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नीचे जयशंकर प्रसाद की आत्मकथा कविता दी जा रही है। क्या पाठ में दी गई आत्मपरिचय कविता से इस कविता का आपको कोई संबंध दिखाई देता है? चर्चा करें?
आत्मकथ्य
मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की। सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की? छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ? क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ। इन सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा में अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।
(जयशंकर प्रसाद)