भारत और समकालीन विश्व 1 Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास
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    NCERT Solution For Class 9 सामाजिक विज्ञान भारत और समकालीन विश्व 1

    पहनावे का सामाजिक इतिहास Here is the CBSE सामाजिक विज्ञान Chapter 8 for Class 9 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 9 सामाजिक विज्ञान पहनावे का सामाजिक इतिहास Chapter 8 NCERT Solutions for Class 9 सामाजिक विज्ञान पहनावे का सामाजिक इतिहास Chapter 8 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 9 सामाजिक विज्ञान.

    Question 1
    CBSEHHISSH9009541

    अठारहवीं शताब्दी में पोशाक शैलियों और सामग्री में आए बदलावों के क्या कारण थे? 

    Solution

    अठारहवीं शताब्दी में पोशाक शैलियों और सामग्री में आए बदलावों के निम्नलिखित कारण थे:
    (i) यूरोप द्वारा शेष विश्व का उपनिवेशीकरण: 
    यूरोपीय लोगों द्वारा विभिन्न वैज्ञानिक तथा व्यापारिक खोजों के फलस्वरुप विभिन्न नए-नए क्षेत्रों का पता चला जिनसे व्यापार किया जा सकता था। यूरोपीय सरकारों ने इसके लिए व्यापारियों को प्रोत्साहित किया। किंतु, कालांतर में यूरोपीय शक्तियों द्वारा इन क्षेत्रों में अपने उपनिवेश स्थापित कर लिए गए। अब वे यहाँ के संसाधनों का दोहन अपनी इच्छानुसार कर सकते थे। परिणामस्वरुप, वस्त्रों के लिए नई सामग्रियाँ इन क्षेत्रों से यूरोप पहुँचने लगीं तथा पहनावे में भी बदलाव आया। इस कार्य में कपास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसका अधिकाधिक प्रयोग यूरोपीय लोगों द्वारा सस्ते वस्त्रों के निर्माण में किया गया। इसका हल्का, सस्ता तथा रख-रखाव में आसान होना, नए तरह के पहनावे के विकास में सहायक था।
    (ii) नाटकीय विचारों का प्रसार: यूरोपीय समाज अपने जनतांत्रिक अधिकारों के महत्व को समझ चुका था। उन्होंने श्रेष्ठ तथा हीन, कुलीन वर्ग तथा जन सामान्य के बीच अंतर को खत्म करने के लिए संघर्ष किया। इसके साथ ही महिलाओं के मताधिकार की पहचान ने भी पहनावे पर अपना प्रभाव छोड़ा। फ्रांसीसी क्रांति ने ऐसे बहुत से क्लबों को जन्म दिया जहाँ पहनावा कुलीनता विरोध का प्रतीक बन गया। फलत: नए पहनावे लोगों के सामने आए।

    (iii) शिक्षा/महिला पत्रिकाओं का योगदान: यूरोपीय स्कूलों में नए पाठ्यक्रम लागू हुए जिसमें लड़कियों के लिए जिम्नास्टिक जैसे खेलों को भी शामिल किया गया। इसके लिए ऐसे पहनावे की आवश्यकता थी जो शारीरिक गतिविधियों में बाधक ना हों। पारंपरिक वस्त्र तथा उनके दुष्प्रभाव के बारे में जागरूकता आई जिसमें महिला पत्रिकाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। फलत:, 'कॉर्सेट', 'बस्क' तथा 'स्टे' आदि जैसे पारम्परिक वस्त्रों का परित्याग कर दिया गया।

    Question 2
    CBSEHHISSH9009542

    फ्रांस के सम्प्चुअरी कानून क्या थे?

    Solution

    (i) सम्प्चुअरी कानूनों का मकसद था समाज के निचले तबकों के व्यवहार का नियंत्रण। उन्हें खास-खास कपड़े पहनने, खास व्यंजन खाने और खास तरह के पेय(मुख्यत:शराब) पीने और खास इलाकों में शिकार खेलने की मनाही थी।
    (ii) इस तरह मध्यकालीन फ़्रांस में इस साल में कोई कितने कपड़े खरीद सकता है, यह सिर्फ़ उसकी आमदनी पर निर्भर नहीं था बल्कि उसके सामाजिक ओहदे से भी तय होता था। परिधान सामग्री भी कानून- सम्मत होनी थी।
    (iii) सिर्फ़ शाही खानदान की बेशकीमती कपड़े पहन सकता था। एर्माइन, फ़र, रेशम, मखमल या ज़री की पोशाक सिर्फ़ राजा-रजवाड़े ही पहन सकते थे। कुलीनों से जुड़े कपड़ों के जनसाधारण द्वारा इस्तेमाल पर पाबंदी थी।

