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19:58 pm

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Question is

निन्नलिखित गद्यांशों प्रशनों को पढ़कर नीचे लिखे  के उत्तर दीजिए-
हमारी देशभक्ति धूल को माथे से न लगाए तो कम-से-कम उस पर पैर तो रखे। किसान के हाथ-पैर, मुँह पर छाई हुई यह धूल हमारी सम्यता से कक्याकहती है? हम काँच को प्यार करते हैं, धूलि भरे हीरे में धूल ही दिखाई देती है, भीतर की कांति आँखों से ओझल रहती है, लेकिन ये हीरे अमर है और एक दिन अपनी अमरता का प्रमाण भी देंगे। अभी तो उन्होंने अटूट होने का ही प्रमाण दिया है- “हीरा वही घन चोट न टूटे।” वे उलटकर चोट भी करेंगे और तब काँच और हीरे का भेद जानना बाकी न रहेगा। तब हम हीरे से लिपटी हुई धूल को भी माथे से लगाना सीखेंगे।
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखो।
(ख) हमारी देशभक्ति कैसे प्रमाणित होगी?
(ग) हमें धूलि और हीरे में भूल दिखाई देती है-व्यंग्य स्पष्ट कीजिए।
(घ) ‘हीरा वही घन चोट न टूटे’ से क्या अभिप्राय है?










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