Aroh Chapter 14 सुमित्रानंदन पंत
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    NCERT Solution For Class 11 Hindi Aroh

    सुमित्रानंदन पंत Here is the CBSE Hindi Chapter 14 for Class 11 students. Summary and detailed explanation of the lesson, including the definitions of difficult words. All of the exercises and questions and answers from the lesson's back end have been completed. NCERT Solutions for Class 11 Hindi सुमित्रानंदन पंत Chapter 14 NCERT Solutions for Class 11 Hindi सुमित्रानंदन पंत Chapter 14 The following is a summary in Hindi and English for the academic year 2021-2022. You can save these solutions to your computer or use the Class 11 Hindi.

    Question 1
    CBSEENHN11012247

    सुमित्रानंदन पंत के जीवन एवं साहित्य पर प्रकाश डालते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

    Solution

    जीवन-परिचय-पंत जी का जन्म सन् 1900 में अल्मोड़ा जिले के कौसानी गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम पं. गंगादत्त पंत तथा माता का नाम सरस्वती देवी था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में हुई। नवीं कक्षा तक गवर्नमेंट हाई स्कूल अल्मोड़ा में तथा हाई स्कूल तक जय नारायण हाई स्कूल काशी में अध्ययन किया। इण्टर में पड़ने के लिए ये इलाहाबाद आ गए। म्योर कालेज इलाहाबाद में इण्टर तक अध्ययन किया, परन्तु परीक्षा पास न कर सके। 1922 ई. में पढ़ना बंद हो जाने पर ये घर लौट गए। स्वतंत्र रूप से बंगाली, अंग्रेजी तथा संस्कृत साहित्य का अध्ययन किया।

    प्रकृति की गोद, पर्वतीय सुरम्य वन स्थली में पले डुए पंत जी को बचपन से ही प्रकृति से अगाध अनुराग था। विद्यार्थी जीवन में ही ये सुन्दर रचनाएँ करते थे। संत साहित्य और रवीन्द्र साहित्य का इन पर बड़ा प्रभाव था। पंत जी का प्रारंभिक काव्य इन्हीं साहित्यिकों से प्रभावित था। पंत जी 1938 ई. में कालाकाँकर से प्रकाशित ‘रूपाभ’ नामक पत्र के संपादक रहे। आप आकाशवाणी केन्द्र प्रयाग में हिन्दी विभाग के अधिकारी भी रहे। पंत जी जीवन- भर अविवाहित रहे। हिन्दी साहित्य का दुर्भाग्य है कि सरस्वती का वरदपुत्र 28 दिसंबर, 1977 की मध्यरात्रि में इस मृत्युलोक को छोड्कर स्वर्गवासी हो गया।

    रचनाएँ-वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, युगवाणी, उत्तरा, ग्राम्या, स्वर्ण किरण, स्वर्ण धूलि आदि पंत जी के काव्य ग्रन्थ हैं। इन्होंने जयोत्स्ना नामक एक नाटक भी लिखा है। कुछ कहानियाँ भी लिखी हैं। इस प्रकार पद्य और गद्य क्षेत्रों में पंत जी ने साहित्य सेवा की है, परन्तु इनका प्रमुख रूप कवि का ही है।

    साहित्यिक विशेषताएँ-प्राकृतिक सौंदर्य के साथ ही पंत जी मानव सौंदर्य के भी कुशल चितेरे हैं। छायावादी दौर के उनके काव्य में रोमानी दृष्टि से मानवीय सौंदर्य का चित्रण है, तो प्रगतिवादी दौर मैं ग्रामीण जीवन के मानवीय सौंदर्य का यथार्थवादी चित्रण। कल्पनाशीलता के साथ-साथ रहस्यानुभूति और मानवतावादी दृष्टि उनके काव्य की मुखर विशेषताएँ हैं। युग परिवर्तन के साथ पंत जी की काव्य-चेतना बदलती रही है। पहले दौर में वे प्रकृति सौंदर्य से अभिभूत छायावादी कवि हैं, तो दूसरे दौर में मानव -सौंदर्य की ओर आकर्षित और समाजवादी आदर्शों से प्रेरित कवि। तीसरे दौर की उनकी कविता में नई कविता की कुछ प्रवृत्तियों के दर्शन होते हैं, तो अंतिम दौर में वे अरविंद दर्शन से प्रभावित कवि के रूप में सामने आते हैं।

