दिये गये काव्याशं सप्रसंग व्याख्या करें?
प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि हरिवंशराय ‘बच्चन’ द्वारा रचित कविता ‘आत्म-परिचय’ से अवतरित है। इसमें कवि अपने जीवन जीने की शैली पर प्रकाश डालता है। इस जीवन में कवि को अनेक प्रकार के अनुभव होते है। कवि अपनी विशिष्ट छवि बनाए रखता है।
व्याख्या: कवि इस संसार में अपना पृथक् व्यक्तित्व बनाए रखता है। उसके हृदय में भेंटस्वरूप देने के लिए कुछ भाव और उपहार हैं। कवि कहता है कि मैं अपने हृदय के भावों को ही महत्व देता हूँ। मैं किसी अन्य के इशारे पर नहीं चलता। मैं तो अपने हृदय की बात सुनता हूँ। वही मेरे लिए सबसे बड़ा उपहार है। मुझे तो यह संसार अधूरा प्रतीत होता है अत: यह मुझे अच्छा नहीं लगता। मुझे तो अपने सपनों की दुनिया ही भाती है, मैं उसी में रमा रहता हूँ। (छायावादी शैली का प्रभाव)।
कवि कहता है कि मेरे हृदय में भी एक प्रक्रार की अग्नि (प्रेमाग्नि) जलती रहती है और मैं इसी मे जलता रहता हूँ। कवि प्रेम की वियोगावस्था में व्यथित रहता है। कवि सुख और दु:ख दोनों दशाओं में मग्न रहता है। यह संसार इस भवरूपी सागर से पार उतरने के लिए भले ही नाव का निर्माण करे, पर कवि तो इस भव-सागर की लहरों पर मस्ती के साथ बहता रहता है। उसे पार जाने की चाह नहीं है। वह तो इसी संसार में मस्ती भरा जीवन बिताता रहता है। कवि को इस संसार के तौर -तरीके पसंद नहीं हैं। उसकी अपनी जीवन शैली है, वह उसी प्रकार जीता है। वह संसार रूपी सागर की लहरो का मस्त होकर बहता रहता हैए।