कवि के पिता के मन और बरगद के वृक्ष में क्या साम्य है?
’पिता’ कविता में कवि भवानीप्रसाद मिश्र ने पिता का मन बरगद के वृक्ष-सा बताया है- ‘मन कि बड़ का झाडू जैसे’ -बरगद के वृक्ष से यदि कोई पत्ता टूटता है या टहनी टूटती है तो दुख से दूध की धारा बहने लगती है। पिताजी का मन भी ऐसा ही है जब कोई अपना उनसे दूर होता है या अलग होता है तो से दुखी हो जाते हैं और उनकी अश्रुधारा बहने लगती है। वे सभी का ध्यान रखते हैं, इसलिए उन्हें धैर्य देने की आवश्यकता है।