फणीश्वर नाथ रेणु

Question

लुट्टन के राज पहलवान लुट्टन सिंह बन जाने के बाद की दिनचर्या पर प्रकाश डालिए।

Answer

लुट्टन पहलवान चाँद सिंह को हराकर राज पहलवान लुट्टन सिंह बन गया। उसे राज दरबार मैं सम्मान मिलने लगा। वह राज-दरबार का ‘दर्शनीय जीव’ हो गया। उसकी दहाड़ पर उसे ‘राजा का बाघ बोला’ जाता था। मेलों में वह घुटनों तक का लंबा चोगा पहने, अस्त-व्यस्त पगड़ी बाँध कर मतवाले हाथी की तरह चलता था। हलवाई उसे बुलाकर मिठाई खिलाते थे। वह मौज-मस्ती का जीवन जी रहा था। उसका शरीर तो बढ़ गया था, पर बुद्धि घट गई थी। इसी प्रकार उसके जीवन के पंद्रह वर्ष बीत गए।

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Some More Questions From फणीश्वर नाथ रेणु Chapter

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
अंधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी। निस्तब्धता करुण सिसकियों और आहों को बलपूर्वक अपने हृदय में ही दबाने की चेष्टा कर रही थी। आकाश में तारे चमक रहे थे। पृथ्वी पर कहीं प्रकाश का नाम नहीं। आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलाखिलाकर हँस पड़ते थे।

सियारों का क्रंदन और पेचक की डरावनी आवाज कभी-कभी निस्तब्धता को अवश्य भंग कर देती थी। गाँव की झोंपड़ियों से कराहने और कै करने की आवाज ‘हरे राम! हे भगवान!’ की टेर अवश्य सुनाई पड़ती थी। बच्चे भी कभी-कभी निर्बल कंठों से ‘माँ-माँ’ पुकारकर रो पड़ते थे। पर इससे रात्रि की निस्तब्धता में विशेष बाधा नहीं पड़ती थी।

कुत्तों में परिस्थिति को ताड़ने की विशेष बुद्धि होती है। वे दिन-भर राख के घूरों पर गठरी की तरह सिकुड़कर, मन मारकर पड़े रहते थे। संध्या या गंभीर रात्रि को सब मिलकर रोते थे।

1. पाठ तथा लेखक का नाम बताइए।
2. अंधेरी रात का दृश्य कैसा था?
3. गाँव का वातावरण कैसा था?
4. कुत्तों के विषय में लेखक क्या कहता है?





निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
कुत्तों में परिस्थिति को ताड़ने की एक विशेष बुद्धि होती है। वे दिन-भर राख के घूरों पर गठरी की तरह सिकुड़कर, मन मारकर पड़े रहते थे। संध्या या गंभीर रात्रि को सब मिलकर रोते थे।
रात्रि अपनी भीषणताओं के साथ चलती रहती और उसकी सारी भीषणता को, ताल ठोककर, ललकारती रहती थी-सिर्फ पहलवान की ढोलक! संध्या से लेकर प्रातःकाल तक एक ही गति से बजती रहती-’चट्-धा, गिड़-धा,… चट्-धा, गिड़-धा।’ यानी ‘आ जा भिड़ जा, आ जा, भिड़ जा।…’बीच-बीच में- ‘चटाक् चट्-धा, चटाक् चट्-धा।’ यानी ‘उठाकर पटक दे! उठाकर पटक दे!!’
यही आवाज मृत-गाँव में संजीवनी शक्ति भरती रहती थी।
लुट्टसिहं पहलवान!
यों तो वह कहा करता था- ‘लुट्टन सिंह पहलवान को होल इंडिया भर के लोग जानते हैं’, किन्तु उसके ‘होल-इंडिया’ की सीमा शायद एक जिले की सीमा के बराबर ही हो। जिले भर के लोग उसके नाम से अवश्य परिचित थे।

1. पाठ का नाम तथा लेखक का नाम बताइए।
2. कुत्तों के बारे में क्या बताया गया है?
3. रात्रि की भीषणता क्या थीं? इनको कौन, किस प्रकार ललकारता था?
4. कौन- सी आवाज क्या असर दिखाती थी?


निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
एक बार वह ‘दंगल’ देखने श्याम नगर मेला गया। पहलवानों की कुश्ती और दाँव-पेंच देखकर उससे नहीं रहा गया। जवानी की मस्ती और ढोल की ललकारती हुई आवाज ने उसकी नसों में बिजली उत्पन्न कर दी। उसने बिना-कुछ सोचे-समझे दंगल में ‘शेर के बच्चे’ को चुनौती दे दी।

‘शेर के बच्चे’ का असल नाम था चाँव सिंह। वह अपने गुरु पहलवान बादल सिंह के साथ, पंजाब से पहले-पहल श्याम नगर मेले में आया था। सुंदर जवान, अंग-प्रत्यंग से सुन्दरता टपक पड़ती थी। तीन दिनों में ही पंजाबी और पठान पहलवानों के गिरोह के अपनी जोड़ी और उप्र के सभी पट्टों को पछाड़कर उसने ‘शेर के बच्चे’ की टायटिल प्राप्त कर ली थी। इसलिए वह दंगल के मैदान में लंगोट लगाकर एक अजीब किलकारी भरकर छोटी दुलकी लगाया करता था। देशी नौजवान पहलवान, उससे लड़ने की कल्पना से भी घबराते थे। अपनी टायटिल को सत्य प्रमाणित करने के लिए ही चाँदसिंह बीच-बीच में दहाड़ता फिरता था।

1. एक बार कौन, कहाँ गया? वहाँ का उस पर क्या प्रभाव पड़ा?
2. किस बात से उत्साहित होकर उसने किसे चुनौती दे डाली?
3. ‘शेर का बच्चा’ कौन था? उसके बारे में बताइए।
4. वह अपने टायटिल को सही प्रमाणित करने के लिए क्या करता था?




निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
शांत दर्शकों की भीड़ में खलबली मच गई-’पागल है पागल, मरा-ऐं!’ मरा-मरा!....पर वाह रे बहादुर। लुट्टन बड़ी सफाई से आक्रमण को संभालकर निकलकर उठ खड़ा हुआ और पैंतरा दिखाने लगा। राजा साहब ने कुश्ती बंद करवाकर लुन को अपने पास बुलवाया और समझाया। अंत में, उसकी हिम्मत की प्रशंसा करते हुए, दस रुपए का नोट देकर कहने लगे- “जाओ, मेला देखकर घर जाओ।”

1. शांत दर्शकों की भीड़ में खलबली क्यों मच गई?
2. श्याम नगर के राजा का क्या नाम था? उसे क्या प्रिय लगता था?
3. राजा साहब ने बीच में ही कुश्ती क्यों रुकवा दी?
4. राजा साहब ने लुट्टन सिंह पहलवान को कितने रुपये का नोट दिया और क्यों?


निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
“वहीं दफना वे, बहादुर!” बादल सिंह अपने शिष्य को उत्साहित कर रहा था।

लुट्टन की आँखें बाहर निकल रही थीं। उसकी छाती फटने-फटने को हो रही थी। राजमत, बहुमत चाँद के पक्ष में था। सभी चाँद को शाबाशी दे रहे थे। गन के पक्ष में सिर्फ ढोल की आवाज थी, जिसके ताल पर वह अपनी शक्ति और दाँव-पेंच की परीक्षा ले रहा था-अपनी हिम्मत को बढ़ा रहा था। अचानक ढोल की एक पतली आवाज सुनाई पड़ी- ‘धाक-धिना, तिरकट-तिना, धाक-धिना, तिरकट-तिना..!!’

कुछन को स्पष्ट सुनाई पड़ा, ढोल कह रहा था-”दाँव काटो, बाहर हो जा दाँव काटो, बाहर हो जा!!”

लोगों के आश्चर्य की सीमा नहीं रही, लुट्टन दाँव काटकर बाहर निकला और तुरन्त लपककर उसने चाँद की गर्दन पकड़ ली।

“वाह रे मिट्टी के शेर!”

1. बादलसिंह ने किससे. किसके लिए क्या कहा?
2. लुट्टन की क्या दशा हो रही थी?
3. लुट्टन को ढोल की क्या आवाज सुनाई दी और उसने उसका क्या अर्थ लिया?
4. लोगों को किस बात पर आश्चर्य हुआ?





