कुश्ती के समय ढोल की आवाज़ और लुट्टन के दाँव-पेंच में क्या तालमेल था? पाठ में आए ध्वन्यात्मक शब्द और ढोल की आवाज़ आपके मन में कैसी ध्वनि पैदा करते हैं, उन्हें शब्द दीजिए।
कुश्ती के समय ढोल की आवाज और लुट्टन के दाँव-पेच के बीच गहरा तालमेल था। कुश्ती के समय जब ढोल बजता था तब लुट्टन रगों में हलचल पैदा हो जाती थी। हर थाप पर उसका खून उबलने लगता था। उसे हर थाप पर प्रेरणा मिलती थी। उसके दाँव-पेंचों में अचानक फुर्ती बढ़ जाती थीं। उसे ढोलक पर हर ताल कुश्ती को दाँव बताती हुई महसूस होती थी।
कुश्ती के समय ढोल की आवाज़ और लुट्टन के दाँव-पेंच में तालमेल-
1. ढोल: ‘धाक-धिना, तिरकट-तिना, धाक-धिना, तिरकट-तिना।’
इशारा: ‘दाँव काटो, बाहर हो जा, दाँव काटो बाहर हो जा।’
लुट्टन का दाँव-पेंच: लुट्टन दाँव काटकर निकल आया और उसने चाँद की गर्दन पकड़ ली।
2. ढोल: ‘चटाक्-चट्-धा.’चटाक्-चट्-धा’
इशारा: उठा पटक दे! उठा पटक दे।
लुट्टन का दाँव-पेंच: लुट्टन ने चालाकी से दाँव लगाकर चाँद को जमीन पर दे मारा।
3. ढोल ‘धिना-धिना,धिना-धिक।’
इशारा: चित करो, चित करो।
लुट्टन का दाँव-पेंच: लुट्टन ने चाँद को चारों खाने चित कर दिया।