निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
यह पावस यहां नहीं पहुंचता है। कालिदास की वर्षा की शोभा विंध्याचल में है। हिमालय की इन मध्य की घाटियों में नहीं है। मैं नहीं चानजानता इसका लालित्य लाहुल-स्पीति के नर-नारी समझ भी पाएंगे या नहीं। वर्षा उनके संवेदन का अंग नहीं है। वह यह जानते नहीं हैं कि ‘बरसात में नदियां बहती हैं, बादल बरसते, मस्त हाथी चिंघाड़ते हैं, जंगल हरे- भरे हो जाते हैं, अपने प्यारों से बिछुड़ी हुई स्त्रियां रोती-कलपती हैं, मोर नाचते हैं और बंदर चुप मारकर गुफाओं में जा छिपते हैं।’
अगर कालिदास यहाँ आकर कहें कि ‘अपने बहुत से सुंदर गुणों से सुहानी लगने वाली, स्त्रियों का जी खिलाने वाली, पेड़ों की टहनियों और बेलों की सच्ची सखी तथा सभी जीवों का प्राण बनी हुई वर्षा ऋतु आपके मन की सब साधे पूरी करे’, तो शायद स्पीति के नर-नारी यही पूछेंगे कि यह देवता कौन है? कहाँ रहता है? यहाँ क्यों नहीं आता?
1. कहाँ पावस नहीं पहुँचता? इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?
2. यहाँ के लोग क्या नहीं जानते?
3. कालिदास आकर क्या कहेगे?
1. स्पीति में पावस (वर्षा) नहीं पहुँचता है। अर्थात् यहाँ वर्षा न के बराबर ही होती है। कालिदास ने जिस वर्षा की शोभा का वर्णन किया है, उसे विंध्याचल में ही देखा जा सकता है, स्पीति घाटी में नहीं। लाहुल-स्पीति के लोग वर्षा की सुंदरता को पूरी तरह से अनुभव नहीं कर पाते। वर्षा उनकी संवेदना का अंग नहीं है।
2. लाहुल-स्पीति के लोग यह नहीं जानते कि बरसात में नदियाँ बहती हैं, बादल बरसते हैं, मस्त हाथी चिंघाड़ते हैं, जंगल हरे- भरे हो जाते हैं, वियोगिनी स्त्रियाँ अपने प्रियजनों के लिए रोती-कलपती हैं, मोर नाचते हैं और बंदर गुफाओं में जा छिपते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्होंने वर्षा होने और उसके आनंद को भोगा -जाँचा नहीं है।
3. कालिदास स्पीति में आकर यह कहें-! सुंदर और गुणवती स्त्रियों के जी को खिलाने वाली वर्षा, पेड़ों की टहनियों और बेलों की सच्ची सहेली वर्षा, सभी जीवों की प्राण बनी वर्षा आपके मन की इच्छाओं को पूरी करे। इसे सुनकर स्पीति के लोग ऐसे देवता के बारे में पूछेंगे कि यह कौन-सा देवता है, कहाँ रहता है और आता क्यों नहीं है। अर्थात् वे वर्षा को देवता मानेंगे। उनका वास्ता ऐसे देवता से पड़ा ही नहीं है।