निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
अंधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी। निस्तब्धता करुण सिसकियों और आहों को बलपूर्वक अपने हृदय में ही दबाने की चेष्टा कर रही थी। आकाश में तारे चमक रहे थे। पृथ्वी पर कहीं प्रकाश का नाम नहीं। आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलाखिलाकर हँस पड़ते थे।
सियारों का क्रंदन और पेचक की डरावनी आवाज कभी-कभी निस्तब्धता को अवश्य भंग कर देती थी। गाँव की झोंपड़ियों से कराहने और कै करने की आवाज ‘हरे राम! हे भगवान!’ की टेर अवश्य सुनाई पड़ती थी। बच्चे भी कभी-कभी निर्बल कंठों से ‘माँ-माँ’ पुकारकर रो पड़ते थे। पर इससे रात्रि की निस्तब्धता में विशेष बाधा नहीं पड़ती थी।
कुत्तों में परिस्थिति को ताड़ने की विशेष बुद्धि होती है। वे दिन-भर राख के घूरों पर गठरी की तरह सिकुड़कर, मन मारकर पड़े रहते थे। संध्या या गंभीर रात्रि को सब मिलकर रोते थे।
1. पाठ तथा लेखक का नाम बताइए।
2. अंधेरी रात का दृश्य कैसा था?
3. गाँव का वातावरण कैसा था?
4. कुत्तों के विषय में लेखक क्या कहता है?
1. पाठ का नाम:पहलवान की ढोलक।
लेखक का नाम:फणीश्वरनाथ रेणु।
2. अँधेरी रात में आकाश में तारे चमक रहे थे, चारों ओर चुप्पी व्याप्त थी। यह शब्दहीनता दु:खों को दबाने का प्रयास करती है। पृथ्वी पर अंधकार छाया हुआ है। कोई तारा टूटकर धरती की तरफ चलता भी है तो उसकी ज्योति और शक्ति क्षीण होती जाती है और दूसरे तारे उस पर खिलखिलाकर हँसते हैं।
3. गाँव का वातावरण शांत था। कभी-कभी सियारों का क्रंदन और पेयक की डरावनी आवाज से शब्दहीनता भंग हो जाती थी कहीं-कहीं गाँव की झोंपड़ियों से कराहने और कै (उल्टी) करने की आवाज सुनाई देती थी। बच्चे भी कभी-कभी निर्बल कंठों से ‘माँ-माँ’ पुकार कर रो पड़ते थे।
4. लेखक बताता कि कुत्तों में परिस्थिति को समझने की विशेष बुद्धि होती है। वे दिन के समय राख के घूरों (ढेरों) पर गठरी की तरह सिकुड़कर पड़े रहते हैं। रात को वे सब मिलकर रोते हैं।



