रजिया सज्जाद जहीर
क्या सब कानून हकूमत के ही होते हैं, कुछ मुहब्बत, मुरौवत, आदमियत, इंसानियत के नहीं होते?
जब लेखिका के भाई ने लाहौर का नमक भारत ले जाने के बारे में कानून की मनाही के बारे में बताया तब लेखिका बिगड़ गई। उसका तर्क था कि हकूमत के बनाए कानून ही सब कुछ नहीं होते। कुछ कानून समाज भी बनाता है। समाज के बनाए कानून इंसानी रिश्तों, प्यार पर निर्भर होते हैं। इन कानूनों का भी महत्व होता है।
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नमक की पुड़िया ले जाने के संबंध में साफिया के मन में क्या द्वंद्व था?
जब साफिया अमृतसर पुल पर चढ़ रही थी तो कस्टम ऑफिसर निचली सीढ़ी के पास सिर झुकाए चुपचाप क्यों खड़े थे?
नमक ले जाने के बारे में साफिया के मन में उठे द्वंद्वों के आधार पर उसकी चारित्रिक विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
क्या सब कानून हकूमत के ही होते हैं, कुछ मुहब्बत, मुरौवत, आदमियत, इंसानियत के नहीं होते?
भावना के स्थान पर बुद्धि धीरे-धीरे हावी हो रही थी।
मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुजर जाती है कि कानून हैरान रह जाता है।
हमारी जमीन, हमारे पानी का मजा ही कुछ और है।
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