    काव्यगत विशेषताएँ: भाव पक्ष-

    प्रकृति-प्रेम

    “छोड़ दुमों की मृदु छाया, तोड़ प्रकृति से भी माया।
    बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन।
    भूल अभी से इस जग को।”

    उपर्युक्त पक्तियाँ यह समझने के लिए काफी हैं कि पंत जी को प्रकृति सै कितना प्यार था। पंत जी को प्रकृति का सुकुमार कवि, कहा जाता है। यद्यपि पंत जी का प्रकृति-चित्रण अंग्रेजी कविताओं से प्रभावित है। फिर भी उनमें कल्पना की ऊँची उड़ान है, गति और कोमलता है, प्रकृति का सौंदर्य साकार हो उठता है। प्रकृति मानव के साथ मिलकर एकरूपता प्राप्त कर लेती है और कवि कह उठता है-

    “सिखा दो ना हे मधुप कुमारि, मुझे भी अपने मीठे गान।”

    प्रकृति प्रेम के पश्चात् कवि ने लौकिक प्रेम के भावात्मक जगत् में प्रवेश किया। पंत जी ने यौवन के सौंदर्य तथा संयोग और वियोग की अनुभूतियों की बड़ी मार्मिक व्यंजना की है। इसके पश्चात् कवि छायावाद एवं रहस्यवाद की ओर प्रवृत्त हुआ और कह उठा- “न जाने नक्षत्रों से कौन, निमन्त्रण देता मुझको मौन।”

    आध्यात्मिक रचनाओं में पंत जी विचारक और कवि दोनों ही रूपों में आते हैं। इसके पश्चात् पंत जी जन-जीवन की सामान्य भूमि पर प्रगतिवाद की ओर अग्रसर हुए। मानव की दुर्दशा का देखकर कवि कह उठा-

    “शव को दें हम रूप-रंग आदर मानव का
    मानव को हम कुत्सित चित्र बनाते लव का।।”
    x x x x
    “मानव! ऐसी भी विरक्ति क्या जीवन के प्रति।
    आत्मा का अपमान और छाया से रति।”

    गाँधीवाद और मार्क्सवाद से प्रभावित होकर पंत जी ने काव्य-रंचना की है। सामाजिक वैषम्य के प्रति विद्रोह का एक उदाहरण देखिए

    “जाति-पाँति की कड़ियाँ टूटे, मोह, द्रोह, मत्सर छूटे,
    जीवन के वन निर्झर फूटे वैभव बने पराभव।”

    कला-पक्ष

    भाषा-पंत जी की भाषा संस्कृत- प्रधान, शुद्ध परिष्कृत खड़ी बोली है। शब्द चयन उत्कृष्ट है। फारसी तथा ब्रज भाषा के कोमल शब्दों को ही इन्होंने ग्रहण किया है। पंत जी का प्रत्येक शब्द नादमय है, चित्रमय है। चित्र योजना और नाद संगति की व्यंजना करने वाली कविता का एक चित्र प्रस्तुत है-

    “उड़ गया, अचानक लो भूधर!
    फड़का अपार वारिद के पर!
    रव शेष रह गए हैं निर्झर!
    है टूट पड़ा भू पर अम्बर!”

    उनकी कविताओं में काव्य, चित्र और संगीत एक साथ मिल जाते हैं-

    “सरकाती पट
    खिसकाती पट-
    शरमाती झट

    वह नमित दृष्टि से देख उरोजों के युग घट?”