    Question 3
    CBSEHHISSH9009543

    यूरोपीय पोशाक संहिता और भारतीय पोशाक संहिता के बीच कोई दो फ़र्क बताइए।  

    Solution

    यूरोपीय पोशाक संहिता, भारतीय पोशाक संहिता से कई मायने में भिन्न थी। कुछ प्रमुख भिन्नताएँ नीचे दी गई हैं :-
    पगड़ी/हैट का प्रयोग: सिर पर धारण की जाने वाली यह दो चीज ना केवल देखने में भिन्न थीं, बल्कि उनके मायने भी जुदा-जुदा थे। भारत में पगड़ी, धुप व गर्मी से तो बचाव करती ही थी, सम्मान का प्रतीक भी थी जिसे जब चाहे उतारा नहीं जा सकता था। पश्चिमी रिवाज़ तो यह था कि जिन्हें आदर देना हो, सिर्फ़ उनके सामने हैट उतारा जाए। इस सांस्कृतिक भिन्नता से गलतफ़हमी पैदा हुई। ब्रिटिश अफ़सर जब हिन्दुस्तानियों से मिलते और उन्हें पगड़ी उतारते न पाते तो अपमानित महसूस करते। दूसरी तरफ़ बहुतेरे हिंदुस्तानी अपने क्षेत्रीय और राष्ट्रीय अस्मिता को जताने के लिए जान-बूझकर पड़गी पहनते।

    जूते: इसी तरह का टकराव जूतों को लेकर हुआ। उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में रिवाज था कि फ़िरंगी अफ़सर भारतीय शिष्टाचार का पालन करते हुए देसी राजाओं व नवाबों के दरबार में जूते उतारकर जाएँगे। कुछेक अंग्रेज़ अधिकारी भारतीय वेशभूषा भी धारण करते थे। लेकिन 1830 में, सरकारी समाराहों पर उन्हें हिंदुस्तानी लिबास पहनकर जाने से मना कर दिया गया, ताकि गोरे मालिकों की सांस्कृतिक नाक ऊँची बनी रहे।

    Question 4
    CBSEHHISSH9009544

    उन्नीसवीं सदी के भारत में औरतें परंपरागत कपड़े क्यों पहनती रहीं जबकि पुरुष पश्चिमी कपड़े पहनने लगे थे? इससे समाज में औरतों की स्थिति के बारे में क्या पता चलता हैं?

    Solution

    यह तथ्य सही हैं कि 19वीं सदी में महिलाएं भारतीय पोशाक पहनती रहती थीं जबकि पुरुषों ने पश्चिमी कपड़ों का प्रयोग करना शुरू किया। यह केवल समाज के ऊपरी भाग में हुआ। इसके कुछ कारण निम्न हैं:

    (i) 19वीं सदी में, भारतीय महिला चार दीवारों तक ही सीमित थी क्योंकि पर्दा- प्रणाली प्रचलित थी। उन्हें परंपरागत कपड़े पहनना पड़ता था।

    (ii) समाज में महिलाओं की स्थिति बहुत नाज़ुक थी। उनमें से ज़्यादातर अशिक्षित थी और कभी स्कूल या कॉलेज नहीं गयी थी। इसलिए, उन्हें कपड़े की शैली को बदलने के लिए कोई आवश्यकता नहीं महसूस हुई थी।

    (Iii) दूसरी तरफ, ऊपरी-वर्ग के भारतीय पश्चिमी शिक्षित थे और पश्चिमी शैली-जैसे पश्चिमी कपड़ो का इस्तेमाल करना जैसी सभ्यताओं को अपनाया। उसमे से ज्यादातर लोग व्यवसायी या अधिकारी थे जिन्होंने आराम, आधुनिकता और प्रगति की खातिर ब्रिटिश शैली की पोशाक का अनुकरण किया था।

    (iv) पारसी पश्चिमी शैली के कपड़ो को अपनाने वाले पहले भारतीय थे क्योंकि यह आधुनिकता, उदारवाद और प्रगति का प्रतीक दिखाई पड़ती थी। कुछ लोग दो जोड़ी कपड़ों का इस्तेमाल किया करते थे। वे कार्यालयों में पश्चिमी कपड़े और सामाजिक कार्यों के लिए भारतीय कपड़े का प्रयोग करते थे।

