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सुमित्रानंदन पंत

Question
CBSEENHN11012250

बिका दिया घर द्वार
महाजन ने न ब्याज की कौड़ी छोड़ी,
रह-रह आखों में चुभती वह
कुर्क हुई बरधों की जोड़ी!
उजरी उसके सिवा किसे कब
पास दुहाने आने देती?
अह, आँखों में नाचा करती
उजड़ गई जो सुख की खेती!

Solution

प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित कविता ‘वे आँखें’ से अवतरित हैं। यह उनके प्रगतिवादी दौर की कविता है। इसमें कवि किसान की दुर्दशा का मार्मिक चित्रण करता है।

व्याख्या-स्वाधीन भारत में भी किसान की दुर्दशा में कोई सुधार नहीं हो पाया। वह महाजन के कर्ज के बोझ तले दबा ही रहा। उस महाजन ने अपना पूरा ब्याज तथा मूल पाने के लिए किसान का घर-द्वार तक बिकवा दिया। खेतों से वह पहले ही बेदखल हो चुका था। अब तो उसके बैलों की जोड़ी भी कुर्क हो गई। बैलों की वह जोड़ी उसे बहुत प्रिय थी। रह-रहकर वह उसकी आँखों में चुभ जाती थी।

उसके पास एक सफेद गाय भी थी जिसे वह उजरी कहा करता था। उसका दूध वह स्वयं निकाला करता था। वह गाय किसो अन्य को अपना दूध नहीं निकालने देती थी। वह किसी को अपने पास फटकने तक नहीं देती थी। वह भी बिककर चली गई। किसान का सब कुछ बिक गया। जमींदार और महाजन ने उसे कहीं का न छोड़ा। उसके सुख की खेती उजड़ गई। वह सारी स्थिति अभी भी उसकी आँखों में नाचती रहती है अर्थात् अभी भी उसकी सुखद स्मृति बनी हुई है। अब वह सारा सुख जाता रहा है।

विशेष- 1. जमींदार और महाजनों के अत्याचारों का यथार्थ अंकन हुआ है।

2. ‘रह -रह’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

3. ‘सुख की खेती उजड़ना, लाक्षणिक प्रयोग है।

4. ‘किसे कब’ में अनुप्रास अलंकार है।

5. सीधी-सरल भाषा का प्रयोग किया गया है।

Some More Questions From सुमित्रानंदन पंत Chapter

सुमित्रानंदन पंत के जीवन एवं साहित्य पर प्रकाश डालते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

वे आँखें
अंधकार की गुहा सरीखी
उन आखों से डरता है मन
भरा दूर तक उनमें दारुण
दैन्य दुःख का नीरव रोदन!
वह स्वाधीन किसान रहा
अभिमान भरा आखों में इसका
छोड़ उसे मँझधार आज
संसार कगार सदृश बह खिसका!


लहराते वे खेत दुर्गों में
हुआ बेदखल वह अब जिनसे,
हँसती थी उसके जीवन की
हरियाली जिनके दतृन-तृनसे!
आँखों ही में घूमा करता
‘वह उसकी आँखों का तारा,
कारकुनों की लाठी से जो
गया जवानी ही में मारा!

बिका दिया घर द्वार
महाजन ने न ब्याज की कौड़ी छोड़ी,
रह-रह आखों में चुभती वह
कुर्क हुई बरधों की जोड़ी!
उजरी उसके सिवा किसे कब
पास दुहाने आने देती?
अह, आँखों में नाचा करती
उजड़ गई जो सुख की खेती!

बिना दवा दर्पन के धरनी
स्वरग चली-आँखें आतीं भर,
देख-रेख के बिना दुध मुँही
बिटिया दो दिन बाद गई मर!
घर में विधवा रही पतोहू
लछमी थी, यद्यपि पति घातिन,
पकड़ मंगाया कोतवाल ने,
डूब कुएँ में मरी एक दिन!

खैर, पैर की जूती, जोरू
न सही एक, दूसरी आती
पर जवान लड़के की सुध कर
साँप लौटते, फटती छाती।
पिछले सुख की स्मृति आँखों में
क्षण भर एक चमक है लाती,
तुरत शून्य में गगड़वह चितवन
तीखी नोक सदृश बन जाती।

अंधकार की गुहा सरीखी
‘उन आँखों से’ डरता है मन।

(क) आमतौर पर हमें डर किन बातों से लगता है?

(ख) उन आँखों से किसकी ओर संकेत किया गया है?

(ग) कवि को ‘उन आँखों से’ डर क्यों लगता है?

(घ) डरते हुए भी कवि ने उस किसान की आँखों की पीड़ा का वर्णन क्यों किया है?

(ड) यदि कवि इन आँखों से नहीं डरता, क्या तब भी वह कविता लिखता?

कविता में किसान की पीड़ा के लिए कीन्हें जिम्मेदार बताया गया है?

‘पिछले सुख की स्मृति आँखों में क्षण भर रक चमक है लाती’ में किसान के किन पिछले सुखों की ओर संकेत किया गया है?

संदर्भ सहित आशय स्पष्ट करें -
उजरी उसके सिवा किसे कब
पास दुहाने आने देती?