    बिम्ब योजना-बिम्ब कवि के मानस चित्रों को कहा जाता है। कवि बिम्बों के माध्यम से स्मृति को जगाकर तीव्र संवेदना को और बढ़ाते हैं। ये भावों को मूर्त एवं जीवंत बनाते हैं। पंत जी’ के काव्य में बिम्ब योजना विस्तृत रूप में उपलब्ध होती है।

    स्पर्श बिम्ब: इसमें कवि के शब्द प्रयोग से छूने का सुख मिलता है-

    “फैली खेतों में दूर तलक
    मखमल सी कोमल हरियाली।”

    दृश्य बिम्ब: इसे पढ़ने पर एक चित्र आँखों के सामने आ जाता है-.

    “मेखलाकार पर्वत अपार
    अपने सहस्त्र दृग सुमन फाड़
    अवलोक रहा है बार-बार
    नीचे के जल में महाकार।”

    शैली, रस, छंद, अलंकार: इनकी शैली ‘गीतात्मक मुक्त शैली’ है। इनकी शैली अंग्रेजी व बँगला शैलियों से प्रभावित है। इनकी शैली में मौलिकता है और वह स्वतंत्र है।

    पंत जी के काव्य में कार एवं करुण रस का प्राधान्य है। संगार के संयोग और वियोग दोनों पक्षों का सुंदर चित्रण हुआ है। छंद के क्षेत्र में पंत जी ने पूर्ण स्वच्छंदता से काम लिया है। उनकी ‘परिवर्तन’ कविता में ‘रोला’ छंद है-

    ‘लक्ष अलक्षित चरण तुम्हारे।,’

    तो वहाँ मुक्त छंद भी मिलता है। ‘ग्रन्थि’, ‘राधिका’ में छंद सजीव हो उठा है-

    “इन्दु पर, उस इन्दु मुख पर, साथ ही।”

    पंत जी ने अनेक नवीन छंदों की उद्भावना भी की है। लय और संगीतात्मकता इन छंदों की विशेषता है।

    अलंकारों में उपमा, रूपक, श्लेष, उत्प्रेक्षा, अतिश्योक्ति आदि अलंकारों का प्रयोग है। अनुप्रास की शोभा तो स्थान-स्थान पर दर्शनीय है। शब्दालंकारों में भी लय को ध्यान में रखा गया है। शब्दों में संगीत लहरी सुनाई देती है-

    “लो छन, छन, धन, तन
    छन-छन, छन, छन
    थिरक गुजरिया हरती मन।”

    सादृश्य-मूलक अलंकारों में पंत जी को उपमा और रूपक अलंकार प्रिय हैं। उन्होंने मानवीकरण और विशेषण विपर्यय जैसे विदेशी अलंकारों का भी भरपूर प्रयोग किया है।

    Question 2
    CBSEENHN11012248

    वे आँखें
    अंधकार की गुहा सरीखी
    उन आखों से डरता है मन
    भरा दूर तक उनमें दारुण
    दैन्य दुःख का नीरव रोदन!
    वह स्वाधीन किसान रहा
    अभिमान भरा आखों में इसका
    छोड़ उसे मँझधार आज
    संसार कगार सदृश बह खिसका!

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रसिद्ध कवि सुमित्रानदंन पतं द्वारा रचित कविता ‘वे आँखें’ से अवतरित हैं। यह उनकी प्रगतिवादी दौर की कविता है। इसमें कवि स्वतत्र भारत में भी किसानों की दुर्दशा को देखकर आहत होता है। वह उनकी दशा का यथार्थ अकन करते हुए कहता है-

    व्याख्या- भारत स्वाधीन तो हो गया पर किसानों की दशा में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया। उनकी दुख दीनता से परिपूर्ण आँखों की ओर देखने से भी मन भयभीत होता है। किसान की आँखें अंधकार से भरी गुफा के समान हैं अर्थात् उनमें प्रकाश की कोई किरण नजर नहीं आती। उनमें अत्यधिक वेदना, दीनता और दुख-पीड़ा का शांत रोदन भरा हुआ है। किसानों के मन की पीड़ा उनकी आँखों में झलकती है। यह पीड़ा इतनी अधिक है कि उनकी आँखों की ओर देखने का साहस तक नहीं होता।

