भावना के स्थान पर बुद्धि धीरे-धीरे हावी हो रही थी।
भाई के सामने तर्क करते समय साफिया पर भावना हावी थी। वह भावना में बहकर मुहब्बत, मुरौवत, आदमियत, इंसानियत की बातें कह रही थी। उस समय वह गुस्से में थी। जब उसका गुस्सा उतर गया तब भावना के स्थान पर बुद्धि उस पर हावी होती चली गई। वह नमक की पुड़िया को सही सलामत ले जाने का उपाय सोचने लगी। उसके सामने कई विकल्प थे-वह कस्टम वालों के सामने नमक की पुड़िया को रख दे अगर उन्होंने इसे न ले जाने दिया तो उसके द्वारा बीबी को किए गए वायदे का क्या होगा। फिर उसने बुद्धि का प्रयोग कर विचार किया कि इसे कीनुओं की टोकरी में नीचे रख ले। कीनुओं के ढेर में भला इसे कौन देख पाएगा। उसने बुद्धि का प्रयोग कर ऐसा ही किया।