Sponsor Area

NCERT Solutions for Class 12 Help.html Aroh Bhag Ii Chapter 12 जैनेंद्र कुमार

जैनेंद्र कुमार Here is the CBSE Help.html Chapter 12 for Class 12 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 12 Help.html जैनेंद्र कुमार Chapter 12 NCERT Solutions for Class 12 Help.html जैनेंद्र कुमार Chapter 12 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2025-26. You can save these solutions to your computer or use the Class 12 Help.html.

Question 1
CBSEENHN12026495

जैनेंद्र कुमार के जीवन एवं साहित्य का परिचय देते हुए उनकी विशेषताओं एवं भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।

Solution

जीवन-परिचय: प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार जैनेंद्र कुमार का जन्म 1905 ई. में अलीगढ़ जिले के कौड़ियागंज नामक कस्बे में हुआ था। उन्होंने मैट्रिक तक की शिक्षा हस्तिनापुर के जैन गुरुकुल में प्राप्त की। इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। गाँधी जी के आह्वान पर 1921 ई. में अध्ययन बीच में ही छोड्कर असहयोग आदोलन में शामिल हो गये। वे गाँधी जी के जीवन-दर्शन से अत्यधिक प्रभावित थे और उनकी झलक उनकी रचनाओं में भी पाई जाती है। आजीविका के लिए उन्होंने स्वतंत्र लेखन को अपनाया। उन्होंने अनेक राजनीतिक पत्रिकाओं का सपादन किया जिसके कारण उन्हें जेल-यात्रा भी करनी पड़ी। उनकी साहित्यिक सेवाओं को ध्यान में रखकर 1970 ई. मे उन्हें ‘पद्यभूषण’ से सम्मानित किया गया। दिल्ली विश्वविद्यालय ने 1973 ई. में उन्हें डी. लिट की मानद उपाधि प्रदान की। उनकी साहित्यिक सेवाओ के लिए उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने 1984 ई. में उन्हें ‘भारत-भारती’ पुरस्कार से सम्मानित किया। 1989 ई० में उनका देहांत हो गया।

रचनाएँ: जैनेंद्र जी हिंदी साहित्य में अपने कथा-साहित्य के कारण प्रसिद्ध हैं। उनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं

उपन्यास: ‘सुनीता’ ‘परख’ ‘कल्याणी’ ‘त्यागपत्र’ ‘जयवर्धन’ ‘आदि।

कहानी-संग्रह: ‘एक रात’ ‘वातायन ‘दो चिड़ियाँ, ‘नीलम देश की राजकन्या’ आदि।

निबंध-संग्रह: ‘प्रस्तुत प्रश्न’, ‘जैनेंद्र के विचार’ ‘संस्मरण’ ‘समय और हम’ ‘इतस्तत:’ ‘आदि।

साहित्यिक विशेषताएँ: जैनेंद्र जी ने अपनी रचनाओं में जीवन की विविध समस्याओं को उभारा है। उनके विचारों और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण में मौलिकता के दर्शन होते हैं। गाँधीवादी जीवन-दर्शन की छाप भी उनकी रचनाओं में सहज ही देखी जा सकती है। वे प्रत्येक बात, विचार, भाव और स्थिति का सूक्ष्म विश्लेषण करते हैं। वे स्थिति का मूल्यांकन मानव-हित को ध्यान में रखकर करते हैं।

भाषा-शैली: जैनेंद्र जी अपनी सहज सरल एवं निष्कपट भाषा के लिए प्रसिद्ध है। वे नए शब्द गढ़ने में भी कुशल हैं। जैसे-असुधार्य आशाशील आदि।

लेखक के दिमाग में जैसा वाक्य आता है उसे वह वैसा ही प्रयोग कर देता है जैसे- “पर सबको संतुष्ट कर पाऊँ ऐसा मुझसे नहीं बनता।” जैनेंद्र जी तत्सम शब्दों के साथ तद्भव और उर्दू के शब्दों का सहज प्रयोग कर जाते हैं। जैसे-

तत्सम शब्द: परिमित, आमंत्रण आग्रह आदि।

तद्भव शब्द: धीरज।

उर्दू शब्द: फिजूल हरज दरकार आदि।

अंग्रेजी शब्द: पावर, पर्चेजिंग पावर मनी बैग।

जैनेंद्र जी संवादों का प्रयोग करके अपनी भाषा-शैली को रोचक बना देते हैं। वे अनेक स्थलों पर वक्रोक्ति का प्रयोग कर जाते हैं। उनके निबंध विचारोत्तेजक और मर्मस्पर्शी बन पड़े हैं।

