कवि किस मन: स्थिति में रहता है?
कवि अपने हृदय में वियोग रूपी अग्नि को जलाए हुए जीता है। इसमे वह निरतर जलता रहता है। इसके बावजूद वह सुख-दुख दोनों अवस्थाओं मे मग्न रहता है।
कवि किस मन: स्थिति में रहता है?
कवि अपने हृदय में वियोग रूपी अग्नि को जलाए हुए जीता है। इसमे वह निरतर जलता रहता है। इसके बावजूद वह सुख-दुख दोनों अवस्थाओं मे मग्न रहता है।
कवि किसका पान किया करता है और इससे उसकी हालत कैसी हो जाती है?
कवि संसार के बारे में क्या बताता है?
दिये गये काव्याशं सप्रसंग व्याख्या करें?
कवि क्या लिए फिरता है?
कवि को यह संसार कैसा प्रतीत होता है?
कवि किस मन: स्थिति में रहता है?
कवि इस संसार में अपना जीवन किस प्रकार से बिताता है?
उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ,
जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,
मैं, हाय 2 किसी की याद लिए फिरता हूँ,
कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना?
नादान वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना!
फिर छू न क्या जग, जो इस पर भी सीखे?
मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भुलाना!
कवि कैसा उन्माद लिए फिरता है? इसका उसे क्या प्रतिफल मिलता है?
कवि किस मन: स्थिति में जी रहा है और क्यों?
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