    आज देश स्वतंत्र है। किसान भी स्वाधीन हो गया। इस बात का गर्व उसकी आँखों में भी झलकता है। लेकिन दुख की बात तो यह है कि यह स्वाधीनता उसकी दशा में परिवर्तन नहीं ला पाई। किसान को दुखों के मध्य छोडकर संसार के अन्य लोग किनारे की ओर खिसक गए अर्थात् शासक वर्ग ने किसानों को बीच मझधार में अकेला छोड़ दिया और स्वयं उससे कन्नी काट गए। इन किसानों को स्वाधीन होने का कोई लाभ नहीं मिल पाया।

    विशेष- 1. किसानों की दुर्दशा का मार्मिक चित्रण किया गया है।

    2. ‘आँखों को अंधकार की गुहा सरीखी’ बताने में उपमा अलंकार का प्रयोग है।

    3. ‘दारुण दैन्य दुख’ में द’ वर्ण की आवृत्ति है, अत: अनुप्रास अलंकार है।

    4. खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।

    Question 3
    CBSEENHN11012249


    लहराते वे खेत दुर्गों में
    हुआ बेदखल वह अब जिनसे,
    हँसती थी उसके जीवन की
    हरियाली जिनके दतृन-तृनसे!
    आँखों ही में घूमा करता
    ‘वह उसकी आँखों का तारा,
    कारकुनों की लाठी से जो
    गया जवानी ही में मारा!

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत काव्याशं प्रगतिवादी कवि सुमित्रानंदन पपंतद्वारा रचित कविता ‘वे अस्त्र,’ से अवतरित है। कवि स्वाधीन भारत में भी किसानों की दुर्दशा का मार्मिक अकन करते हुए बताता है-

    व्याख्या-कभी किसानों के ये खेत भरपूर फसल से लहलहाते थे। तब ये खेत उसके अपने थे। अब उसे इन खेतों से बेदखल कर दिया गया है। अर्थात् उसे इन खेतों की हिस्सेदारी से अलग कर दिया गया है। इन खेतों में फैली हरियाली के एक-एक तिनके में इन किसानों के जीवन की हँसी झलकती थी। ये खेत ही उसके जीवन की खुशहाली के आधार थे। आज उन्हें इस खुशहाली से वंचित कर दिया गया है।

    जमींदार के कारकुनों ने लाठी मार-मारकर इस किसान के प्यारे बेटे को मार दिया था। वह किसान अभी भी उसकी याद में रोता रहता है। इसकी आँखों में अपना प्यारा बेटा घूमता रहता है अर्थात् इसकी आँखों में उस प्यारे बेटे की छवि बार-बार तैरती रहती है। यह किसान उसे आज तक भुला नहीं पाया है।

    कवि उस घटना का मार्मिक चित्रण करता है जिसमें किसान को उसके खेत से बेदखल किया गया था तथा विरोध करने पर उसके बेटे की नृशंस हत्या कर दी गई थी। यह सारा काम जमींदार के कारिंदों ने किया था।

    विशेष- 1. किसान की दारुण दशा को बताने में मार्मिकता का समावेश हुआ है।

    2. ‘आखों का तारा’ मुहावरे का सटीक प्रयोग हुआ है।

    3. ‘तृन-तृन’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

    4. ‘स्मृति बिंब’ का प्रयोग है।

    5. खड़ी बोली अपनाई गई है।

    Question 4
    CBSEENHN11012250

    बिका दिया घर द्वार
    महाजन ने न ब्याज की कौड़ी छोड़ी,
    रह-रह आखों में चुभती वह
    कुर्क हुई बरधों की जोड़ी!
    उजरी उसके सिवा किसे कब
    पास दुहाने आने देती?
    अह, आँखों में नाचा करती
    उजड़ गई जो सुख की खेती!

