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रजिया सज्जाद जहीर

Question
CBSEENHN12026625

‘मानचित्र पर एक लकीर खींच देने भर से जमीन और जनता बँट जाती है’ -उचित तर्कों व उदाहरणो के जरिए इसकी पुष्टि करें।

Solution

राजनैतिक कारणों से मानचित्र पर एक लकीर खींचकर एक देश को दो भागों में बाँट दिया जाता है। नेता कहते हैं कि इससे जमीन और जनता का बँटवारा हो गया पर उनका यह कथन झूठ का पुलिंदा मात्र है। मानचित्र पर लकीर खींच देने मात्र से जमीन और जनता नहीं बँट जाती। मानचित्र पर खींची गई इस लकीर को लोगों ने अंतर्मन से स्वीकार नहीं किया। राजनैतिक यथार्थ के स्तर पर उनके वतन की पहचान भले ही बदल गई हो किंतु यह उनका हार्दिक यथार्थ नहीं बन पाया। एक बाध्यता ने उन्हें विस्थापित भले ही कर दिया हो, पर वह उनके दिलों पर कब्जा नहीं कर पाई है। जनता के दिल न आज तक बँटे हैं और न बँटेगे। लोगों के रिश्तेदार, भाई-बंद दोनों देशों में रहते हैं। सभी का अपने दिलों में जन्म स्थली के प्रति गहरा लगाव है। मानचित्र पर खींची गई लकीर लोगों के दिलों को नहीं बाँट सकती। यही इस कहानी का संदेश भी है।

Some More Questions From रजिया सज्जाद जहीर Chapter

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
वह चलने लगी तो वे भी खड़े हो गए और कहने लगे, “जामा मस्जिद की सीढ़ियों को मेरा सलाम कहिएगा और उन खातून को यह नमक देते वक्त मेरी तरफ से कहिएगा कि लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा, तो बाकी सब रफ्ता-रफ्ता ठीक हो जाएगा।”
साफिया कस्टम के जंगले से निकलकर दूसरे प्लेटफार्म पर आ गई और वे वहीं खड़े रहे।
प्लेटफार्म पर उसके बहुत-से दोस्त, भाई रिश्तेदार थे, हसरत भरी नजरों, बहते हुए आँसुओं, ठंडी साँसों और भिचे हुए होठों को बीच में से काटती हुई रेल सरहद की तरफ बड़ी। अटारी में पाकिस्तान पुलिस उतरी, हिंदुस्तानी पुलिस सवार हुई। कुछ समझ में नहीं आता था कि कहाँ से लाहौर खत्म हुआ और किस जगह से अमृतसर शुरू हो गया। एक जमीन थी, एक जबान थी, एक-सी सूरतें और लिबास, एक-सा लबोलहजा और अंदाज थे, गालियाँ भी एक ही-सी थीं जिनसे दोनों बड़े प्यार से एक-दूसरे को नवाज रहे थे। बस मुश्किल सिर्फ इतनी थी कि भरी हुई बंदूकें दोनों के हाथों में थीं।

1. किसके चलने पर कौन खड़े हो गए? उन्होने क्या कहा?
2. प्लेटफार्म पर क्या दृश्य था?
3. लेखिका की समझ में क्या बात नहीं आती थी?
4.  इस गद्याशं में क्या बात उभर कर आती है?






जब उसका सामान कस्टम पर जाँच के लिए बाहर निकाला जाने लगा तो उसे एक झिरझिरी-सी आई और एकदम से उसने फैसला किया कि मुहब्बत का यह तोहफा चोरी से नहीं जाएगा, नमक कस्टमवालों को दिखाएगी वह। उसने जल्दी से पुड़िया निकाली और हैंडबैग में रख ली, जिसमें उसका पैसों का पर्स और पासपोर्ट आदि थे। जब सामान कस्टम से होकर रेल की तरफ चला तो वह एक कस्टम अफसर की तरफ बड़ी। ज्यादातर मेजें खाली हो चुकी थीं। एक-दो पर इक्का-दुक्का सामान रखा था। वहीं एक साहब खड़े थे-लंबा कद, दुबला-पतला जिस्म, खिचड़ी बाल, आँखों पर ऐनक। वे कस्टम अफसर की वर्दी पहने तो थे मगर उन पर वह कुछ जँच नहीं रही थी। साफिया कुछ हिचकिचाकर बोली, “मैं आपसे कुछ पूछना चाहती हूँ।”

उन्होंने नजर भरकर उसे गौर से देखा। बोले, “फरमाइए।”

उनके लहजे ने साफिया की हिम्मत बढ़ा दी, “आप..आप कहाँ के रहने वाले हैं?”

उन्होंने कुछ हैरान होकर उसे फिर गौर से देखा, “मेरा वतन देहली है, आप भी तो हमारी ही तरफ की मालूम होती हैं, अपने अजीजों से मिलने आई होंगी?”

“जी हाँ। मैं लखनऊ की हूँ। अपने भाइयों से मिलने आई थी। वे लोग इधर आ गए हैं। आपको भी तो शायद इधर आए?”

“जी, जब पाकिस्तान बना था तभी आए थे, मगर हमारा वतन तो देहली ही है।”

साफिया के भाई ने नमक की पुड़िया ले जाने से क्यों मना कर दिया?

नमक की पुड़िया ले जाने के संबंध में साफिया के मन में क्या द्वंद्व था?

जब साफिया अमृतसर पुल पर चढ़ रही थी तो कस्टम ऑफिसर निचली सीढ़ी के पास सिर झुकाए चुपचाप क्यों खड़े थे?

‘लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा या मेरा वतन ढाका है’ जैसे उद्गार किस सामाजिक यथार्थ का संकेत करते हैं?

नमक ले जाने के बारे में साफिया के मन में उठे द्वंद्वों के आधार पर उसकी चारित्रिक विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।

‘मानचित्र पर एक लकीर खींच देने भर से जमीन और जनता बँट जाती है’ -उचित तर्कों व उदाहरणो के जरिए इसकी पुष्टि करें।

नमक कहानी में भारत व पाक की जनता के आरोपित भेदभावों के बीच मुहब्बत का नमकीन स्वाद खुला हुआ है, कैसे?

क्या सब कानून हकूमत के ही होते हैं, कुछ मुहब्बत, मुरौवत, आदमियत, इंसानियत के नहीं होते?