धूल - रामविलास शर्मा
इस पंक्ति में लेखक ने हीरे और काँच में तुलना करते हुए कहा है कि सच्चा हीरा वही होता है जो हथौड़े की चोट पड़ने पर भी नहीं टूटता। काँच और हीरे में यही अन्तर है। धूल भरे हीरे में ऊपरी धूल को न देखकर भीतरी चमक को निहारना चाहिए जो अटूट होती है। यह समरता का दृढ़ प्रकाश प्रस्तुत करती है। काँच की चमक को देखकर मोहित हो जाना मूर्खता है। हीरे की परख जौहरी ही कर सकता है। हीरा अटूटता का स्पष्ट प्रमाण है तो काँच क्षणिकता का। हीरा एक-न-एक दिन अपनी अमरता का बोध कराकर काँच की नश्वरता को प्रमाणित करता है। लेखक के अनुसार धूल में लिपटा किसान आज भी अभिजात वर्ग की उपेक्षा का पात्र है। किसान उसकी उपेक्षा सहनकर मिट्टी से प्यार करता है और अपने परिश्रम से अन्न पैदा करता है। यह उसके परिश्रमी होने का प्रमाण है। वह ऐसा हीरा है जो धूल भरा है। हीरा अपनी कठोरता के लिए जाना जाता है जो हथौड़े की चोट से भी नहीं टूटता। इसी प्रकार से भारतीय किसान भी कठोर परिश्रम से नहीं घबराता है इसलिए वह अटूट है।
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