लहराते वे खेत दुर्गों में
हुआ बेदखल वह अब जिनसे,
हँसती थी उसके जीवन की
हरियाली जिनके दतृन-तृनसे!
आँखों ही में घूमा करता
‘वह उसकी आँखों का तारा,
कारकुनों की लाठी से जो
गया जवानी ही में मारा!
प्रसंग- प्रस्तुत काव्याशं प्रगतिवादी कवि सुमित्रानंदन पपंतद्वारा रचित कविता ‘वे अस्त्र,’ से अवतरित है। कवि स्वाधीन भारत में भी किसानों की दुर्दशा का मार्मिक अकन करते हुए बताता है-
व्याख्या-कभी किसानों के ये खेत भरपूर फसल से लहलहाते थे। तब ये खेत उसके अपने थे। अब उसे इन खेतों से बेदखल कर दिया गया है। अर्थात् उसे इन खेतों की हिस्सेदारी से अलग कर दिया गया है। इन खेतों में फैली हरियाली के एक-एक तिनके में इन किसानों के जीवन की हँसी झलकती थी। ये खेत ही उसके जीवन की खुशहाली के आधार थे। आज उन्हें इस खुशहाली से वंचित कर दिया गया है।
जमींदार के कारकुनों ने लाठी मार-मारकर इस किसान के प्यारे बेटे को मार दिया था। वह किसान अभी भी उसकी याद में रोता रहता है। इसकी आँखों में अपना प्यारा बेटा घूमता रहता है अर्थात् इसकी आँखों में उस प्यारे बेटे की छवि बार-बार तैरती रहती है। यह किसान उसे आज तक भुला नहीं पाया है।
कवि उस घटना का मार्मिक चित्रण करता है जिसमें किसान को उसके खेत से बेदखल किया गया था तथा विरोध करने पर उसके बेटे की नृशंस हत्या कर दी गई थी। यह सारा काम जमींदार के कारिंदों ने किया था।
विशेष- 1. किसान की दारुण दशा को बताने में मार्मिकता का समावेश हुआ है।
2. ‘आखों का तारा’ मुहावरे का सटीक प्रयोग हुआ है।
3. ‘तृन-तृन’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
4. ‘स्मृति बिंब’ का प्रयोग है।
5. खड़ी बोली अपनाई गई है।