विजयी लुट्टन जूदता-फाँदता, ताल-ठोंकता सबसे पहले बाजे वालों की ओर दौड़ा और ढोलों को श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया। फिर दौड़कर उसने राजा साहब को गोद में उठा लिया। राजा साहब के कीमती कपड़े मिट्टी में सन गए। मैनेजर साहब ने आपत्ति की- 'हें-हें…अरे-रे!' किन्तु राजा साहब ने स्वयं उसे छाती से लगाकर गद्गद् होकर कहा- 'जीते रहो, बहादुर! तुमने मिट्टी की लाज रख ली!'

पंजाबी पहलवानों की जमायत चाँदसिंह की आँखें पोंछ रही थी। लुट्टन को राजा ने पुरस्कृत ही नहीं किया, अपने दरबार में सदा के लिए रख लिया। तब से लुट्टन राज-पहलवान हो गया और राजा साहब उसे लुट्टन सिंह कहकर पुकारने लगे। राज-पंडितों ने मुँह बिचकाया- 'हुजूर! जाति का दुसाध…सिंह…!'

मैनेजर साहब क्षत्रिय थे। ‘क्लीन-शेव्ड’ चेहरे को संकुचित करते हुए, अपनी शक्ति लगाकर नाक के बाल उखाड़ रहे थे। चुटकी से अत्याचारी बाल को रगड़ते हुए बोले- 'हाँ सरकार, यह अन्याय है!'

राजा साहब ने मुस्कुराते हुए सिर्फ इतना ही कहा-'उसने क्षत्रिय का काम किया है।'

रात्रि की विभीषिका को सिर्फ पहलवान की ढोलक ही ललकार कर चुनौती देती रहती थी। पहलवान संध्या से सुबह तक, चाहे जिस ख्याल से ढोलक बजाता हो किंतु गाँव के अर्द्धमृत, औषधि-उपचार-पथ्य-विहीन प्राणियों में वह संजीवनी शक्ति ही भरती थी। बढ़े-बच्चे-जवानों की शक्तिहीन आँखों के आगे दंगल का दृश्य नाचने लगता था। स्पंदन-शक्ति-शून्य स्नायुओं में भी बिजली दौड़ जाती थी। अवश्य ही ढोलक की आवाज में न तो बुखार हटाने का कोई गुण था और न महामारी की सर्वनाश शक्ति को रोकने की शक्ति ही, पर इसमें संदेह नहीं कि मरते हुए प्राणियों को आँख मूँदते समय कोई तकलीफ नहीं होती थी, मृत्यु से वे डरते नहीं थे।

  • रात्रि में पहलवान की ढोलक किन्हें ललकार लगाती थी?

  • ‘सजीवनी शक्ति’ से लेखक का क्या आशय है?

  • ढोलक का गाँव के लोगों पर क्या प्रभाव पड़ता था?<...

  • रात्रि की विभीषिका को स्पष्ट कीजिए।

रात्रि की विभीषिका को सिर्फ पहलवान की ढोलक ही ललकार कर चुनौती देती रहती थी। पहलवान संध्या से सुबह तक, चाहे जिस ख्याल से ढोलक बजाता हो किंतु गाँव के अर्द्धमृत, औषधि-उपचार-पथ्य-विहीन प्राणियों में वह संजीवनी शक्ति ही भरती थी। बढ़े-बच्चे-जवानों की शक्तिहीन आँखों के आगे दंगल का दृश्य नाचने लगता था। स्पंदन-शक्ति-शून्य स्नायुओं में भी बिजली दौड़ जाती थी। अवश्य ही ढोलक की आवाज में न तो बुखार हटाने का कोई गुण था और न महामारी की सर्वनाश शक्ति को रोकने की शक्ति ही, पर इसमें संदेह नहीं कि मरते हुए प्राणियों को आँख मूँदते समय कोई तकलीफ नहीं होती थी, मृत्यु से वे डरते नहीं थे।

कुश्ती के समय ढोल की आवाज़ और लुट्टन के दाँव-पेंच में क्या तालमेल था? पाठ में आए ध्वन्यात्मक शब्द और ढोल की आवाज़ आपके मन में कैसी ध्वनि पैदा करते हैं, उन्हें शब्द दीजिए।

कहानी के किस-किस मोड़ पर लुट्टन के जीवन में क्या-क्या परिवर्तन आए?