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त्रिलोचन

Question
CBSEENHN11012304

चम्पा अच्छी है:
चंचल है
नटखट भी है
कभी-कभी ऊधम करती है
कभी-कभी वह कलम चुरा लेती है
जैसे-तैसे उसे ढूंढकर जब लाता हूँ
पाता हूँ-अब कागज गायब
परेशान फिर हो जाता हूँ
चम्पा कहती है:
तुम कागद ही गोदा करते हो दिनभर
क्या यह काम बहुत अच्छा है
यह सुनकर मैं हँस देता हूँ
फिर चम्पा चुप हो जाती है
उस दिन चम्पा आई, मैंने कहा कि
चम्पा, तुम भी पढ़ लो
हारे गाढ़े काम सरेगा
गांधी बाबा की इच्छा है-
सब जन पड़ना-लिखना सीखें
चम्पा ने यह कहा कि मैं तो नहीं पढूँगी
तुम तो कहते थे गांधी बाबा अच्छे हैं
वे पढ़ने-लिखने की कैसे बात कहेंगे
मैं तो नहीं पढूँगी

Solution

प्रसंग- प्रस्तुत पक्षियों कवि त्रिलोचन द्वारा रचित कविता ‘चम्पा काले- काले अच्छर नहीं चीन्हती’ से अवतरित हैं। कवि चम्पा की स्थिति का परिचय देते हुए कहता है-

व्याख्या-कवि बताता है कि चम्पा एक अच्छी लड़की है। वह भोंदू नहीं है। वह चंचल और नटखट प्रवृत्ति की है। वह कभी-कभी ऊधम (शोर-शराबा) भी करती है। वह कभी कवि की कलम चुरा लेती है। जब कवि कलम को ढूँढ़कर लाता है तब तक वह उसके कागज गायब कर देती है। उसकी इन हरकतों से कवि परेशान हो उठता है।

चम्पा उससे (कवि से) कहती है कि तुम व्यर्थ ही कागजों को अपनी कलम से गोदते रहते हो। क्या तुम अपने काम को बहुत अच्छा समझते हो? कवि उसका प्रश्न सुनकर हँस देता है। इसके बाद चम्पा चुप हो जाती है। फिर एक दिन चम्पा कवि के पास आई तो कवि ने उससे पढ़ने के लिए कहा। यह पढ़ाई तुम्हारी मुसीबत की घड़ी में बड़ी काम आएगी। महात्मा गांधी की भी यह हार्दिक इच्छा है कि सभी लोग पढ़ना-लिखना सीखें। यह सुनकर चम्पा ने उत्तर दिया कि मैं तो नहीं पढूँगी। तुम तो गांधी बाबा को बहुत अच्छा बताते थे, भला वे पढ़ने-लिखने की बात क्यों कहने लगे। तात्पर्य यह है कि जो व्यक्ति पढ़ने-लिखने की बात करता है, चम्पा को वह अच्छा नहीं लगता, चाहे वह व्यक्ति कितना भी बड़ा क्यों न हो। वह अपने न पढ़ने की जिद पर अडिग है और कहती है कि मैं तो नहीं पढूँगी।

विशेष: 1. चम्पा के अनोखे व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया है।

2. भाषा सीधी-सरल एवं सुबोध है।

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