कवि इस संसार में अपना जीवन किस प्रकार से बिताता है?
कवि इस संसार में मस्ती भरा जीवन बिताता है। कवि को इस संसार रूपी सागर को पार करने के लिए भले ही नाव बनाए पर कवि को किसी सहारे की आवश्यकता नहीं है। वह तो इस भव सागर की लहरों पर बहना चाहता है।
कवि इस संसार में अपना जीवन किस प्रकार से बिताता है?
कवि इस संसार में मस्ती भरा जीवन बिताता है। कवि को इस संसार रूपी सागर को पार करने के लिए भले ही नाव बनाए पर कवि को किसी सहारे की आवश्यकता नहीं है। वह तो इस भव सागर की लहरों पर बहना चाहता है।
कवि संसार के बारे में क्या बताता है?
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कवि को यह संसार कैसा प्रतीत होता है?
कवि किस मन: स्थिति में रहता है?
कवि इस संसार में अपना जीवन किस प्रकार से बिताता है?
उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ,
जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,
मैं, हाय 2 किसी की याद लिए फिरता हूँ,
कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना?
नादान वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना!
फिर छू न क्या जग, जो इस पर भी सीखे?
मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भुलाना!
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