‘सिल्वर वैडिंग’ में एक ओर स्थिति को ज्यों-का-त्यों स्वीकार लेने का भाव है तो दूसरी ओर अनिर्णय की स्थिति भी। कहानी के इस द्वंद्व को स्पष्ट कीजिए।?
‘सिल्वर वेडिंग’ में एक ओर स्थिति को ज्यों-का-त्यों स्वीकार कर लेने का भाव है तो दूसरी ओर अनिर्णय की स्थिति भी है। इस कहानी में यशोधर पंत परिस्थितियों के साथ समझौता करना नहीं जानते पर उनकी संतान समय के साथ चलते हैं। यशोधर बाबू की पत्नी अपने मूल संस्कारों से किसी भी तरह आधुनिक नहीं है तथापि बच्चों की तरफतरफदारी मातृ सुलभ मजबूरी ने उन्हें मॉडल बना दिया है।
यशोधर बाबू सदैव अनिर्णय की स्थिति में रहते है। वे किसी भी नए परिवर्तन को सहज रूप से स्वीकार नहीं कर पाते। यही कारण है कि वे बार-बार ‘समहाउ इंप्रॉपर’ कहते रहते हैं। वैसे कभी-कभी यशोधर बाबू यह स्वीकार करते हें कि उनमें कुछ परिवर्तन हुआ है, पर पत्नी का बदलाव उन्हें रास नहीं आता। कहानी में नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी का द्वंद्व आरंभ से अंत तक चलता रहता है। यशोधर बाबू का यह द्वंद्व दफ्तर में भी है और घर में भी।