हरिवंशराय बच्चन
नीचे जयशंकर प्रसाद की आत्मकथा कविता दी जा रही है। क्या पाठ में दी गई आत्मपरिचय कविता से इस कविता का आपको कोई संबंध दिखाई देता है? चर्चा करें?
आत्मकथ्य
मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की। सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की? छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ? क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ। इन सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा में अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।
(जयशंकर प्रसाद)
दोनों कविताओंमें व्यक्तिवादी अर्थात् आत्मनिष्ठता के भाव की प्रबलता है। दूसरी कविता ‘आत्मकथ्य’ का कवि निराशा के भँवर में उतरता- डूबता प्रतीत होता है। ‘आत्मपरिचय’ कविता का कवि अपने प्रति अधिक आश्वस्त जान पड़ता है।
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कवि अपने विगत जीवन के बारे में क्या बताता है?
कवि किसका पान किया करता है और इससे उसकी हालत कैसी हो जाती है?
कवि संसार के बारे में क्या बताता है?
दिये गये काव्याशं सप्रसंग व्याख्या करें?
कवि क्या लिए फिरता है?
कवि को यह संसार कैसा प्रतीत होता है?
कवि किस मन: स्थिति में रहता है?
कवि इस संसार में अपना जीवन किस प्रकार से बिताता है?
उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ,
जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,
मैं, हाय 2 किसी की याद लिए फिरता हूँ,
कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना?
नादान वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना!
फिर छू न क्या जग, जो इस पर भी सीखे?
मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भुलाना!
कवि कैसा उन्माद लिए फिरता है? इसका उसे क्या प्रतिफल मिलता है?
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