रजिया सज्जाद जहीर
1. दो वर्ष यों बीत गए कि पता ही न चला।
2. रात यों गुजर गई कि दिन निकलने का पता न चला।
3. वह यों चला गया कि पता ही नहीं चला।
4. वसंत ऋतु यों निकल गई कि पता ही न चला।
5. दीपावली का पर्व यों आया और कब चला गया कि पता ही न चला।
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जब साफिया अमृतसर पुल पर चढ़ रही थी तो कस्टम ऑफिसर निचली सीढ़ी के पास सिर झुकाए चुपचाप क्यों खड़े थे?
नमक ले जाने के बारे में साफिया के मन में उठे द्वंद्वों के आधार पर उसकी चारित्रिक विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
क्या सब कानून हकूमत के ही होते हैं, कुछ मुहब्बत, मुरौवत, आदमियत, इंसानियत के नहीं होते?
भावना के स्थान पर बुद्धि धीरे-धीरे हावी हो रही थी।
मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुजर जाती है कि कानून हैरान रह जाता है।
हमारी जमीन, हमारे पानी का मजा ही कुछ और है।
फिर पलकों से कुछ सितारे टूटकर दूधिया आँचल में समा जाते हैं।
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