रजिया सज्जाद जहीर
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
अब तक साफिया का गुस्सा उतर चुका था। भावना के स्थान पर बुद्धि धीरे-धीरे उस पर हावी हो रही थी। नमक की पुड़िया ले तो जानी है, पर कैसे? अच्छा, अगर इसे हाथ में ले लें और कस्टमवालों के समाने सबसे पहले इसी को रख दें? लेकिन अगर कस्टमवालों ने न जाने दिया! तो मजबूरी है, छोंड़ देंगे। लेकिन फिर उस वायदे का क्या होगा जो हमने अपनी माँ से किया था? हम अपने को सैयद कहते हैं। फिर वायदा करके झुठलाने के क्या मायने? जान देकर भी वायदा पूरा करना होगा। मगर कैसे? अच्छा, अगर इसे कीनुओं की टोकरी में सबसे नीचे रख लिया जाए तो इतने कीनुओं के ढेर में भला कौन इसे देखेगा? और अगर देख लिया? नहीं जी, फलों की टोकरियाँ तो आते वक्त भी नहीं देखी जा रही थीं। उधर से केले, इधर से कीनू सब ही ला रहे थे, ले जा रहे थे। यही ठीक है, फिर देखा जाएगा।
1. साफिया पर गुस्सा क्यों चढ़ा था?
2. अब क्या स्थिति हो गई?
3. किसने, किससे क्या वायदा किया था? वायदे के प्रति उसका क्या दृष्टिकोण है?
4. साफिया ने किस चीज को कहाँ दिखाया?
1. साफिया पर गुस्सा इसलिए चढ़ा था क्योंकि उसके भाई ने लाहौरी नमक की पुड़िया को भारत ले जाने से मना कर दिया था। इससे उनकी बदनामी होने की संभावना थी। साफिया कानूनी अडचन जानकर गुस्सा हो गई थी।
2. कुछ देर बाद साफिया का गुस्सा उतर गया। तब उस पर भावना की जगह बुद्धि हावी हो गई। भाई के सम्मुख उस पर भावना हावी थी। अब वह बुद्धि से वह उपाय सोचने लगी कि नमक की पुड़िया को किस तरह ले जाया जाए। वह दो उपायों पर विचार करने लगी कि कस्टम वालों को बताकर ले जाए या टोकरी में छिपाकर ले जाए।
3. साफिया ने सिख बीबी से यह वायदा किया था कि वह उनके लिए लाहौरी नमक लेकर आएगी। वह बीबी को माँ मानती है और स्वयं को सैयद कहती है अत: वह हर हालत में वायदा पूरा करके ही रहेगी।
4. साफिया ने नमक की पुड़िया को टोकरी में कीनुओं के ढेर के नीचे छिपाया। उसने सोचा कि कीनुओं के ढेर में इसे भला कौन देख पाएगा। फलों की टोकरी की विशेष जाँच भी नहीं होती।
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पंद्रह दिन यों गुजरे कि पता ही नहीं चला। जिमखाना की शामें, दोस्तों की मुहब्बत, भाइयों की खातिरदारियाँ-उनका बस न चलता था कि बिछुड़ी हुई परदेसी बहिन के लिए क्या कुछ न कर दें! दोस्तों, अजीजों की यह हालत है कि कोई कुछ लिए आ रहा है, कोई कुछ। कहाँ रखें, कैसे पैक करें, क्यों कर ले जाएँ-एक समस्या थी। सबसे बड़ी समस्या थी बादामी कागज की एक पुड़िया की जिसमें कोई सेर भर लाहौरी नमक था।
साफिया का भाई एक बहुत बड़ा पुलिस अफसर था। उसने सोचा कि वह ठीक राय दे सकेगा।
चुपके से पूछने लगी, “क्यों भैया, नमक ले जा सकते हैं?”
वह हैरान होकर बोला, “नमक? तो नहीं ले जा सकते, गैरकानूनी है और... और नमक का आप क्या करेंगी? आप लोगों के हिस्से में तो हमसे बहुत ज्यादा नमक आया है।”
वह झुँझला गई, “मैं हिस्से-बखरे की बात नहीं कर रही हूँ, आया होगा। मुझे तो लाहौर का नमक चाहिए, मेरी माँ ने यही मँगवाया है।”
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
अब तक साफिया का गुस्सा उतर चुका था। भावना के स्थान पर बुद्धि धीरे-धीरे उस पर हावी हो रही थी। नमक की पुड़िया ले तो जानी है, पर कैसे? अच्छा, अगर इसे हाथ में ले लें और कस्टमवालों के समाने सबसे पहले इसी को रख दें? लेकिन अगर कस्टमवालों ने न जाने दिया! तो मजबूरी है, छोंड़ देंगे। लेकिन फिर उस वायदे का क्या होगा जो हमने अपनी माँ से किया था? हम अपने को सैयद कहते हैं। फिर वायदा करके झुठलाने के क्या मायने? जान देकर भी वायदा पूरा करना होगा। मगर कैसे? अच्छा, अगर इसे कीनुओं की टोकरी में सबसे नीचे रख लिया जाए तो इतने कीनुओं के ढेर में भला कौन इसे देखेगा? और अगर देख लिया? नहीं जी, फलों की टोकरियाँ तो आते वक्त भी नहीं देखी जा रही थीं। उधर से केले, इधर से कीनू सब ही ला रहे थे, ले जा रहे थे। यही ठीक है, फिर देखा जाएगा।
1. साफिया पर गुस्सा क्यों चढ़ा था?