Question 2
CBSEENHN12026497

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर उत्तर दीजिये- 
पैसा पावर है पर उसके सबूत में आस-पास माल-टाल न जमा हो तो क्या वह खाक पावर है! पैसे को देखने के लिए बैंक-हिसाब देखिए, पर माल-असबाब मकान-कोठी तो अनदेखे भी दीखते हैं। पैसे की उस ‘पर्चेजिग पावर’ के प्रयोग में ही पावर का रस है।
लेकिन नहीं। लोग संयमी भी होते हैं। वे फिजूल सामान को फिजूल समझते हैं। वे पैसा बहाते नहीं हैं और बुद्धिमान होते हैं। बुद्धि और संयमपूर्वक वह पैसे को जोड़ते जाते हैं, जोड़ते जाते हैं। वह पैसे की पावर को इतना निश्चय समझते हैं कि उसके प्रयोग की परीक्षा उन्हें दरकार नहीं है। बस खुद पैसे के जुड़ा होने पर उनका मन गर्व से भरा फूला रहता है।
1. पैसा को क्या बताया गया है और क्यों?
2. इस पावर का रस किसमें है?
3. कुछ लोग किस प्रकार के होते हैं? वे क्या समझते हैं?
4. वे लोग क्या करते हैं  ‘इससे उन्हैं क्या अनुभव होता' है?





Easy
Question 3
CBSEENHN12026498

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
उनका आशय था कि यह पत्नी की महिमा है। उसकी महिमा का मैं कायल हूँ। आदिकाल से इस विषय में पति से पत्नी की ही प्रमुखता प्रमाणित है और यह व्यक्तित्व का प्रश्न नहीं, स्त्रीत्व का प्रश्न है। स्त्री माया न जोड़े, तो क्या मैं जोड़े? फिर भी सच-सच है और वह यह कि इस बात में पत्नी की ओट ली जाती है। मूल में एक और तत्त्व की महिमा सविशेष है। वह तत्त्व है मनीबेग, अर्थात् पैसे की गरमी या एनर्जी।

पैसा पावर है। पर उसके सबूत में आस-पास माल-टाल न जमा हो तो क्या वह खाक पावर है! पैसे को देखने के लिए बैंक-हिसाब देखिए, पर माल-असबाब मकान-कोठी तो अनदेखे भी दीखते हैं। पैसे की उस ‘पर्चेजिंग पावर’ के प्रयोग में ही पावर का रस है।

1. पाठ तथा लेखक का नाम बताइए।
2. लंबक किसकी महिमा का कायल है?
3. मनीबेग से क्या तात्पर्य है?
4. पैसे के बारे में लेखक क्या कहता है?


Easy
Question 4
CBSEENHN12026499

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
मैंने मन में कहा, ठीक। बाजार आमंत्रित करता है कि आओ मुझे लूटो और लूटो। सब भूल जाओ, मुझे देखो। मेरा रूप और किसके लिए हे? मैं तुम्हारे लिए हूँ। नहीं कुछ चाहते हो, तो भी देखने में क्या हरज है। अजी आओ भी। इस आमंत्रण में खूबी है कि आग्रह नहीं है। आग्रह तिरस्कार जगाता है, लेकिन ऊँचे बाजार का आमंत्रण मूक होता है और उससे चाह जगती है। चाह मतलब अभाव। चौक बाजार में खड़े होकर आदमी को लगने लगता है कि उसके अपने पास काफी नहीं है और चाहिए, और चाहिए। मेरे यहाँ कितना परिमित है और यहाँ कितना अतुलित है ओह!

कोई अपने को न जाने तो बाजार का यह चौक उसे कामना से विकल बना छोड़े। विकल क्यों, पागल। असंतोष, तृष्णा और ईर्ष्या से घायल कर मनुष्य को सदा के लिए यह बेकार बना डाल सकता है।

1. लेखक ने मित्र की बात सुनकर मन में क्या सोचा?
2. बाजार का आमंत्रण कैसा होता है?
3. बाजार में खड़े होकर आदमी को क्या लगता है?
4. अपने काे न जानने पर बाजार हम पर क्या प्रभाव डालता है?




