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साखी

Question
CBSEENHN10002357

निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिये:
 जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।

Solution

कबीर कहते हैं कि जब मैं था अर्थात् मेरे अंदर 'मैं' की भावना, अहंकार विद्यमान था तब मेरे पास हरी नही थे और अब हरी हैं, भगवान हैं तो मेरे अंदर अहंकार का भाव नहीं है। अब मेरे ह्रदय मैं प्रभु के ज्ञान के दीपक का प्रकाश फैल गया है तो अज्ञान रूपी अंधकार मिट गया हैं। क्योंकि जब तक मनुष्य में अज्ञान रुपी अंधकार छाया है वह ईश्वर को नहीं पा सकता। जब ईश्वर की प्राप्ति हो जाती है तब अहंकार दूर हो जाता है।

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निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिये:
बिरह भुवंगम तन बसै,  मंत्र न लागै कोइ।

निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिये:
कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढै बन माँहि।

निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिये:
 जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।

निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिये:
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।

पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रुप उदाहरण के अनुसार लिखिए। -
उदाहरण − जिवै - जीना
औरन, माँहि, देख्या, भुवंगम, नेड़ा, आँगणि, साबण, मुवा, पीव, जालौं, तास।

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर भाव स्पष्ट कीजिये:
ऐसी बाणी बोलिये, मन का आपा खोई |
अपना तन सीतल करै, औरन कौ सुख होइ ||


निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये
ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोई |
अपना तन सीतल करै, औरन कौ सुख होइ ||

इस दोहे के कवी का नाम लिखिए


निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये
ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोई |
अपना तन सीतल करै, औरन कौ सुख होइ ||

'मन का आपा खोई' से क्या अभिप्राय हैं


निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये
ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोई |
अपना तन सीतल करै, औरन कौ सुख होइ ||

'अपना तन शीतल' कैसे हो जाता है'