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित कविता ‘वे आँखें’ से अवतरित हैं। यह उनके प्रगतिवादी दौर की कविता है। इसमें कवि किसान की दुर्दशा का मार्मिक चित्रण करता है।

    व्याख्या-स्वाधीन भारत में भी किसान की दुर्दशा में कोई सुधार नहीं हो पाया। वह महाजन के कर्ज के बोझ तले दबा ही रहा। उस महाजन ने अपना पूरा ब्याज तथा मूल पाने के लिए किसान का घर-द्वार तक बिकवा दिया। खेतों से वह पहले ही बेदखल हो चुका था। अब तो उसके बैलों की जोड़ी भी कुर्क हो गई। बैलों की वह जोड़ी उसे बहुत प्रिय थी। रह-रहकर वह उसकी आँखों में चुभ जाती थी।

    उसके पास एक सफेद गाय भी थी जिसे वह उजरी कहा करता था। उसका दूध वह स्वयं निकाला करता था। वह गाय किसो अन्य को अपना दूध नहीं निकालने देती थी। वह किसी को अपने पास फटकने तक नहीं देती थी। वह भी बिककर चली गई। किसान का सब कुछ बिक गया। जमींदार और महाजन ने उसे कहीं का न छोड़ा। उसके सुख की खेती उजड़ गई। वह सारी स्थिति अभी भी उसकी आँखों में नाचती रहती है अर्थात् अभी भी उसकी सुखद स्मृति बनी हुई है। अब वह सारा सुख जाता रहा है।

    विशेष- 1. जमींदार और महाजनों के अत्याचारों का यथार्थ अंकन हुआ है।

    2. ‘रह -रह’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

    3. ‘सुख की खेती उजड़ना, लाक्षणिक प्रयोग है।

    4. ‘किसे कब’ में अनुप्रास अलंकार है।

    5. सीधी-सरल भाषा का प्रयोग किया गया है।

    Question 5
    CBSEENHN11012251

    बिना दवा दर्पन के धरनी
    स्वरग चली-आँखें आतीं भर,
    देख-रेख के बिना दुध मुँही
    बिटिया दो दिन बाद गई मर!
    घर में विधवा रही पतोहू
    लछमी थी, यद्यपि पति घातिन,
    पकड़ मंगाया कोतवाल ने,
    डूब कुएँ में मरी एक दिन!

    Solution

    प्रसंग- प्रणत काव्याशं प्रसिद्ध प्रगतिवादी कवि मुमित्रानदंन पन द्वारा रचित कविता ‘वे आँखें’ से अवतरित है। कवि किसानों की दुर्दशा का मार्मिक अकन करते हुए कहता है-

    व्याख्या-किसान की पत्नी बिना दवा के स्वर्ग चली गई अर्थात् वह धनाभाव के कारण उसका इलाज तक नहीं करवा पाया और वह इसके अभाव में मर गई। इस दशा को याद करके अभी भी उसकी आँखें भर आती हैं। उसके मरने के बाद बेटी की देखभाल के लिए भी कोई न रहा। अत: वह दुधमुंही बालिका भी दो दिन पश्चात् मर गई।

    अब घर में केवल पुत्रवधू रह गई। वह भी विधवा थी। वह लक्ष्मी के समान थी, पर उस पर पति की हत्या का इलाम था। कोतवाल ने अपने सिपाही भेजकर उसे पकड़कर मँगा लिया। वह शर्म के कारण एक दिन कुएँ में डूब मरी। इस प्रकार किसान का पूरा परिवार बर्बाद हो गया। इसके दुखों का कोई अंत नहीं है।

