स्पीति में बारिश एक यात्रा वृतांत है। इसमें यात्रा के दौरान किए गए अनुभवों, यात्रा-स्थल से जुड़ी विभिन्न जानकारियों का बारीकी से वर्णन किया गया है। आप भी अपनी किसी यात्रा का वर्णन लगभग 200 शब्दों में कीजिए।
मेरी अविस्मरणीय यात्रा
पर्वतों पर जाने को मेरा मन ललकत। रहता है। इस ग्रीष्मावकाश में हमारे परिवार ने कश्मीर यात्रा का कार्यक्रम बनाया। रात -को नौ बजे दिल्ली जंक्शन से हम कश्मीर मेल में सवार हुए। गाड़ी खचाखच भरी हुई थी। हमने सीट आरक्षित करवा रखी थी। अत: कोई कष्ट न हुआ। हम अगले दिन जम्मू पहुँच गए।
प्रात:काल हमने चाय पीने के बाद अपने बिस्तर कस लिये। टैक्सी में सामान रखकर हम बैठ गए और बस अड्डे की ओर बढे। बस अड्डा पहुँचकर हम बस में सवार हुए और बस चल पड़ी। बस में बैठे हुए पर्वतों का मनोहर दृश्य दिखाई दे रहा था, स्वर्गभूमि कश्मीर पहुँचने के लिए हम लालायित थे। हमारे हृदय में प्रसन्नता की लहरें ठाठें मार रही थीं। हमारी बस रात को एक स्थान पर ठहरी; सवेरे बस फिर श्रीनगर की ओर बढ़ी।
श्रीनगर पहुँचने पर हमें लगा कि हम वास्तव में स्वर्ग के एक कोने में पहुँच गए हैं। मुझे श्रीधर पाठक की वह कविता रह-रहकर स्मरण हो आती थी, जिसमें उन्होंने कश्मीर की सुषमा का अत्यंत मनोहारी वर्णन किया है। श्रीनगर में हम नाव पर सवार होकर बद्रिकाश्रम में ठहरे। यहाँ अनेक प्रदेशों के लोग ठहरे हुए थे-कहीं पंजाबी युवती गर्व से उन्नत मस्तक किए, कहीं उत्तर प्रदेश की प्राचीन घूँघट काई, कहीं कोई महाराष्ट्रीयन सज्जन शिखा धारण किए, कहीं चंचल युवतियाँ और शरारती नवयुवक।
कश्मीर में वास्तविक जीवन का परिचय तो हमें हाउसबोट में ही आकर मिला। नीले आकाश की छाया से नील वर्ण हुए झेलम के जल में तैरते हुए वे रंग-बिरंगे जलयान (जिन्हें हाउसबोट कहा जाता है) वर्षा में घुले आकाश में इंद्रधनुष की स्मृति दिलाते थे।
हम जिस हाउसबोट में ठहरे, उसमें सब सुख-साधनों से युक्त दो शयनागार, एक स्नानागार तथा एक भोजनालय था। हमारा माझी सुलाना, उसकी पत्नी तथा उसके दो बच्चे फूल की तरह खिले हुए चेहरे वाले भले प्रतीत हुए।
कश्मीर में हजारों प्रकार के फूल खिलते हैं। उनमें मजारपोश तथा लालपोश बहुत ही प्रिय दिखाई देते हैं। चारों ओर ऊँचे पहाड़ खड़े हैं और बीच में मैदान हैं, जिसमें श्रीनगर बसा हुआ है। इसके बीचों-बीच झेलम (जेहलम) नदी बहती है, जिस पर से जाने लिए कई पुल बने हुए हैं।
कश्मीर के बालकों की आँखें मजारपोश जैसी, होठ लालपोश जैसे और रंग बर्फ जैसा है। सामने आते ही वे ‘सलाम जनाब पासा’ कहकर अभिवादन करते हैं। कश्मीरी स्त्रियाँ भी हँसती-हँसती मिलती हैं। कश्मीर में सफाई की कमी है। छोटे-छोटे घर हैं, परंतु चित्रलिखित जैसे हैं।
कश्मीर में हमने शालीमार बाग और निशात बाग देखने का आनंद भी लिया। शालीमार के चिनार के पेड़, ऊँचे उठते फव्वारे, मखमल जैसी घास के ढके ‘लान’ एक समाँ बाँध रहे थे। डल झील के दूसरी ओर निशात बाग है। डल झील में शिकारे में बैठकर हमने वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य का भरपूर आनंद लिया। झील में विहार करने के पश्चात् हमने निशात बाग की सैर की। यदि पृथ्वी पर कहीं स्वर्ग है तो वह यहीं पर है। यहाँ अनेक फलों के वृक्ष थे। बाग के बीचों-बीच नहर बह रही थी। यह एक अनोखा दृश्य था।
एक सप्ताह की यात्रा कब समाप्त हो गई, इसका कुछ पता ही नहीं चला। वहाँ से लौटना भला किसे अच्छा लगता है, पर समय की विवशता थी। हम बस द्वारा पहले जम्मु आए और वहाँ से रेलगाड़ी में बैठकर दिल्ली आ गए।