मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया
छपी किताब को लेकर इरैस्मस के विचार
छपी किताब को लेकर इरेस्मस के विचार:
इरैस्मस लातिनी के विद्वान और कैथोलिक धर्म सुधार आंदोलन के प्रमुख नेता थे। इन्होंने कैथोलिक धर्म की बुराइयों की आलोचना की, लेकिन छपी किताबों को लेकर इनके विचार मार्टिन लूथर के विचारों से अलग थे। उनके विचार में किताबें भिनभिनाती मक्खियों की तरह हैं जो दुनिया के किसी भी कोने में जा सकती है। इनका ज़्यादातर हिस्सा विद्धवता के लिए हानिकारक है। पुस्तकें एक बेकार ढेर हैं क्योंकि अच्छी चीजों की अति भी हानिकारक होती हैं, इनसे बचना चाहिए।
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छपी किताब को लेकर इरैस्मस के विचार
छोटी टिप्पणी में इनके बारे में बताएँ:
वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट
उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण-संस्कृति के प्रसार का इनके लिए क्या मतलब था-
महिलाएँ
अठारहवीं सदी के यूरोप में कुछ लोगों को क्यों ऐसा लगता था कि मुद्रण संस्कृति से निरंकुशवाद का अंत, और ज्ञानोदय होगा?
कुछ लोग किताबों की सुलभता को लेकर चिंतित क्यों थे? यूरोप और भारत से एक-एक उदाहरण लेकर समझाएँ।
उन्नीसवीं सदी में भारत में गरीब जनता पर मुद्रण संस्कृति का क्या असर हुआ?
मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में क्या मदद की ?
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