‘लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा या मेरा वतन ढाका है’ जैसे उद्गार किस सामाजिक यथार्थ का संकेत करते हैं?
इस प्रकार के उद्गार इस सामाजिक यथार्थ का संकेत करते हैं कि विस्थापन का दर्द व्यक्ति को जीवन भर सालता है। राजनैतिक कारणो से बँटवारे की खींची गई रेखाओं का अभी तक लोगों का अंतर्मन स्वीकार नहीं कर पाया है।
यह यथार्थ प्राकृतिक न होकर परिस्थितिवश आरोपित किया गया है। प्राकृतिक बात को व्यक्ति का मन स्वीकार कर लेता है पर आरोपित बात उसे स्वीकार्य नहीं हो पाती है। लोगों का मन अपनी पुरानी जगहों में ही भटकता रहता है।