खैर, पैर की जूती, जोरू
न सही एक, दूसरी आती
पर जवान लड़के की सुध कर
साँप लौटते, फटती छाती।
पिछले सुख की स्मृति आँखों में
क्षण भर एक चमक है लाती,
तुरत शून्य में गगड़वह चितवन
तीखी नोक सदृश बन जाती।
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रगतिवादी कवि सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित कविता ‘वे आँखें’ से उद्धृत हैं। इसमें कवि किसान की दुर्दशा का मार्मिक चित्रण करता है।
सव्याख्या-कवि कहता हैं कि सामान्य रूप से पत्नी को पैर की जूती माना जाता है (जो कि असत्य है)। कहा जात रहा है कि एक कै न रहने पर दूसरी आ जाती है। किसान अपनी पत्नी के अभाव के दुख को झेल भी ले, पर जवान बेटे के असमय मर बारे की याद उसे व्याकुल कर जाती है। तब उसकी छाती कटने लगती है तथा छाती पर साँप लोटने लगता है अर्थात् वह अत्यंत दुखी एवं व्याकुल हो उठता है।
किसान को पिछले नजीवन के सुखों की याद बार-बार उसकी आँखों में आती है। इससे कभी-कभी उसकी अस्त्रों में चमक आ-शती है। लेकिन यह स्थिति-ज्यादा देर तक नहीं बनी रहती। वह दृष्टि शीघ्र ही शून्य में खो जाती है और वह तीखी नोंक के समान गड़ती रहती है। अर्थात सुख के स्मरण की चमक क्षणिक रहती है। वह फिर दुख-सागर में डूब जाता है।
विशेष- 1. ‘-स्मृति-बिंब’ का सुंदर प्रयोग हुआ है।
2. किसान ककीदशा के वर्णन में मार्मिकता का समावेश है।
3. ‘साँप लोटना’, ‘छाती फटना’, ‘पैर की जूती’ आदि मुहावरों का सटीक प्रयोग हुआ है।
4. सरल एवं सुबर धसुबोधखड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।