स्पर्श भाग २ Chapter 1 साखी
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    NCERT Solution For Class 10 Social+science स्पर्श भाग २

    साखी Here is the CBSE Social+science Chapter 1 for Class 10 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 10 Social+science साखी Chapter 1 NCERT Solutions for Class 10 Social+science साखी Chapter 1 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 10 Social+science.

    Question 1
    CBSEENHN10002348

    मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?

    Solution

    मीठी वाणी बोलने से सुनने वाले के मन से क्रोध और घृणा की भावना सम्पात हो जाती हैं। इसके साथ ही हमारा अंतःकरण प्रसन्न होने लगता हैं प्रभावस्वरूप औरों को सुख और तन को शीतलता प्राप्त होती है।

    Question 2
    CBSEENHN10002349

    दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।

    Solution

    यहाँ दीपक का मतलब 'भक्तिरूपी ज्ञान' तथा अन्धकार का मतलब 'अज्ञानता' से है। जिस प्रकार दीपक के जलने पर अन्धकार नष्ट हो जाता है ठीक उसी प्रकार जब ज्ञान का प्रकाश हृदय में प्रज्ज्वलित होता है तब मन के सारे विकार अर्थात भ्रम, संशय का नाश हो जाता है।

    Question 3
    CBSEENHN10002350

    ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते?

    Solution

    इसमें कोई संदेह नही कि ईश्वर हर प्राणी के भीतर ही नही, बल्कि हर कण में है। किन्तु हमारा मन अज्ञानता, अहंकार, विलासिताओं, इत्यादि में लिप्त है। हम उसे मंदिर, मस्जिदों, गिरजाघरों में ढूंढ़ते हैं जबकि वह सर्वव्यापी है। इस कारण हम ईश्वर को नहीं देख पाते हैं।

    Question 4
    CBSEENHN10002351

    संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।

    Solution

    कवि के अनुसार संसार में वो लोग सुखी हैं, जो संसार में व्याप्त सुख-सुविधाओं का भोग करते हैं और दुखी वे हैं, जिन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई है। 'सोना' अज्ञानता का प्रतीक है और 'जागना' ज्ञान का प्रतीक है। जो लोग सांसारिक सुखों में खोए रहते हैं, जीवन के भौतिक सुखों में लिप्त रहते हैं वे सोए हुए हैं और जो सांसारिक सुखों को व्यर्थ समझते हैं, अपने को ईश्वर के प्रति समर्पित करते हैं वे ही जागते हैं। वे संसार की दुर्दशा को दूर करने के लिए चिंतित रहते हैं।

    Question 5
    CBSEENHN10002352

    अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?

    Solution

    मनुष्य को परिष्कार और आत्मोन्नति के प्रयास निरंतर करते रहना चाहिए। निंदा करनेवाले के जरिये ही हमें अपने परिष्कार का अवसर मिलता है। अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने बताया है कि हमें अपने आसपास निंदक रखने चाहिए ताकि वे हमारी त्रुटियों को बता सके। वास्तव में निंदक हमारे सबसे अच्छे हितेषी होते हैं। उनके द्वारा बताए गए त्रुटियों को दूर करके हम अपने स्वभाव को निर्मल बना सकते हैं।

    Question 6
    CBSEENHN10002353

    ‘ऐकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होई’− इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?

    Solution
    इन पंक्तियों द्वारा कवि ने प्रेम की महत्ता को बताया है। ईश्वर को पाने के लिए लोग न जाने कितने यतन-जतन करते हैं पर उन्हें समझना चाहिए कि ईश्वर को पाने के लिए एक अक्षर प्रेम का अर्थात ईश्वर को पढ़ लेना ही पर्याप्त है। बड़े-बड़े पोथे या ग्रन्थ पढ़ कर कोई पंडित नहीं बन जाता। केवल उस निराकार परमात्मा का नाम स्मरण करने से ही सच्चा ज्ञानी बना जा सकता है।
    Question 7
    CBSEENHN10002354

    कबीर की उद्धत साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए।

    Solution
    कबीर ने अपनी साखियाँ सधुक्कड़ी भाषा में लिखी है। इनकी भाषा मिली-जुली है। इनकी साखियाँ संदेश देने वाली होती हैं। वे जैसा बोलते थे वैसा ही लिखा है। लोकभाषा का भी प्रयोग हुआ है; जैसे- खायै, नेग, मुवा, जाल्या, आँगणि आदि भाषा में लयबद्धता, उपदेशात्मकता, प्रवाह, सहजता, सरलता शैली है।
    Question 8
    CBSEENHN10002355

    निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिये:
    बिरह भुवंगम तन बसै,  मंत्र न लागै कोइ।