    विशेष- 1 किसान के जीवन में घट रही दुर्घटनाओं का विवरण प्रस्तुत किया गया है।

    2. ‘दवा दर्पन’ में अनुप्रास अलंकार है।

    3. ‘कुएँ में डूब मरना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग है।

    4. मार्मिकता का समावेश हुआ है।

    5. सरल एवं सुबोध भाषा का प्रयोग किया गया है।

    Question 6
    CBSEENHN11012252

    खैर, पैर की जूती, जोरू
    न सही एक, दूसरी आती
    पर जवान लड़के की सुध कर
    साँप लौटते, फटती छाती।
    पिछले सुख की स्मृति आँखों में
    क्षण भर एक चमक है लाती,
    तुरत शून्य में गगड़वह चितवन
    तीखी नोक सदृश बन जाती।

    Solution

    प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रगतिवादी कवि सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित कविता ‘वे आँखें’ से उद्धृत हैं। इसमें कवि किसान की दुर्दशा का मार्मिक चित्रण करता है।

    सव्याख्या-कवि कहता हैं कि सामान्य रूप से पत्नी को पैर की जूती माना जाता है (जो कि असत्य है)। कहा जात रहा है कि एक कै न रहने पर दूसरी आ जाती है। किसान अपनी पत्नी के अभाव के दुख को झेल भी ले, पर जवान बेटे के असमय मर बारे की याद उसे व्याकुल कर जाती है। तब उसकी छाती कटने लगती है तथा छाती पर साँप लोटने लगता है अर्थात् वह अत्यंत दुखी एवं व्याकुल हो उठता है।

    किसान को पिछले नजीवन के सुखों की याद बार-बार उसकी आँखों में आती है। इससे कभी-कभी उसकी अस्त्रों में चमक आ-शती है। लेकिन यह स्थिति-ज्यादा देर तक नहीं बनी रहती। वह दृष्टि शीघ्र ही शून्य में खो जाती है और वह तीखी नोंक के समान गड़ती रहती है। अर्थात सुख के स्मरण की चमक क्षणिक रहती है। वह फिर दुख-सागर में डूब जाता है।

    विशेष- 1. ‘-स्मृति-बिंब’ का सुंदर प्रयोग हुआ है।

    2. किसान ककीदशा के वर्णन में मार्मिकता का समावेश है।

    3. ‘साँप लोटना’, ‘छाती फटना’, ‘पैर की जूती’ आदि मुहावरों का सटीक प्रयोग हुआ है।

    4. सरल एवं सुबर धसुबोधखड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।

    Question 7
    CBSEENHN11012253

    अंधकार की गुहा सरीखी
    ‘उन आँखों से’ डरता है मन।

    (क) आमतौर पर हमें डर किन बातों से लगता है?

    (ख) उन आँखों से किसकी ओर संकेत किया गया है?

    (ग) कवि को ‘उन आँखों से’ डर क्यों लगता है?

    (घ) डरते हुए भी कवि ने उस किसान की आँखों की पीड़ा का वर्णन क्यों किया है?

    (ड) यदि कवि इन आँखों से नहीं डरता, क्या तब भी वह कविता लिखता?

    Solution

    (क) आम तौर पर हमें अंधकार से डर लगता है। भयावह बातें भी हमें डराती हैं।

    (ख) ‘उन आँखों से’ किसान की आँखों की ओर संकेत किया गया है।

    (ग) कवि को उन आँखों से डर इसलिए लगता है क्योंकि उनमें असीम वेदना भरी हुई है।

    (घ) डरते हुए भी कवि ने उस किसान की आँखों की पीड़ा का वर्णन इसलिए किया है ताकि अन्य लोग भी उसकी यथार्थ स्थिति से परिचित हो सकें।
    (ड) यदि कवि इन आँखों से नहीं डरता तो वह कविता भी नहीं लिख पाता, क्योंकि कविता लिखने के लिए मन में भावों का उठना आवश्यक है।

    Question 8
    CBSEENHN11012254

    कविता में किसान की पीड़ा के लिए कीन्हें जिम्मेदार बताया गया है?