Easy
Question 5
CBSEENHN12026500

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
मैंने मन में कहा, ठीक। बाजार आमंत्रित करता है कि आओ मुझे लूटो और लूटो। सब भूल जाओ, मुझे देखो। मेरा रूप और किसके लिए हे? मैं तुम्हारे लिए हूँ। नहीं कुछ चाहते हो, तो भी देखने में क्या हरज है। अजी आओ भी। इस आमंत्रण में खूबी है कि आग्रह नहीं है। आग्रह तिरस्कार जगाता है, लेकिन ऊँचे बाजार का आमंत्रण मूक होता है और उससे चाह जगती है। चाह मतलब अभाव। चौक बाजार में खड़े होकर आदमी को लगने लगता है कि उसके अपने पास काफी नहीं है और चाहिए, और चाहिए। मेरे यहाँ कितना परिमित है और यहाँ कितना अतुलित है ओह!

कोई अपने को न जाने तो बाजार का यह चौक उसे कामना से विकल बना छोड़े। विकल क्यों, पागल। असंतोष, तृष्णा और ईर्ष्या से घायल कर मनुष्य को सदा के लिए यह बेकार बना डाल सकता है।

1. बाजार के आमंत्रण स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
2. बाजार के आमंत्रण की क्या विशेषता होती है?
3. ऊँचे बाजार के आमंत्रण को मूक क्यों कहा गया है?
4. इस प्रकार के आमंत्रण किस प्रकार की चाह जगती है? उस चाह में आदमी क्या महसूस करने लगता है?



Easy
Question 6
CBSEENHN12026501

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
बाजार में एक जादू है। वह जादू आँख की राह काम करता है। वह रूप का जादू है पर जैसे चुम्बक का जादू लोहे पर ही चलता है, वैसे ही इस जादू की भी मर्यादा है। जेब भरी हो, और मन खाली हो, ऐसी हालत में जादू का असर खूब होता है। जेब खाली, पर मन भरा न हो, तो भी जादू चल जाएगा। मन खाली है तो बाजार की अनेकानेक चीजों का निमंत्रण उसके पास पहुँच जाएगा। कहीं हुई उस वक्त जेब भरी तब तो फिर वह मन किसकी मानने वाला है। मालूम होता है यह भी लूँ, वह भी लूँ। सभी सामान जरूरी और आराम बढ़ाने वाला मालूम होता है। पर यह सब जादू का असर है। जादू की सवारी उतरी कि पता चलता है कि फंसी चीजों की बहुतायत आराम में मदद नहीं देती, बल्कि खलल ही डालती है।

1. बाजा़र के जादू को रूप का जादू क्यों कहा गया है?
2. बाजा़र के जादू की मर्यादा स्पष्ट कीजिए।
3. बाजा़र का जादू किस प्रकार के लोगों को लुभाता है?
4. इस जादू के बंधन से बचने का क्या उपाय हो सकता है?
5. ‘जेब भरी हो और मन खाली हो’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
6. बाजा़र का जादू किस तरह के व्यक्तियों पर अधिक असर करता है?



Easy
Question 7
CBSEENHN12026502

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
बाजार में एक जादू है। वह जादू आँख की राह काम करता है। वह रूप का जादू है पर जैसे चुम्बक का जादू लोहे पर ही चलता है, वैसे ही इस जादू की भी मर्यादा है। जेब भरी हो, और मन खाली हो, ऐसी हालत में जादू का असर खूब होता है। जेब खाली, पर मन भरा न हो, तो भी जादू चल जाएगा। मन खाली है तो बाजार की अनेकानेक चीजों का निमंत्रण उसके पास पहुँच जाएगा। कहीं हुई उस वक्त जेब भरी तब तो फिर वह मन किसकी मानने वाला है। मालूम होता है यह भी लूँ, वह भी लूँ। सभी सामान जरूरी और आराम बढ़ाने वाला मालूम होता है। पर यह सब जादू का असर है। जादू की सवारी उतरी कि पता चलता है कि फंसी चीजों की बहुतायत आराम में मदद नहीं देती, बल्कि खलल ही डालती है।

1. लेखक ने क्यों कहा कि बाजार में एक जादू है?
2. ‘मन खाली होने’ से क्या अभिप्राय है? यह खाली मन बाजारवाद को कैसे सेवा देता है?
3. आज का उपभोक्ता जेब खाली होने पर भी खरीदारी करता है यह समाज की किस प्रवृत्ति की ओर संकेत करता है? आप ऐसा क्यों मानते हैं?





