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साखी

Question
CBSEENHN10002353

‘ऐकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होई’− इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?

Solution
इन पंक्तियों द्वारा कवि ने प्रेम की महत्ता को बताया है। ईश्वर को पाने के लिए लोग न जाने कितने यतन-जतन करते हैं पर उन्हें समझना चाहिए कि ईश्वर को पाने के लिए एक अक्षर प्रेम का अर्थात ईश्वर को पढ़ लेना ही पर्याप्त है। बड़े-बड़े पोथे या ग्रन्थ पढ़ कर कोई पंडित नहीं बन जाता। केवल उस निराकार परमात्मा का नाम स्मरण करने से ही सच्चा ज्ञानी बना जा सकता है।

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संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।

अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?

‘ऐकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होई’− इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?

कबीर की उद्धत साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए।

निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिये:
बिरह भुवंगम तन बसै,  मंत्र न लागै कोइ।

निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिये:
कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढै बन माँहि।

निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिये:
 जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।

निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिये:
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।

पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रुप उदाहरण के अनुसार लिखिए। -
उदाहरण − जिवै - जीना
औरन, माँहि, देख्या, भुवंगम, नेड़ा, आँगणि, साबण, मुवा, पीव, जालौं, तास।

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर भाव स्पष्ट कीजिये:
ऐसी बाणी बोलिये, मन का आपा खोई |
अपना तन सीतल करै, औरन कौ सुख होइ ||