    Solution

    कविता में किसान की पीड़ा के लिए निन्नलिखित व्यक्तियों कं। जिम्मेदार बताया गया है-

    - शासक वर्ग

    - जमींदार और उसके कारिंदे

    - महाजन

    Question 9
    CBSEENHN11012255

    ‘पिछले सुख की स्मृति आँखों में क्षण भर रक चमक है लाती’ में किसान के किन पिछले सुखों की ओर संकेत किया गया है?

    Solution

    किसान के पिछले सुरस ये हो सकते हैं-

    (1) उसका घर भरा-पूरा था’ उसमें पत्नी, पुत्र, पुत्रवधू सभी थे।

    (2) उसके खेत में भरपूर फसल लहलहाती थी।

    (3) उसके पास बैलों की जोड़ी थी।

    (4) उसके पास दुधारू गाय थी।

    (5) इन सब चीजों से उसे सुख मिल रहा था।

    Question 10
    CBSEENHN11012256

    संदर्भ सहित आशय स्पष्ट करें -
    उजरी उसके सिवा किसे कब
    पास दुहाने आने देती?

    Solution

    संदर्भ-किसान के पास एक गाय थी। जिसका नाम उजरी था। महाजन ने अगना ब्याज वसूलने कै लिए उसकी गाय को भी बिकवा दिया।

    आशय-किसान की गाय का उसके साथ बड़ा लगाव था। उसको दुहने का काम केवल किसान ही करता था। वह अन्य किसी को अपने पास नहीं फटकने देती थी।

    Question 11
    CBSEENHN11012257

    संदर्भ सहित आशय स्पष्ट करें -

    घर में विधवा रही पतोहू
    लछमी थी, यद्यपि पति घातिन,

    Solution

    संदर्भ-पंत जी की कविता ‘वे आँखें’ से अवतरित इन पंक्तियों में कवि ने किसान के दुर्भाग्य की कथा को बताया है। उसके पुत्र को जमींदारों के कारकुनों ने पीट पीटकर मार डाला था। इसका आरोप उसकी पुत्रवधू पर मढ़ दिया गया। मलय-किसान की पुत्रवधू विधवा हो गई। वह घर में रह रही थी। वह तो लक्ष्मी के समान थी, पर उस पर पति को मारने का आरोप जड़ दिया गया था। यह जमींदार और पुलिस की मिलीभगत का षड्यंत्र था।

    Question 12
    CBSEENHN11012258

    संदर्भ सहित आशय स्पष्ट करें -

    पिछले सुख की स्मृति आँखों में
    क्षण भर एक चमक है लाती,
    तुरत शून्य में गड़ वह चितवन
    तीखी नोक सदृश बन जाती।

    Solution

    संदर्भ-पंत जी की कविता ‘वे आँखें’ की ये पंक्तियाँ किसान के लुट-पिट जाने की स्थिति से पूर्व की दशा की ओर संकेत करती हैं।

    आशय-किसान यद्यपि हर समय दुखी रहता है। उसकी आँखों में वेदना झलकती रहती है। इसके बावजूद कभी -कभी उसकी आँखों में क्षण - भर के लिए चमक आ जाती है। यह चमक तब आती है जब वह सुख के पुराने क्षणों का स्मरण करता है। उसका यह सुखद भाव तुरंत गायब भी हो जाता है और वह तीखी नोंक के समात चुभने लगता है।

    Question 13
    CBSEENHN11012259

    किसान अपने व्यवसाय से पलायन कर रहे हैं। इस विषय पर परिचर्चा आयोजित करें तथा कारणों की भी पड़ताल करें।

    Solution

    किसान अपने व्यवसाय से पलायन कर रहे हैं। परिचर्चा में इसके कारणों की पड़ताल करनी होगी। निम्नलिखित कारणों पर चर्चा कर विचार करें-

    (1) खेती अब लाभप्रद व्यवसाय नहीं रह गई है। लागत अधिक और आय कम होती है।

    (2) खेती में बहुत अधिक परिश्रम करना पड़ता है। अब पढ़ा-लिखा वर्ग परिश्रम से जी चुराने लगा है।