2. अब क्या स्थिति हो गई?
3. किसने, किससे क्या वायदा किया था? वायदे के प्रति उसका क्या दृष्टिकोण है?
4. साफिया ने किस चीज को कहाँ दिखाया?
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:-
वह चलने लगी तो वे भी खड़े हो गए और कहने लगे, “जामा मस्जिद की सीढ़ियों को मेरा सलाम कहिएगा और उन खातून को यह नमक देते वक्त मेरी तरफ से कहिएगा कि लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा, तो बाकी सब रफ्ता-रफ्ता ठीक हो जाएगा।”
साफिया कस्टम के जंगले से निकलकर दूसरे प्लेटफार्म पर आ गई और वे वहीं खड़े रहे।
प्लेटफार्म पर उसके बहुत-से दोस्त, भाई रिश्तेदार थे, हसरत भरी नजरों, बहते हुए आँसुओं, ठंडी साँसों और भिचे हुए होठों को बीच में से काटती हुई रेल सरहद की तरफ बड़ी। अटारी में पाकिस्तान पुलिस उतरी, हिंदुस्तानी पुलिस सवार हुई। कुछ समझ में नहीं आता था कि कहाँ से लाहौर खत्म हुआ और किस जगह से अमृतसर शुरू हो गया। एक जमीन थी, एक जबान थी, एक-सी सूरतें और लिबास, एक-सा लबोलहजा और अंदाज थे, गालियाँ भी एक ही-सी थीं जिनसे दोनों बड़े प्यार से एक-दूसरे को नवाज रहे थे। बस मुश्किल सिर्फ इतनी थी कि भरी हुई बंदूकें दोनों के हाथों में थीं।
1. किसके चलने पर कौन खड़े हो गए? उन्होने क्या कहा?
2. प्लेटफार्म पर क्या दृश्य था?
3. लेखिका की समझ में क्या बात नहीं आती थी?
4. इस गद्याशं में क्या बात उभर कर आती है?
जब उसका सामान कस्टम पर जाँच के लिए बाहर निकाला जाने लगा तो उसे एक झिरझिरी-सी आई और एकदम से उसने फैसला किया कि मुहब्बत का यह तोहफा चोरी से नहीं जाएगा, नमक कस्टमवालों को दिखाएगी वह। उसने जल्दी से पुड़िया निकाली और हैंडबैग में रख ली, जिसमें उसका पैसों का पर्स और पासपोर्ट आदि थे। जब सामान कस्टम से होकर रेल की तरफ चला तो वह एक कस्टम अफसर की तरफ बड़ी। ज्यादातर मेजें खाली हो चुकी थीं। एक-दो पर इक्का-दुक्का सामान रखा था। वहीं एक साहब खड़े थे-लंबा कद, दुबला-पतला जिस्म, खिचड़ी बाल, आँखों पर ऐनक। वे कस्टम अफसर की वर्दी पहने तो थे मगर उन पर वह कुछ जँच नहीं रही थी। साफिया कुछ हिचकिचाकर बोली, “मैं आपसे कुछ पूछना चाहती हूँ।”
उन्होंने नजर भरकर उसे गौर से देखा। बोले, “फरमाइए।”
उनके लहजे ने साफिया की हिम्मत बढ़ा दी, “आप..आप कहाँ के रहने वाले हैं?”
उन्होंने कुछ हैरान होकर उसे फिर गौर से देखा, “मेरा वतन देहली है, आप भी तो हमारी ही तरफ की मालूम होती हैं, अपने अजीजों से मिलने आई होंगी?”
“जी हाँ। मैं लखनऊ की हूँ। अपने भाइयों से मिलने आई थी। वे लोग इधर आ गए हैं। आपको भी तो शायद इधर आए?”
“जी, जब पाकिस्तान बना था तभी आए थे, मगर हमारा वतन तो देहली ही है।”
साफिया के भाई ने नमक की पुड़िया ले जाने से क्यों मना कर दिया?
नमक की पुड़िया ले जाने के संबंध में साफिया के मन में क्या द्वंद्व था?
जब साफिया अमृतसर पुल पर चढ़ रही थी तो कस्टम ऑफिसर निचली सीढ़ी के पास सिर झुकाए चुपचाप क्यों खड़े थे?
नमक ले जाने के बारे में साफिया के मन में उठे द्वंद्वों के आधार पर उसकी चारित्रिक विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
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