    Solution
    इस कविता का भाव है कि जिस व्यक्ति के हृदय में ईश्वर के अनंत प्रेम कि धुन लग जाती हैं और ईश्वर के प्रेम को ही अपना सारा सुख मानने लगता हैं तथा ईश्वर के प्रति प्रेम रुपी विरह का सर्प बस जाता है, उस पर कोई मंत्र असर नहीं करता है। उस पर किसी बात का कोई असर नहीं होता है। अर्थात भगवान के विरह में कोई भी जीव सामान्य नहीं रहता है।
    Question 9
    CBSEENHN10002356

    निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिये:
    कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढै बन माँहि।

    Solution

    इस पंक्ति में कवि कहता है कि जिस प्रकार हिरण अपनी नाभि से आती सुगंध पर मोहित रहता है परन्तु वह यह नहीं जानता कि यह सुगंध उसकी नाभि में से आ रही है। वह उसे इधर-उधर ढूँढता रहता है। उसी प्रकार मनुष्य भी अज्ञानतावश वास्तविकता को नहीं जानता कि ईश्वर उसी में निवास करता है और उसे प्राप्त करने के लिए धार्मिक स्थलों, अनुष्ठानों में ढूँढता रहता है। परमात्मा को केवल अपनी आत्मा द्वारा ही जाना जा सकता हैं। वह तो जीवन रूपी प्रकाश हैं।

    Question 10
    CBSEENHN10002357

    निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिये:
     जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।

    Solution

    कबीर कहते हैं कि जब मैं था अर्थात् मेरे अंदर 'मैं' की भावना, अहंकार विद्यमान था तब मेरे पास हरी नही थे और अब हरी हैं, भगवान हैं तो मेरे अंदर अहंकार का भाव नहीं है। अब मेरे ह्रदय मैं प्रभु के ज्ञान के दीपक का प्रकाश फैल गया है तो अज्ञान रूपी अंधकार मिट गया हैं। क्योंकि जब तक मनुष्य में अज्ञान रुपी अंधकार छाया है वह ईश्वर को नहीं पा सकता। जब ईश्वर की प्राप्ति हो जाती है तब अहंकार दूर हो जाता है।

    Question 11
    CBSEENHN10002358

    निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिये:
    पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।

    Solution
    कबीर के अनुसार अर्थात् संसार पोथी पढ़-पढ़ कर मर गया कोई भी पंडित नही हुआ अर्थात् केवल पुस्तकीय ज्ञान के आधार पर ही कोई ज्ञानवान नहीं बन सकता यदि एक अक्षर प्रिय अर्थात् ईश्वरीय प्रेम का पढ़ लिया तो वह पंडित हो जायेगा, ज्ञानी हो जायेगा। प्रेम से इश्वर का स्मरण करने से ही उसे प्राप्त किया जा सकता है। प्रेम में बहुत शक्ति होती है।
    Question 12
    CBSEENHN10002359

    पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रुप उदाहरण के अनुसार लिखिए। -
    उदाहरण − जिवै - जीना
    औरन, माँहि, देख्या, भुवंगम, नेड़ा, आँगणि, साबण, मुवा, पीव, जालौं, तास।

    Solution

    जिवै - जीना
    औरन - दूसरों; 
    माँहि - के अंदर (में)
    देख्या - देखा
    भुवंगम - साँप
    नेड़ा - निकट
    आँगणि - आँगन
    साबण - साबुन
    मुवा - मरा
    पीव - प्रेम
    जालौं - जलना
    तास - उसका

    Question 13
    CBSEENHN10002360

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर भाव स्पष्ट कीजिये:
    ऐसी बाणी बोलिये, मन का आपा खोई |
    अपना तन सीतल करै, औरन कौ सुख होइ ||


    Solution

    कबीर कहते हैं की मनुष्य को ऐसी बाणी बोलनी चाहिये जिसमें हमारा अंहकार न दिखता हो अर्थात्  हमारी बातों से हमारा अंहकार प्रकट नही होना चाहिये ऐसी मीठी बाणी बोलने से अपने को भी संतोष होता है तथा दूसरों को भी सुख मिलता है, दूसरे भी प्रसन्न होते है 

    Question 15
    CBSEENHN10002362
    Question 16
    CBSEENHN10002363

    निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये
    ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोई |
    अपना तन सीतल करै, औरन कौ सुख होइ ||

    'अपना तन शीतल' कैसे हो जाता है'

    Solution

    जब हम मीठा और अच्छा बोलते हैं तो स्वयं को बहुत संतोष मिलता है। सकरात्मक ऊर्जा एवं तरंगे शरीर  को शीतल कर देती है गन्दा, कड़वा और नकरात्मक बोलने से मन कुंठित हो जाता है।  

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