उसने अपने नए आविष्कार में किया।
गुटेनबर्ग ने रोमन वर्णमाला के तमाम 26 अक्षरों के लिए टाइप बनाए और खोज की कि इन्हें इधर-उधर 'मूव' कराकर या घुमाकर शब्द बनाए जा सकें। इसलिए, इसे 'मूवेबल टाइपिंग प्रिंटिंग मशीन के नाम से जाना गया और यही अगले 300 वर्षों तक छपाई की बुनियादी तकनीक रही। प्रत्येक छपाई के लिए तख्ती पर विशेष आकार उकेरने की पुरानी तकनीक की अपेक्षा अब किताबों का इस तरह छापना बहुत तेज़ हो गया। गुटेनबर्ग प्रेस 1 घंटे में 250 पन्ने छाप सकता था।
Sponsor Area
छोटी टिप्पणी में इनके बारे में बताएँ-
गुटेनबर्ग प्रेस
छपी किताब को लेकर इरैस्मस के विचार
छोटी टिप्पणी में इनके बारे में बताएँ:
वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट
उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण-संस्कृति के प्रसार का इनके लिए क्या मतलब था-
महिलाएँ
अठारहवीं सदी के यूरोप में कुछ लोगों को क्यों ऐसा लगता था कि मुद्रण संस्कृति से निरंकुशवाद का अंत, और ज्ञानोदय होगा?
कुछ लोग किताबों की सुलभता को लेकर चिंतित क्यों थे? यूरोप और भारत से एक-एक उदाहरण लेकर समझाएँ।
उन्नीसवीं सदी में भारत में गरीब जनता पर मुद्रण संस्कृति का क्या असर हुआ?
मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में क्या मदद की ?
Sponsor Area
Sponsor Area