धूल - रामविलास शर्मा
धूल, धूलि, धूली, धूरि और गोधूलि की व्यंजनाएँ अलग है। धूल जीवन का यथार्थवादी गद्य है तो धूलि उसकी कविता है। अर्थात् हमारा शरीर जिस धूल और मिट्टी से बना है। वही धूल उसकी वास्तविकता प्रकट करती है और इसी धूल शब्द को कवियों ने धूलि के रूप में अभिव्यंजित किया है। धूली छायावादी दर्शन है। इसकी वास्तविकता छायावादी कविता के समान संदिग्ध है। धूरि लोक संस्कृति का नवीन जागरण हैं अर्थात् भारतीय संस्कृति में कवियों ने धूरि शब्द का प्रयोग करके अपनी प्राचीन सभ्यता को प्रकट करना चाहा है। इसी प्रकार गौ-गोदालों के पद संचालन से उड़ने वाली मिट्टी को गोधूलि कहा गया है। इन सबका रंग चाहे एक ही हो किन्तु रूप में भिन्नता है. मिट्टी चाहे काली, पीली. लाल तरह-तरह की होती है लेकिन धूल कहते ही शरत् के धुले-उजले बादलों का स्मरण हो जाता है।
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