    (3) सरकार की ओर से सिंचाई, बीज, खाद आदि सुविधाओं का अभाव है।

    (4) फसल में उगाए गए अन्न की बिक्री की समुचित व्यवस्था नहीं है।

    (5) किसान की फसल का बीमा होना चाहिए।

    Question 14
    CBSEENHN11012260

    ‘वे आँखें’ कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।

    Solution

    ‘वे आँखें’ कविता में कवि ने किसान की दुरावस्था? मार्मिक चित्रण किया है। उसे स्वाधीन भारत में भी उपेक्षा के सिवाय कुछ नहीं मिला। उसकी दशा दिन-प्रतिदिन बिगड़ती ही चली गई है। पहले जमींदार उसका शोषण करता है, फिर महाजन उसका घर-बार तक बिकवा देता है। वह कहीं का नहीं रहता। पत्नी इलाज के अभाव में मर जाती है। पुत्र को जमींदार के कारिंदे मार देते हैं, पुत्रवधू को कोतवाल परेशान करता है अत: वह कुएँ में डूब मरती है। किसान को बीच मँझधार में छोड़ दिया गया है। उसके गाय-बैलों तक को छीन लिया गया है। उसकी दशा दयनीय हो गई है।

    Question 15
    CBSEENHN11012261

    इस कविता पर किस वाद का प्रभाव है?

    Solution

    इस कविता पर प्रगतिवाद का प्रभाव है। प्रगतिवाद में शोषक वर्ग के विरुद्ध आवाज उठाई गई है। जमींदार और महाजन इसी वर्ग कै प्रतिनिधि हैं। किसान शोषित वर्ग का प्रतीक है। सभी उसका शो षण करते हैं। यही कारण है कि किसान सभी ओर से उपेक्षित और दुखी हो जाता है।

    Question 16
    CBSEENHN11012262

    निन्नलिखित काव्य-पंक्तियों में निहित सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-

    अंधकार की गुहा सरीखी
    उन आँखों से डरता है मन,
    भरा दूर तक उनमें दारुण
    दैन्य दुख का नीरव रोदन।

    Solution

    भाव-सौंदर्य -इन काव्य पंक्तियों में किसान की व्यथा का मार्मिक अंकन किया गया है। उसकी व्यथा उसकी आँखों से झलकती है। उनमें अंधकार-ही- अंधकार है। आशा की कोई किरण उनमें नहीं दिखाई देती। किसान का जीवन दारुण दुख, दीनता और रोदन का पर्याय बन चुका है।

    शिल्प-सौंदर्य-कवि ने आँखों की उपमा अंधकार की गुहा (गुफा) से दी है, अत: उपमा अलंकार का प्रयोग है। -‘दारुण दैन्य दुख’ में ‘द’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।

    -करुण रस का परिपाक हुआ है।

    - भाषा सरल एवं सुबोध है।

    Question 17
    CBSEENHN11012263

    निन्नलिखित काव्य-पंक्तियों में निहित सौंदर्य स्पष्ट कीजिए:
    उजरी उसके सिवा किसे कब
    पास दुहाने आने देती।
    अह, आँखों में नाचा करती
    उजड़ गई जो सुख की खेती।

    Solution

    भाव-सौंदर्य- किसान को अपनी उजरी गाय अत्यधिक प्रिय थी। वह अपना दूध उसके सिवाय किसी और को नहीं निकालने देती थी। वह गाय भी उसके पास से चली गई। उसका सारा सुख समाप्त हो गया। अब तो वह सुख की खेती उसकी। स्मृति बनकर ही रह गई।

    शिल्प-सौंदर्य

    -इन पंक्तियों में ‘स्मृति बिंब’ उभारा गया है। किसान को रह-रहकर अपने सुखद क्षणों का स्मरण हो आर:? है।

    - ‘किसे-कब’-में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।

    - ‘सुख खेती उजड़ जाना, मुहावरे का सटीक प्रयोग किया गया है।

    - भाषा सरल एवं सुबोध है।

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