पाठ में आए लोकभाषा के इन संवादों को समझकर इन्हें खड़ी बोली हिंदी में डालकर प्रस्तुत कीजिए।
(क) ई कउन बड़ी बात आय। रोटी बनाय जानित है, दाल संधि लेइत है, साग- भाजी छँउक सकित है, अउर बाकी का रहा।
(ख) हमारे मालकिन तौ रात-दिन कितबियन माँ गड़ी रहती हैं। अब हमहूँ पढ़ै लागव तो घर-गिरिस्ती कउन देखी-सुनी।
(ग) ऊ बिचरिउअ तौ रात-दिन काम माँ झुकी रहती हैं अउर तुम पचे घूमती-फिरती है। चली तनिक हाथ बटाय लेऊ।
(घ) तब ऊ कुच्छों करिहैं-धारिहैं ना-बस गली-गली गाउत-बजाउत फिरिहैं।
(ड.) तुम पचै का का बताई-यहै पचास बरिस से लग रहित हैं।
(च) हम कुकुरी बिलारी न होयँ, हमारे मन पुसारी तौ हम दूसरा के जाब नाहिं त तुम्हार पर्चे का छाती पै होरहा भूजब और राज करब समुझे रहौ।
(क) यह क्या बड़ी बात है। रोटी बनाना जानती हूँ, दाल पका लेती हूँ, साग-सब्जी छींक सकती हूँ और बाकी क्या रहा?
(ख) हमारी मालकिन तो रात-दिन किताबों में गड़ी (डूबी) रहती हैं। अब यदि हम भी पढ़ने लगे तो घर-गृहस्थी कौन देखेगा-सुनेगा।
(ग) वह बेचारी तो रात-दिन काम में झुकी (लगी) रहती है और तुम घूमती-फिरती हो। चलो, तनिक हाथ बँटा लें।
(घ) तब वह कुछ भी करता-धरता नहीं, बस गली-गली में गाता-बजाता फिरता है।
(ड.) तुम लोगों का मैं क्या बताऊँ-यह पचास वर्ष से साथ रहता है।
(च) हम कुतिया-बिल्ली नहीं हैं। यदि हमारा मन ने चाहा तो हम दूसरे के यहाँ जाएँगे नहीं तो मैं तुम लोगों की छाती पर चने भूनूँगी और राज करूँगी-यह समझ लेना।