Easy
Question 8
CBSEENHN12026503

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
मित्र बाजार गए तो थे कोई एक मामूली चीज लेने पर लौटे तो एकदम बहुत-से बंडल पास थे। मैंने कहा-यह क्या? बोले-यह जो साथ थीं। उनका आशय था कि यह पत्नी की महिमा है। उस महिका का मैं कायलन हूँ। आदिकाल से इस विषय में पति से पत्नी की ही प्रमुखता प्रमाणित है। और यह व्यक्तित्व का प्रश्न नहीं, स्त्रीत्व का प्रश्न है। स्त्री आया न जोड़े, तो क्या मैं जोड़े? फिर भी सच है और वह यह कि इस बात में पत्नी की ओट ली जाती है। मूल में एक और तत्त्व की महिमा सविशेष है। वह तत्त्व है मनीबैग, अर्थात् पैसे की गरमी या एनर्जी।

1. ‘यह जो साथ थीं’-कथन में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
2.  पत्नी पति से किस विषय में प्रमुख मानी जाती है? इस प्रमुखता का क्या कारण है?
3. ‘स्त्री माया न जोड़े .....’ वाक्यांश का आशय समझाइए।
4. ‘पैसे की गरमी या एनर्जी’ की बात किस संदर्भ में कही गई है और क्यों?



Easy
Question 9
CBSEENHN12026504

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
एक राजनीतिज्ञ पुरुष का बहुत बड़ी जनसंख्या से पाला पड़ता है। अपनी जनता से व्यवहार करते समय, राजनीतिज्ञ के पास न तो इतना समय होता है न प्रत्येक के विषय में इतनी जानकारी ही होती है, जिससे वह सबकी अलग-अलग आवश्यकताओं और क्षमताओं के आधार पर वांछित व्यवहार अलग-अलग कर सके। वैसे भी आवश्यकताओं और क्षमताओं के आधार पर भिन्न व्यवहार कितना भी आवश्यक तथा औचित्यपूर्ण क्यों न हो, ‘मानवता’ के द्दष्टिकोण से समाज को दो वर्गों या श्रेणियों में नहीं थबाँटाजा सकता। ऐसी स्थिति में, राजनीतिज्ञ को अपने व्यवहार में एक व्यवहार्य सिद्धांत की आवश्यकता रहती है और यह व्यवहार्य सिद्धांत यही होता है कि सब मनुष्यों के साथ समान व्यवहार किया जाए।

1. राजनीतिज्ञ को व्यवहार्य सिद्धांत की आवश्यकता क्यों रहती है? यह सिद्धांत क्या हो सकता है?
2. राजनीतिज्ञ की विवशता क्या होती है?
3. भिन्न व्यवहार मानवता की दृष्टि से उपयुक्त क्यों नहीं होता है?
4. समाज के दो वर्गों से क्या तात्पर्य है? वर्गानुसार भिन्न व्यवहार औचित्यपूर्ण क्या नहीं होता?



Easy
Question 10
CBSEENHN12026505

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
पैसे की व्यंग्य-शक्ति की सुनिए। वह दारुण है। मैं पैदल चल रहा हूँ कि पास ही धूल उड़ाती निकल गई मोटर। वह क्या निकली मेरे कलेजे को कौंधती एक कठिन व्यंग्य की लीक ही आर-से-पार हो गई। जैसे किसी ने आँखों में उँगली देकर दिखा दिया हो कि देखो, उसका नाम है मोटर, और तुम उससे वंचित हो! यह मुझे अपनी ऐसा विडंबना मालूम होती है कि बस पूछिए नहीं। मैं सोचने को हो आता हूँ कि हाय, ये ही माँ-बाप रह गए थे जिनके यहाँ मैं जन्म लेने को था! क्यों न मैं मोटरवालों के यहाँ हुआ। उस व्यंग्य में इतनी शक्ति है कि जरा में मुझे अपने सगों के प्रति कृतघ्न कर सकती है। लेकिन क्या लोक वैभव की यह व्यंग्य-शक्ति उस चूरन वाले अकिंचित्कर मनुष्य के आगे चूर-चूर होकर ही नहीं रह जाती? चूर-चूर क्यों, कहो पानी-पानी।
तो वह क्या बल है जो इस तीखे व्यंग्य के आगे ही अजेय ही नहीं रहता, बल्कि मानो उस व्यंग्य की कुरता को ही पिघला देता है?

1. पैसे की व्यंग्य-शक्ति बताने के लिए क्या उदाहरण दिया गया है?
2. लेखक को क्या विडंबना मालूम होती है?
3. इस व्यंग्य-शक्ति का चूरन वाले के सामने क्या हाल होता है?
4. लेखक किस बल की बात कर रहा है?


Easy

Sponsor Area