     

    Question 5
    CBSEHHISSH9009545

    विंस्टन चर्चिल ने कहा था कि महात्मा गांधी 'राजद्रोही मिडिल टेम्पल वकील' से ज़्यादा कुछ नहीं हैं और 'अधनंगे फकीर का दिखावा' कर रहे हैं। 

    चर्चिल ने यह वक्तव्य क्यों दिया और इससे महात्मा गांधी की पोशाक की प्रतीकात्मक शक्ति के बारे में क्या पता चलता है?

    Solution

    जब महात्मा गांधी गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने लंदन पहुँचे उस समय उन्होंने खादी का संक्षिप्त वस्त्र पहन रखा था। यह लंदन की मिलों के बने वस्त्र का विरोध प्रकट करने का उनका अपना तरीका था। यह गरीबी तथा भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का भी प्रतीक था। ऐसे ही मौके पर चर्चिल ने गांधीजी को 'अधनंगा फकीर' कहा था।

    इस तरह का पहनावा एक साथ कई बातों की ओर संकेत करता है। पहला ,यह ब्रिटिश शासन द्वारा भारतीयों के शोषण का सूचक है जैसा कि महात्मा गांधी के व्यक्तव्य से भी ज़ाहिर होता है। जब उनसे पूछा गया कि उनके वस्त्र छोटे क्यों है तो उन्होंने कहा - 'जॉर्ज पंचम से मिलने जा रहा हूँ उसके शरीर पर पर्याप्त वस्त्र है जिससे हम दोनों का गुजारा चल सकता है।'

    दूसरा, यह आम भारतीय जनता के साथ एकरूपता तथा समानता का संकेत था जो आम लोगों के स्थिति को प्रदर्शित करता था। तीसरा, यह आत्मनिर्भरता का सूचक था। अतः गांधी के पहनावे का न केवल देश की जनता बल्कि ब्रिटिश सरकार के भविष्य के लिए भी बहुत बड़ा सांकेतिक महत्व था।

    Question 6
    CBSEHHISSH9009546

    समूचे राष्ट्र को खादी पहनाने का गांधीजी का सपना भारतीय जनता के केवल कुछ हिस्सों तक ही सीमित क्यों रहा? 

    Solution

    इसके निम्न कारण थे:
    (i) विविधतापूर्ण समाज:
    भारतीय समाज में विविधताओं से भरा समाज था। जिसमें अलग-अलग जाति, धर्म, वर्ग आदि के पुरुष- महिला रहते थे तथा जिनके रीति-रिवाज तथा पहनावों में व्यापक अंतर था। इतना ही नहीं, अपने पारंपरिक रीति -रिवाज का उन्हें मोह भी था। अत: उन्होंने खादी के पोशाक की उपेक्षा की।
    (ii) भारतीय परंपरा तथा रीति-रिवाज: खासकर उन महिलाओं के लिए परंपरा और रीति-रिवाज रुकावट थे जो पश्चिमी पोशाक का प्रयोग करना चाहती थीं। वे लंबी पारंपरिक साड़ियों से मुक्ति चाहती थी किंतु, परिवार की बुजुर्ग महिलाएं उन्हें ऐसा करने से रोकती थीं। ये सब लोक-लज्जा के नाम पर किया जा रहा था। 
    (iii) पश्चिमी पोशाक का आकर्षण: अधिकतर समृद्ध भारतीय परिवारों ने पश्चिमी पोशाक को अपनाया। उनका मानना था कि पश्चिमी पोशाक आधुनिकता तथा विकास का प्रतीक हैं।
    (iv) खादी की कीमत: खादी के वस्त्र कीमती थे। चाह कर भी सामान्य लोग खादी के वस्त्र नहीं पहन सकते थे। महंगा होने का एक कारण इसका निर्यात की वस्तु होना भी था। इसका व्यापार पूरी तरह ब्रिटिश नियंत्रण में था।
    (v) खादी का उजला होना: खादी का उजाला होना भी उस समय महिलाओं द्वारा इसको अपनाए जाने के मार्ग में बाधक था। यहाँ मृत शरीर को उजले वस्त्र में लपेटा जाता था। इन वस्त्रों का प्रयोग विधवाओं द्वारा किया जाता था।

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