धूल - रामविलास शर्मा
(क) पाठ- धूल, लेखक-राम विलास शर्मा।
(ख) हमारी देशभक्ति देश की धूलि को मस्तक पर धारण करने से प्रमाणित होगी। यदि इतना भी न कर सके तो उस धूल पर पैर तो अवश्य ही रखना चाहिए।
(ग) लेखक ने इस पंक्ति से व्यंग्य किया है कि हमें धूलि भरे हीरे में चमक नहीं दिखाई देती। बल्कि धूल दिखाई देती है। इसका आशय यह है कि हमें ग्रामीण लोगों की स्वाभाविकता और सच्चाई नज़र नहीं आती, उनमें फूहड़ता नजर आती है।
(घ) इस कथन का अभिप्राय है कि जैसे सच्चा हीरा हथौड़े की चोट से नहीं टूटता। उसी प्रकार से परिश्रमी किसान अपनी मजबूती और कठोरता से धूल-मिट्टी से लथपथ होने पर भी निरन्तर अपनी कर्म करता रहता है। वह संकट और कष्ट सहकर भी हार नहीं मानते बल्कि और अधिक मजबूत हो जाते है।
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